Edited By Punjab Kesari,Updated: 11 Sep, 2017 01:07 PM
गुरु की नगरी में ट्रैफिक समस्या ने पर्यटकों व शहरवासियों को काफी मुश्किल व सकते में डाल रखा है। ऐसा नहीं है कि ट्रैफिक पुलिस ने इसके समाधान हेतु प्लान बनाकर उस पर कार्य नहीं किया, परंतु वर्तमान हालात किसी से छुपे नहीं हैं।
अमृतसर(जशन): गुरु की नगरी में ट्रैफिक समस्या ने पर्यटकों व शहरवासियों को काफी मुश्किल व सकते में डाल रखा है। ऐसा नहीं है कि ट्रैफिक पुलिस ने इसके समाधान हेतु प्लान बनाकर उस पर कार्य नहीं किया, परंतु वर्तमान हालात किसी से छुपे नहीं हैं। गौरतलब है कि ट्रैफिक पुलिस ने अभी तक जो भी प्लान बनाए, उनमें से अधिकांश तो हवा-हवाई हो चुके हैं, शेष जो प्लान चल रहे हैं, वे भी इतने सार्थक सिद्ध नहीं हो रहे हैं। शहर में सड़क दुर्घटनाओं के ग्राफ में वृद्धि हुई है। इसके अलावा आटो चालकों के कारण शहर की आबो-हवा भी प्रदूषित हुई है।
नैशनल एयर क्वालिटी इंडैक्स के मुताबिक अमृतसर शहर राज्य के सभी अन्य शहरों से ज्यादा प्रदूषित है। अमृतसर का एयर क्वालिटी इंडैक्स 90 तक पहुंच चुका है, जिससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर इस पर जल्द ही काबू न पाया गया तो आने वाले समय में क्या स्थिति होगी? एक ओर तो ट्रैफिक पुलिस प्रतिदिन ही इसके समाधान प्रति बड़े-बड़े दावे करती है और दूसरी ओर जाम की मुख्य समस्या पर ध्यान नहीं देती, तो फिर ऐसे प्लान और बड़ी-बड़ी बयानबाजी का क्या औचित्य है?
वायु को प्रदूषित कर रहे हैं आटो चालक
शहर में आटो की संख्या एक-डेढ़ लाख से भी ऊपर पहुंच चुकी है। ये आटो वाले अपने आटो में ईंधन सही नहीं भरवाते जो शहर में प्रदूषण फैलाने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। ये आटो ट्रैफिक नियमों की भी जमकर धज्जियां उड़ाते हंै। मात्र एक सवारी के लिए ये आटो वाले अपने आटो को अचानक ही सड़क के बीचों-बीच खड़ा कर देते हैं, जिससे अक्सर दुर्घटनाएं होती हैं। बस अड्डे के इर्द-गिर्द तो सड़क पर इन आटो चालकों का ही कब्जा है। आश्चर्य की बात यह है कि यहीं पर ट्रैफिक पुलिस कर्मियों की तैनाती होती है, परंतु कई बार यह भी आरोप लग चुके हैं कि कुछ ट्रैफिक कर्मी इन आटो वालों से बस अड्डे के समीप आटो खड़ा करने के लिए वसूली करते हैं।
कहां मुख्य रूप से है यह समस्या
शहर का दिल कही जाने वाली लॉरैंंस रोड पर चौबीसों घंटे इतना भारी रश होता है कि यहां पर गाडिय़ों के टकराने की घटनाएं अक्सर होती हैं। शहर में मुख्य रूप से यह समस्या पुराने शहर (वाल्ड सिटी) के भीतर भयानक रूप धारण कर चुकी है। गौरतलब है कि यहां के पुराने बाजार व उस समय की आबादी के अनुसार बने थे, जबकि वर्तमान में ट्रैफिक के अनुपात में इन क्षेत्रों की चौड़ाई काफी कम है। ट्रैफिक समस्या के कारण उन पुराने क्षेत्रों में हाथापाई होने, गाली-गलौच व मारपीट के कई मामले सामने आ रहे हैं।
प्रदूषण सर्टीफिकेट बनाना बिल्कुल आसान
शहर में वाहनों का प्रदूषण सर्र्टीफिकेट बनाना मुश्किल नहीं है। वैन में बने प्रदूषण सैंटर में बिना वाहन देखे और चैक किए पैसे लेकर किसी भी वाहन का प्रदूषण सर्टीफिकेट जारी कर देते हैं। इसके लिए आप के साथ वाहन हो या न हो, परंतु पैसे देकर आप किसी भी वाहन का सर्टीफिकेट हासिल कर सकते र्हैं। हैरानी की बात यह है कि संंधित विभाग के पास धुआं चैक करने वाले उपकरण फोर गैस एनालाइजर और स्मोक मीटर ही नदारद हैं तो फिर कर्मी वाहन का प्रदूषण कैसे चैक करेंगे? इसके अलावा विभाग के पास वाहन चालक ने शराब पी है या नहीं, इसको चैक करने वाले उपकरण तो हैं, परंतु उनकी संख्या भी अपर्याप्त है। कुल मिलाकर विभाग में आधुनिक उपकरणों की भारी कमी है। इसके चलते गुरु की नगरी में ट्रैफिक समस्या का समाधन अभी दूर की कौड़ी की तरह दिख रहा है।
ट्रैफिक पुलिस कर्मियों की संख्या कम
ट्रैफिक के निरंतर बढ़ रहे लोड के अनुपात में ट्रैफिक पुलिस कर्मियों की कम संख्या होना भी इस समस्या को ओर बल दे रहा है। 2 दशक पहले तक शहर में वाहनों की संख्या इतनी नहीं थी, परंतु गुजरते समय के साथ इसमें बेतहाशा वृद्धि हुई है, परंतु उसके हिसाब से ट्रैफिक पुलिस कर्मियों की संख्या नहीं बढ़ी। इसके चलते ही ट्रैफिक समस्या ने पूरे शहर को तो जैसे लील ही लिया है, कहना शायद गलत नहीं होगा।