Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Dec, 2017 01:25 PM
गुरदासपुर शहर के बाहरी इलाकों में यदि जाया जाए तो वहां पर झुग्गी-झोंपडिय़ां आम दिखाई देती हैं। यहां रहने वाले लोग मूर्तियां, खिलौने, झाड़ू आदि बना कर अपने परिवार पालते है।अधिकतर झुग्गी-झोंपडिय़ों में रहने वाले बच्चे शिक्षा ग्रहण करने की बजाय बाजारों...
गुरदासपुर(विनोद): गुरदासपुर शहर के बाहरी इलाकों में यदि जाया जाए तो वहां पर झुग्गी-झोंपडिय़ां आम दिखाई देती हैं। यहां रहने वाले लोग मूर्तियां, खिलौने, झाड़ू आदि बना कर अपने परिवार पालते है।अधिकतर झुग्गी-झोंपडिय़ों में रहने वाले बच्चे शिक्षा ग्रहण करने की बजाय बाजारों में भीख मांग कर या दुकानोंं व ढाबों में बर्तन साफ कर अपने परिवार की आय में हिस्सा भी डालते हैं। चाइल्ड वैल्फेयर कौंसिल पंजाब पहले इस बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए इवनिंग क्लासें भी चलाती थीं जिसमें इन बच्चों पढ़ाई करवाई जाती थी। बीते 4 साल से पंजाब सरकार ने यह योजना भी बंद कर रखी है जिस कारण बिना किसी भी तरह की जरूरी सुविधा के इन झुग्गी-झोंपडिय़ों में रहने वाले लोग नारकीय जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर हैं, जबकि हर सरकार समय-समय पर तथा विशेष कर हर चुनाव में नागरिकों के जीवन का स्तर ऊंचा उठाने के झूठे वायदे कर इन झुग्गी-झोंपड़ी वालों के वोट प्राप्त करती है।
क्या हालत है इन झुग्गी-झोंपडिय़ों वालों की
यदि इन झुग्गी-झोंपडिय़ों में जाकर देखा जाए तो पता चलता है कि ये लोग नर्क-सा जीवन सालों से व्यतीत कर रहे हैं। सुविधा के नाम पर इनके पास एक भी जीवन जीने के लिए सुविधा नहीं है। एक मानव के लिए जो जरूरी सुविधाएं होती हैं वे भी इन्हें पूरा जीवन नसीब नहीं होतीं। प्लास्टिक की तिरपाल डाल कर बनाए अपनी टपरी में यहां सारा परिवार रहता है तथा सुरक्षा की दृष्टि से भी ये झुग्गी-झोंपड़ी वाले सुरक्षित नहीं माने जाते।
एक गंदे नाले के किनारे पर ये अपनी झुग्गियां बना कर रहते हैं तथा पुरुषों, महिलाओं व बच्चों को खुले में ही शौच आदि के लिए जाना पड़ता है। आसपास कहीं नल लगा हो तो वहां से पानी भर कर अपनी झुग्गी-झोंपड़ी में ये पानी सुरक्षित रखते हैं जिसे खाना बनाने के लिए तथा पीने के लिए प्रयोग करते हैं परंतु यह पानी देखा जाए तो पीने के योग्य नहीं होता।
बरसात के मौसम में नाले हो जाते हैं ओवरफ्लो
इन झुग्गियों में रहने वाले राजू, रवि कुमार, छिन्दा, शिन्दों तथा रिषी आदि का कहना है कि हम सभी परिवार अपनी-अपनी टपरी बना कर शहर के बाहरी इलाके से निकलने वाली सेम डे्रन के किनारे रहते हैं क्योंकि लोग हमें अपनी जमीन में रहने की इजाजत नहीं देते। यह सेम ड्रेन का किनारा सरकारी जमीन है जिस कारण यहां झुग्गी बनाना हमारी मजबूरी है परंतु जब बरसात के मौसम में इस नाले में बरसात का पानी आने से नाला ओवरफ्लो हो जाता है तो नाले का पानी हमारी झुग्गियों में आ जाता है जिस कारण हमारे लिए झुग्गियोंं में रहना भी कठिन हो जाता है।
बच्चों का भविष्य कुछ नहीं है
इन लोगों ने कहा कि हमारे बच्चे जवान हो चुके हैं तथा लड़के प्लास्टिक लिफाफे आदि शहर से इकट्ठे कर परिवार चलाते हैं। जवान लड़कियों को भी प्लास्टिक के लिफाफे आदि इकट्ठा करने के लिए जाना पड़ता है तथा उसे बेच कर हम अपना परिवार चलाते हैं। बच्चों का विवाह कैसे करेंगे या इन लड़कियों से विवाह कौन करेगा यह समस्या हमें सता रही है। हम समाज में 2 नंबर के नागरिक समझे जाते हैं तथा लोग हम पर विश्वास भी नहीं करते। हमें घरों में काम नहीं दिया जाता तथा हम झुग्गियों में रहने वालों के लिए ये झुग्गियां ही सारा संसार हैं।
न शौचालय, न पीने वाला पानी न सीवरेज, न बिजली की सुविधा
इन झुग्गियों में रहने वाले लोगों का कहना कि उन्हें प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत का कुछ पता नहीं है। उनकी झुग्गियों में न तो शौचालय है तथा न ही पीने वाले पानी की कोई सुविधा है। बिजली तथा सीवरेज व्यवस्था क्या होती है इनको इसकी जानकारी नहीं है। शौच के लिए साथ लगती सेम ड्रेन के किनारों का प्रयोग करना इनकी मजबूरी है।
महिलाएं तथा बच्चे कई तरह की बीमारियों के हैं शिकार
यदि इन झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाले बच्चों तथा महिलाओं के चेहरों पर नजर मारी जाए तो इनके चेहरे देखने से ही पता चल जाता है कि ये कई तरह की बीमारियों की शिकार हैं। इनकी नियमित स्वास्थ्य की जांच की सुविधा नहीं है। पोलियो बूंदें पिलाने के लिए सेहत विभाग जरूर आता है। बच्चों में चर्म रोग, छाती रोग तथा पेट की बीमारियों का पूरा जोर है। बच्चों के माता-पिता भी कई तरह की बीमारियों के शिकार हैं। स्वास्थ्य विभाग कभी-कभी खानापूर्ति के लिए यहां आता है तथा फोटो खिंचवा कर चला जाता है।