PCR दस्ते थानों से अटैच होने से क्राइम ग्राफ बढ़ा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Dec, 2017 10:53 AM

pcr police

सर्दी बढऩे के साथ जैसे-जैसे पारा गिरता जा रहा है वैसे-वैसे कमिश्नरेट में क्राइम ग्राफ तेजी से ऊपर जा रहा है। चोरी, स्नैचिंग की वारदातें पिछले करीब 2 महीने से रोजाना अखबारों की सुर्खियां बनती जा रही हैं। चोर/लुटेरों की रफ्तार तो तेज हुुई है, लेकिन...

जालंधर(प्रीत) : सर्दी बढऩे के साथ जैसे-जैसे पारा गिरता जा रहा है वैसे-वैसे कमिश्नरेट में क्राइम ग्राफ तेजी से ऊपर जा रहा है। चोरी, स्नैचिंग की वारदातें पिछले करीब 2 महीने से रोजाना अखबारों की सुर्खियां बनती जा रही हैं। चोर/लुटेरों की रफ्तार तो तेज हुुई है, लेकिन कमिश्नरेट पुलिस की रफ्तार धीमी हो गई है। कभी तेज रफ्तार के लिए जाने जाते पी.सी.आर. दस्ते की रफ्तार भी स्लो हो गई है, क्योंकि कुछ महीने पहले तक इंडीपैंडैंटली मूव करने वाला पी.सी.आर. दस्ता थानों के साथ अटैच कर दिया गया है। शहर में किसी भी वारदात स्थल पर 3 मिनट में पहुंचने की बजाए अब पी.सी.आर. कर्मी बेहद देरी से पहुंच रहे हैं। दिन के समय तो पी.सी.आर. दस्ते नजर आते हैं, लेकिन रात के समय पी.सी.आर. दस्ते नदारद रहते हैं। 


रात को नहीं दिखती पी.सी.आर. टीमें 
पंजाब केसरी टीम ने करीब 10 दिन पहले भी रात के समय शहर के हालात का जायजा लिया था। किसी भी चौक या मुख्य मार्ग पर पी.सी.आर. टीमें नजर नहीं आई। इसी तथ्य से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुलिस की रफ्तार बेहद कम है। पता चला है कि थानों से अटैच करने से पहले रात के समय थाना पुलिस फोर्स के साथ साथ पी.सी.आर. टीमें अलग से अपने एरिया में वर्क करती और सक्रिय रहती, लेकिन थानों से अटैच होने के पश्चात रात में शहर में पुलिस फोर्स की मूवमैंट खत्म हो गई है। रात के समय पी.सी.आर. टीमें गायब रहती हैं।

लेट लतीफी के धब्बे को धोने के लिए हुआ था पी.सी.आर. का गठन
करीब 10 साल पहले अक्सर लोगों की शिकायत होती कि पुलिस मौके पर तुरंत नहीं पहुंचती। पुलिस पर लग रहे लेट लतीफी के धब्बे को धोने के लिए साल 200& में जालंधर में आई.पी.एस. हरप्रीत सिंह सिद्धू ने पी.सी.आर. दस्तों को गठन किया। पी.सी.आर. टीमों का थाना पुलिस वर्किंग से कोई सीधा सम्पर्क नहीं था। पी.सी.आर. टीमें सीधे तौर पर पुलिस कन्ट्रोल रूम से अटैच रखी गई और डी.एस.पी. रैंक का अधिकारी इन टीमों की सुपरविजन के लिए तैनात किया गया। उद्देश्य यही था कि किसी भी वारदात या घटना की सूचना मिलते ही एरिया में तैनात पी.सी.आर. टीम तुरंत मौके पर पहुंचे और हुआ भी ऐसा ही। पुलिस मूवमैंट तेज नजर आने लगी। लेकिन अब अचानक पी.सी.आर. दस्ते की मूवमैंट स्लो हो गई है। पता चला है कि शहर में इंडीपैंडैंटली वर्क करने वाले पी.सी.आर. दस्ते को थानों के साथ अटैच कर दिया गया है, जिस कारण पी.सी.आर. दस्ते में तैनात कर्मियों की जवाबदेही खत्म हो गई है।

