पंच न सरपंच, सीधे विधायक पद पर दाव

Edited By Updated: 22 Jan, 2017 01:19 AM

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पंजाब विधानसभा चुनाव में इस बार भी ऐसी पार्टियों ने

जालंधर(इनपुट इलैक्शन): पंजाब विधानसभा चुनाव में इस बार भी ऐसी पार्टियों ने प्रत्याशियों को टिकट दिए हैं, जिनका कोई जमीनी आधार तक नहीं है। इतना ही नहीं इनमें से कई पार्टियों ने तो अपने नेताओं को कभी पंच, सरपंच और पार्षद पद के लिए चुनाव तक नहीं लड़वाए। इसके बावजूद इनके हौसले इतने बुलंद हैं कि यह विधानसभा में बहुमत हासिल करने के दावे भी कर रहे हैं। 


चुनाव की घोषणा से पहले राज्य की सियासत में आए बदलाव ने भी छोटी पार्टियों के हौसलों को बढ़ाया है। यही कारण है कि इस बार आजाद लडऩे वाले उम्मीदवारों की संख्या में भी कमी आई है। दूसरी पार्टियों को छोड़कर आजाद लडऩे की इच्छा रखने वाले उम्मीदवारों को भी इन छोटी पार्टियों ने टिकट दिया है। पंच व सरपंच के चुनाव में शिरकत किए बिना विधानसभा चुनाव में ताल ठोकने वाले इन उम्मीदवारों के मंसूबों पर राजनीतिक विश्लेषकों की राय सबसे जुदा है। ये विश्लेषक छोटी पार्टियों के सीधे विधानसभा चुनाव में उतरने के 6 कारण बता रहे हैं। 


बड़ी पार्टियों की चाल 
विशेषज्ञों का मानना है कि अक्सर मुकाबला कड़ा होने के कारण बड़ी पार्टियां प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ छोटी पार्टियों के या आजाद प्रत्याशियों को खड़ा करवा देती हैं जो चुनाव के दौरान विपक्षी पार्टियों के वोट खराब करने का काम करते हैं। 

 

महत्वाकांक्षी प्रत्याशी
विधायक बनने का सपना देखने वाले वह प्रत्याशी जिन्हें बड़ी पार्टियों से टिकट नहीं मिल पाता वह अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए छोटी पार्टियों का दामन थाम लेते हैं। इन प्रत्याशियों को चुनाव लडऩे के लिए अतिरिक्त फंड जुटाने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती क्योंकि फंड का जुगाड़ पार्टी की ओर से भी हो जाता है।


बड़ी पार्टियों के जासूस
विश्लेषकों का मानना है कि छोटी पार्टियों में चल रही रणनीति को जानने के लिए कई बार बड़ी पार्टियां ही ऐसे लोगों को छोटी पार्टियों से चुनाव लड़वाने का काम करती हैं। ये प्रत्याशी बड़ी पार्टियों के लिए जासूसी का काम करते हैं और अपनी पार्टी में रैली और दलबदल जैसी सूचनाएं भी अपने आकाओं को उपलब्ध करवाते हैं।    


अफसरशाही पर दबाव
पंच-सरपंच के चुनाव न लड़ कर छोटी पार्टियों के टिकट पर सीधे विधानसभा चुनाव लडऩे के पीछे एक कारण यह भी देखा गया है कि चुनाव हार जाने के बावजूद इनका दबाव जिले की अफसरशाही पर बना रहता है। कोई भी सरकारी विभाग में काम करवाते समय इन्हें किसी प्रकार की दिक्कत नहीं आती। चुनाव लड़ कर अफसरशाही पर दबाव बनाना भी इनका एक उद्देश्य हो सकता है।


अगले चुनाव की तैयारी
विश्लेषकों का यह भी मानना है कि किसी छोटी पार्टी की एक प्रदेश में अच्छी साख होती है परंतु चुनाव वाले प्रदेश में साख नहीं होती है। ऐसा करने से वजूद वाले क्षेत्र में भी पार्टी का दबदबा बना रहता है। इसके अलावा ऐसे चुनाव लडऩे के पीछे पार्टी की अगले चुनाव के लिए रणनीति भी होती है। इससे उसे अगले सत्र में होने वाले चुनाव के लिए कार्यकत्र्ता भी मिल जाते हैं।

 

बूथ लैवल मैनेजमैंट
विश्लेषकों का मानना है कि मतदान के दौरान बूथ लैवल पर मैनेजमैंट की भी संभावना होती है। बूथ के अंदर हर एक पार्टी के 2-2 पोङ्क्षलग एजैंट होते हैं। ऐसे में यदि कोई गलत वोटिंग होती है और बूथ पर विरोध होता है तो छोटी पार्टियों के पोङ्क्षलग एजैंट बड़ी पार्टी का पक्ष लेते हैं। बूथ पर किसी भी विवाद का समाधान बहुमत के आधार होने की स्थिति में ये पोङ्क्षलग एजैंट महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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