Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Dec, 2017 11:33 AM
पुलिस ज्यादतियों के मुद्दे पर कुछ दिन पहले अकाली नेतृत्व ने पंजाब में कई स्थानों पर मुख्य राजमार्गों पर धरने देकर अपना गुस्सा व्यक्त किया परन्तु इस घटना के बाद घटे घटनाक्रम से साफ लगता है कि अकालियों के धरने ने गठबंधन की हवा ही खराब की है। भले ही...
जालंधर (अश्विनी खुराना): पुलिस ज्यादतियों के मुद्दे पर कुछ दिन पहले अकाली नेतृत्व ने पंजाब में कई स्थानों पर मुख्य राजमार्गों पर धरने देकर अपना गुस्सा व्यक्त किया परन्तु इस घटना के बाद घटे घटनाक्रम से साफ लगता है कि अकालियों के धरने ने गठबंधन की हवा ही खराब की है। भले ही अकाली-भाजपा मिलकर गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रहे हैं मगर न तो भाजपा वार्ड में अकालियों की तकड़ी नजर आ रही है और न ही अकालियों के वार्ड में कहीं कमल नजर आ रहा है, वहीं रही सही कसर रविवार और सोमवार को हुई बारिश ने निकाल दी है। 2 दिन की बारिश से जहां गठबंधन उम्मीदवारों का चुनाव प्रचार प्रभावित हुआ है, वहीं कांग्रेस और ‘आप’ की भी प्रचार थमा है।
कांग्रेस ने अकालियों के धरने को उठाने में नहीं दिखाई दिलचस्पी
गौरतलब है कि हरिके पत्तन, माधोपुर बार्डर और लुधियाना टोल प्लाजा के निकट लगाए गए धरनों में लाखों लोग सारा दिन फंसे रहे और तो और एम्बुलैंस और फायर ब्रिगेड इत्यादि को भी आने-जाने का रास्ता न मिला। एकाएक बगैर किसी अल्टीमेटम के मुख्य राजमार्गों को बंद कर देने से जो लोग कई किलोमीटर लम्बे जामों में फंस गए, उन्होंने इकट्ठे होकर अकाली दल विरुद्ध ही अपना रोष व्यक्त किया, जिसके बाद अकाली दल सुप्रीमो सुखबीर बादल तक को लोगों से माफी मांगनी पड़ी। साफ दिखा कि कांग्रेस सरकार ने अकालियों के धरनों को उठाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई, जिस कारण अकाली दल खुद अपने बुने जाल में फंस कर रह गया। इन दिनों प्रमुख शहरों में हो रहे चुनावों में धरनों का मुद्दा भी बना हुआ है, जिस कारण अकालियों के साथ-साथ भाजपा उम्मीदवार भी लोगों की नामोशी झेल रहे हैं।