थानों के रूटीन कामों में बिजी हैं पी.सी.आर. कर्मी!
सूत्रों ने बताया कि पी.सी.आर. टीमों का काम पहले सिर्फ शहर में अपने अपने एरिया-बीट में गश्त पर रहना और तुरंत मौके पर पहुंचना होता था। लेकिन अब पी.सी.आर. कर्मी थाना में ही दिखाई देते हैं। पुलिस सूत्रों के मुताबिक पी.सी.आर. दस्ते के कर्मचारी अपना एरिया/बीट छोड़ कर थाना के रूटीन कार्यों में बिजी दिखाई दे रहे हैं। बताया जा रहा है कि कभी कर्मचारी पकड़े गए आरोपियों को कपूरथला जेल छोडऩे भेजे जा रहे हैं और कभी थाना के किसी और काम में। पी.सी.आर. मोटरसाइकिल थाना में ही दिखते हैं।

अन्य जिलों में पी.सी.आर. दस्ता इंडीपंैडैंट
जब पी.सी.आर. का गठन हुआ तो पंजाब सरकार द्वारा इसके लिए अलग से फंड व कर्मचारी तैनात किए गए। उक्त कर्मचारियों को विशेष प्रशिक्षण दिया गया। जिस जिला में भी पी.सी.आर. दस्ते तैनात हुए सभी इंडीपैंडैंटली मूव कर रहे हैं, लेकिन कमिश्नरेट जालंधर में पी.सी.आर. टीमों को थानों के साथ जोड़ दिया गया है। थाना पुलिस की स्लो रफ्तार ने अब पी.सी.आर. को भी स्लो कर दिया है।
शहर में तैनात अतिरिक्त फोर्स, क्राइम फिर भी कन्ट्रोल में नहीं
कमिश्नरेट जालंधर में पहले से ही मजबूत पुलिस फोर्स टीम है लेकिन पिछले हफ्ते निगम चुनावों के मद्देनजर 650 कर्मचारी अतिरिक्त तैनात किए गए। इतनी फोर्स के बावजूद चोरी, स्नैचिंग की वारदातें लगातार जारी रहने से स्पष्ट है कि कहीं न कहीं प्रबंधन में कमी अवश्य है। इतनी फोर्स को सही ढंग से यूटिलाइज नहीं किया जा रहा।

ए.डी.सी.पी. या ए.सी.पी. की थी डायरैक्ट सुपरविजन, कर्मचारियों की थी जवाबदेही तय
2 महीने पहले पी.सी.आर. दस्ते की सुपरविजन ए.डी.सी.पी. या ए.सी.पी. रैंक के अधिकारी के पास होती। दस्ते में तैनात 120 कर्मचारी 2 शिफ्टों में काम करते। एक शिफ्ट में &0 मोटरसाइकिल यानी 120 कर्मचारी शहर में गश्त पर रहते। इसके साथ 27 जूलो गाडिय़ां भी सक्रिय रहती। ए.डी.सी.पी. या ए.सी.पी. रैंक के अधिकारी दिन -रात के समय दस्ते के कर्मचारियों की मूवमैंट चैक करते और जवाबदेही तय रहती लेकिन अब ऐसा नहीं है। सुपरविजन इंस्पैक्टर रैंक की आ जाने के कारण कर्मचारियों की जवाबदेही कम हो गई है।

पी.सी.आर. टीमों को विशेष सुविधाएं पर फायदा नहीं दिख रहा
शहर में पुलिस तत्परता दिखाने के लिए पी.सी.आर. को अ‘छा खासा बजट दिया गया। थानों के अतिरिक्त पी.सी.आर. दस्ते की 27 जूलो गाडिय़ों को दिन में 4 लीटर डीजल तथा 60 मोटरसाइकिलों को 2 लीटर पैट्रोल विभाग द्वारा दिया जाता है। सुविधाएं तो अब भी हैं, लेकिन इसका फायदा मिलता नहीं दिख रहा।

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