Edited By Punjab Kesari,Updated: 02 Feb, 2018 04:51 PM
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने मोहाली जिले की ग्राम पंचायत माजरियां द्वारा सीनियर एडवोकेट पुनीत बाली के माध्यम से डाली गई
चंडीगढ़ (बृजेन्द्र): पंजाब के कुछ इलाकों में ग्रामीण भू-मालिकों के जमीन संबंधी अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने को लेकर सरकार द्वारा संभावित रुप से जारी की जाने वाली नोटिफिकेशन के खिलाफ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई। ग्राम पंचायत माजरी की ओर से दायर याचिका में मांग की गई थी कि प्रतिवादी पक्ष पर पंजाब लैंड प्रिजर्वेशन एक्ट(पीएलपीए) की धारा 4 व 5 के तहत नोटिफिकेशन जारी करने पर रोक लगाई जाए। वहीं कहा गया कि या ग्राम पंचायत माजरियां बनाम केंद्र सरकार के वर्ष 2015 के केस में फरवरी, 2017 में हाईकोर्ट के फैसले में दिए गए निर्देशों की पालना के बाद कार्रवाई की जाए।
इसके अलावा मांग रखी गई थी कि पहले पीएलपीए की धारा 14 व 15 के प्रावधानों के तहत भू-मालिकों का मुआवजा निर्धारित कर उनमें वितरित करें। उसके बाद ही पीएलपीए की धारा 4 च 5 के तहत ताजा प्रतिबंधों को लगाने की कार्रवाई की जाए। हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए पाया कि सरकार ने फिलहाल इस संबंध में कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं की है इसलिए यह याचिका प्री-मैच्योर है। हालांकि हाईकोर्ट ने सरकार को स्पष्ट किया कि इस मामले से जुड़े हाईकोर्ट के 8 फरवरी, 2017 के आदेशों की पालना करते हुए ही कोई नोटिफिकेशन जारी की जाए। इसके साथ ही संबंधित याचिका का निपटारा कर दिया गया।
कहा है पूरा मामला
याचिका में पंजाब सरकार, प्रिंसीपल चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट, चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट(हिल्स), डिप्टी कमिश्नर, मोहाली तथा डिविजनल फोरेस्ट ऑफिसर, मोहाली को पार्टी बनाया था। याचिका में कहा गया था कि पंजाब के कुछ इलाकों जो शिवालिक मांऊटेन रेंज में या इससे सटे हैं, उस निश्चित हिस्से के अच्छे से संरक्षण व सुरक्षा को लेकर वर्ष 1990 में पंजाब सरकार संबंधित एक्ट लाई थी। यह एक्ट समय के साथ-साथ संशोधित होता गया। गौरतलब है कि 3 फरवरी, 2003 को जारी हुई पूर्व नोटिफिकेशन 3 फरवरी को खत्म हो जाएगी।
याचिका के मुताबिक 8 फरवरी, 2017 के हाईकोर्ट के फैसले की पालना करने की बजाए प्रतिवादी पक्ष ने 25 जनवरी को एक्ट की धारा 4 के तहत नोटिफिकेशन को पुन: जारी करना शुरु कर दिया। इसे 3 फरवरी तक पूरा करने पर विचार किया जा रहा है। भू-मालिकों के संपत्ति अधिकारों को सीमित करने के समय अथॉरिटी ने अपना दिमाग नहीं लगाया। सरकार ने इस पर कोई जांच नहीं की कि वह खुद को संतुष्ट कर सके कि एक्ट के तहत प्रस्तावित पाबंदी भूमि कटाव के लिए आवश्यक है। कुछ भू-मालिकों ने प्रतिवादी को हाईकोर्ट के फैसले की पालना को लेकर कानूनी नोटिस भी भेजे थे। जिस पर चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट(हिल्स) ने कंजरवेटर ऑफ फोरेस्ट, शिवालिक सर्कल को 25 जनवरी को पत्र लिख हाईकोर्ट आदेशों की पालना के लिए कहा था। याचिका में कहा गया है कि प्रतिवादी पक्ष जल्दबाजी में एक्ट के तहत प्रतिबंध लागू करने में लगा हुआ है। याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट अपने आदेशों में राज्य सरकार को प्रभावित लोगों के लिए मुआवजा निर्धारित करने व जारी करने के लिए कह चुका है। जिस पर अभी तक कार्रवाई नहीं हुई। कहा गया है कि यह राज्य की ड्यूटी है कि उन लोगों को मुआवजा प्रदान करे जिनके संपत्ति अधिकारों को सीमित कर दिया गया है। एक्ट के प्रावधानों को आधार बनाते हुए कहा गया है कि उसमें साफ है कि प्रतिबंध केवल अस्थाई रुप से लगाए जा सकते हैं और यह केवल उचित्त व प्रभावी जांच के बाद ही लगाए जा सकते हैं।