Edited By Vatika Chabbra,Updated: 31 Mar, 2018 10:01 AM
पश्चिम बंगाल में आलुओं के दागी होने के रोग का अध्ययन करने के लिए पहुंची रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डी.आर. डी.ओ.) की टीम ने चिन्ताएं व्यक्त की हैं कि आलुओं के इस रोग की कुछ किस्में जैव आतंक के हथियार के रूप में प्रयुक्त हो सकती हैं। पश्चिम बंगाल...
जालंधर(धवन): पश्चिम बंगाल में आलुओं के दागी होने के रोग का अध्ययन करने के लिए पहुंची रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डी.आर. डी.ओ.) की टीम ने चिन्ताएं व्यक्त की हैं कि आलुओं के इस रोग की कुछ किस्में जैव आतंक के हथियार के रूप में प्रयुक्त हो सकती हैं। पश्चिम बंगाल राज्य विश्व विद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन के बाद डी.आर.डी.ओ. की टीम ने अपना अध्ययन आलू रोग की 19 नई किस्मों पर शुरू किया। कुछ रोग तो ऐसे थे, जो 48 घंटे में आलू के पूरे खेत को अपनी लपेट में ले सकते हैं।
देशभर में आलुओं का बड़े पैमाने पर प्रयोग लोगों द्वारा खाने व अन्य खाद्य पदार्थों में किया जाता है। पश्चिम बंगाल में हर वर्ष लगभग 1 करोड़ टन आलू की पैदावार होती है जोकि देश में होने वाले कुल उत्पादन का एक चौथाई हिस्सा है। वैज्ञानिकों को शंका है कि अब बंगाल में आलू की फसल के उत्पादन में कमी आ सकती है, क्योंकि जैव आतंक का खतरा बढ़ रहा है। डी.आर.डी.ओ. टीम के अधिकारियों ने यह पाया कि आलू रोग की कुछ किस्मों में जानबूझ कर रोग को पैदा किया गया है, जिसके जरिए जैव आतंक के खतरे को बढ़ावा दिया जा सके। अब इस टीम द्वारा सभी 19 नई किस्मों का गहनता से अध्ययन किया जा रहा है, क्योंकि इन किस्मों में जैव आतंक फैलाने का खतरा ज्यादा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर जैव आतंक को बढ़ावा मिल गया तो इससे देश की खाद्य सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो जाएगा।
इन साजिशों पर कार्य किया जा रहा है तथा इसके लिए जिम्मेदार लोगों व तत्वों का पता लगाने के लिए विभिन्न एजैंसियां कार्य कर रही हैं। डी.आर.डी.ओ. के अधिकारी चाहते हैं कि विभिन्न रोगों वाले आलू की किस्मों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया जाए ताकि जैव आतंक फैलने का खतरा न रहे। पश्चिम बंगाल के अलावा पंजाब में भी आलू की फसल बड़े पैमाने पर होती है। इसलिए देश को उन सभी राज्यों में चौकसी बरतने की जरूरत है, जहां पर आलू की फसल का उत्पादन बड़े स्तर पर किसानों द्वारा किया जाता है। जैव आतंक के जरिए लोगों में दहशत फैलाने की साजिश भी चल रही है।