Edited By Punjab Kesari,Updated: 07 Oct, 2017 03:01 PM
बेसहारा पशुओं की गंभीर समस्या ने जहां लोगों के नाक में दम कर रखा है, वहीं मृत पशुओं को उठाने की समस्या शहर निवासियों के लिए भारी परेशानी बनी हुई है। इस समय अलग-अलग कारणों के चलते मरे पशुओं को उठवाना लोगों के लिए सिरदर्दी बना हुआ है।
कोटकपूरा (नरिन्द्र): बेसहारा पशुओं की गंभीर समस्या ने जहां लोगों के नाक में दम कर रखा है, वहीं मृत पशुओं को उठाने की समस्या शहर निवासियों के लिए भारी परेशानी बनी हुई है। इस समय अलग-अलग कारणों के चलते मरे पशुओं को उठवाना लोगों के लिए सिरदर्दी बना हुआ है। शहर की गलियों-बाजारों में पशुओं की मौत हो जाने पर यदि लोगों की तरफ से प्रयास कर इनको न उठवाया जाए तो ये मृतक पशु कुत्तों और कौओं का निवाला बनते हैं और कई बार तो लम्बा समय पड़े रहने कारण पूरे इलाके में भारी बदबू फैली रहती है।
जानकारी के अनुसार शहर अंदर मरे पशुओं को उठवाने के लिए लोगों को अपनी जेब से खर्चा करना पड़ता है और कई बार तो ऐसा करने के लिए 1 हजार से 15 सौ रुपए तक भी देने पड़ते हैं। पिछले सालों दौरान नगर कौंसिल कोटकपूरा की तरफ से मृत पशु उठाने का काम ठेके पर दिया होने के कारण संबंधित ठेकेदारों की तरफ से शहर के अलग-अलग इलाकों में से मृत पशुओं को उठाया जाता था और इसके बदले कोई रकम भी नहीं वसूली जाती थी। इस साल भी नगर कौंसिल की तरफ से मृत पशुओं को उठाने का काम ठेके पर देने संबंधी बोली रखी गई थी परंतु इस काम के लिए कोई भी बोली दाता आगे नहीं आया, जिस कारण यह काम अधर में ही लटक गया। मृत पशुओं को उठाने के लिए रखी गई बोली सफल न होने का बड़ा कारण नगर कौंसिल कोटकपूरा की कोई अपनी हड्डारोड़ी न होना बताया जा रहा है।
क्या कहते हैं अधिकारी
इस संबंध में जब नगर कौंसिल कोटकपूरा के सैनेटेरी इंस्पैक्टर गुरिन्द्र सिंह के साथ बात की तो उन्होंने बताया कि शहर की अपनी हड्डारोड़ी न होना बड़ी समस्या बना हुआ है। उन्होंने बताया कि पहले शहर के मृत पशु फरीदकोट की हड्डारोड़ी में ले जाए जाते थे परंतु कुछ समय पहले यह हड्डारोड़ी भी बंद हो गई। हड्डारोड़ी की कमी होने के कारण किसी ने भी बोली नहीं दी। उन्होंने बताया कि एक बार फिर बोली रखी जाएगी और जहां तक संभव हो सका मृत पशु उठाने का काम ठेके पर दिया जाएगा।