Edited By Updated: 10 Dec, 2016 11:52 AM
कांग्रेस विरोध की राजनीति करके 5 बार राज्य के मुख्यमंत्री बने प्रकाश सिंह बादल ने अपनी जिंदगी का पहला विधानसभा चुनाव कांग्रेस की टिकट पर ही लड़ा था।
जालंधर: कांग्रेस विरोध की राजनीति करके 5 बार राज्य के मुख्यमंत्री बने प्रकाश सिंह बादल ने अपनी जिंदगी का पहला विधानसभा चुनाव कांग्रेस की टिकट पर ही लड़ा था। इससे पहले बादल अपने गांव के सरपंच थे और बाद में लंबी ब्लॉक समिति के चेयरमैन बने थे। सियासी यादों के आज के इस कलाम में आज हम बात करेंगे आजादी के बाद पंजाब में करवाए गए दूसरे विधानसभा चुनाव की। इस कॉलम में आपको वे मजेदार सियासी जानकारियां मिलेंगी जिनके बारे में आपको शायद पहले से जानकारी न हो।
पहली बार मलोट से जीते थे बादल
मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने पहला विधानसभा चुनाव मलोट सीट से कांग्रेस की टिकट पर लड़ा था। उस समय मलोट सीट पर कांग्रेस के 2 उम्मीदवार थे। इस सीट को उस समय दोहरा दर्जा हासिल था। यह जनरल सीट की कैटेगरी में भी थी और इसे रिजर्व कैटेगरी में भी रखा गया था। बादल जनरल कैटेगरी के उम्मीदवार थे और उस समय उन्हें 39,255 वोट हासिल हुए थे हालांकि उनके बराबर इसी सीट पर खड़े रिजर्व कैटेगरी के कांग्रेस उम्मीदवार तेजा सिंह को 42,230 वोट हासिल हुए।
‘पैप्सू’ के पहले 2 चुनाव
आजादी से पहले आज के पंजाब का कुछ हिस्सा ‘पैप्सू’ यानी पटियाला एंड ईस्ट पंजाब स्टेट यूनियन के नाम से जाना जाता था। पैप्सू में आज के मालवा और हरियाणा के कुछ हिस्से की 50 विधानसभा सीटें थीं। 1951 में यहां हुए चुनाव में 1354476 वोटरों ने अपने मतदाता का प्रयोग किया था। इस चुनाव में कांग्रेस के 26 उम्मीदवार विधानसभा में पहुंचे थे जबकि 1954 में यहां हुए दूसरे चुनाव में कांग्रेस के 37 उम्मीदवार जीते थे। 1957 में पैप्सू की कई सीटें पंजाब में आ गई थी जिसके चलते
पंजाब की सीटों की संख्या बढ़ गई।
6 साल में जुड़े 45 लाख वोट
पहले चुनाव में पंजाब में 86,23,498 वोटर थे जबकि 1957 के दूसरे चुनाव में वोटरों की संख्या में 45,49,447 वोटों का इजाफा हो गया और यह बढ़ कर 1,31,72,945 हो गई। मजेदार बात यह है कि 1951 के पहले चुनाव में 49,89,077 वोटरों ने वोटिंग की थी और दूसरे चुनाव में लगभग इतने ही वोट वोटर सूची में जुड़ गए। वर्ष 1957 के पंजाब के दूसरे चुनाव में 76,03,890 वोटरों ने वोटिंग की।
1970 तक थे 2 सदन
1970 तक पंजाब में विधान परिषद भी थी। शुरूआत में पंजाब में विधान परिषद की 40 सीटें थीं जो बाद में बढ़ कर 46 और 1957 में बढ़ कर 61 तक पहुंच गईं। वहीं 1 जनवरी, 1970 को पंजाब ने बायकैमरल स्टेटस को छोड़ कर यूनिकैमरल स्टेटस अपना लिया।
बतौर आजाद उम्मीदवार जीते थे लाला जगत नारायण
1957 के विधानसभा चुनाव में पंजाब केसरी ग्रुप के संस्थापक लाल जगत नारायण बतौर आजाद उम्मीदवार जालंधर साऊथ वैस्ट सीट से चुनाव मैदान में उतरे थे। राज्य में कांग्रेस की हवा के बावजूद लाला जी ने 13,175 वोट हासिल किए और उन्हें कुल पड़े वोटों के 40.04 प्रतिशत वोट हासिल हुए। उनकी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस की सीता देवी को 10,095 वोट हासिल हुए और उन्होंने सीता देवी को 3080 मतों से पराजित किया। विधानसभा के सदस्य रहते हुए लाला जी ने उच्च आदर्शों को कायम रखा और जरूरतमंदों की मदद में जुटे रहे।