पटियाला का ‘किला’ भेदना मुश्किल है पर असंभव नहीं

Edited By Updated: 19 Jan, 2017 02:24 AM

patiala fort piercing is difficult but not impossible

इस बार पटियाला विधानसभा सीट को लेकर दो फौजियों के बीच...

पटियाला(रमनजीत सिंह/अश्वनी कुमार): इस बार पटियाला विधानसभा सीट को लेकर दो फौजियों के बीच जोरदार ‘जंग’ होने जा रही है। अकाली-भाजपा गठबंधन ने जहां जनरल जे.जे. सिंह को उम्मीदवार बनाया है तो वहीं कांग्रेस ने अपने दिग्गज नेता कैप्टन अमरेंद्र सिंह को टिकट दी है। कैप्टन लगातार तीन बार इस सीट से जीत हासिल कर चुके हैं। 


पंजाब के इतिहास में अब तक के कांग्रेस के सबसे छोटे माने जा रहे चुनावी अभियान के दौरान भले ही कैप्टन राज्यभर में चुनाव प्रचार में व्यस्त रहें इसके बावजूद इसकी संभावना कम ही जताई जा रही है कि विरोधी दल कैप्टन अमरेंद्र के ‘पटियाला किले’ को भेद सकेंगे। लोगों का मानना है कि किला भेदना मुश्किल जरूर है लेकिन असंभव नहीं क्योंकि ऐसी कई बातें हैं जो ‘मोती महल’ के खिलाफ जाती हैं। यदि विरोधी दल लोगों के सैंटीमैंट्स को पकड़कर आगे बढ़ते हैं तो संभव है कि नतीजा बदला जा सके। साथ ही कैप्टन के दो सीटों से चुनाव लडऩे के कारण भी इस बार किले को भेद सकने की प्रबल संभावनाएं बन रही हैं। 


पटियाला सिटी का वोटर भी चुप्पी साधे हुए है लेकिन यह लोकसभा चुनाव की ही तरह महसूस की जा रही है। हालांकि यह भी देखने को मिल रहा है कि शाही परिवार भी पटियाला सिटी के वोटर्स को ‘टेकन फॉर ग्रांटेड’ लेने की भूल दोहराने के मूड में नहीं है। लंबी से शिअद प्रत्याशी जीते तो मुख्यमंत्री और पटियाला से कांग्रेस प्रत्याशी जीते तो मुख्यमंत्री। यही वजह है कि लंबी की तरह पटियाला विधानसभा क्षेत्र का चुनावी माहौल भी हॉट-हॉट है।


 

कांग्रेस का रहा है पलड़ा भारी
चंडीगढ़। पटियाला में अब तक हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है। वर्ष 1957 से अब तक 15 बार चुनाव और उप-चुनाव हुए जिनमें से 10 बार कांग्रेस का उम्मीदवार विजयी रहा है। इसके अलावा तीन बार शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार ने जीत हासिल की है जबकि पांच बार उसे हार का सामना करना पड़ा है। वर्ष 2002 से लेकर अब तक कांग्रेस ही जीती है जिनमें से वर्ष 2002, 2007 और 2012 में कैप्टन अमरेंद्र ने अकाली दल को मात दी है। वहीं वर्ष 2014 में हुए उप-चुनाव में कैप्टन की पत्नी परनीत कौर ने चुनाव लड़ा और अकाली दल के भगवान दास जुनेजा को 23 हजार से अधिक वोटों से पराजित किया था। चुनाव आयोग के अनुसार पटियाला विधानसभा क्षेत्र में कुल 1,40,314 पंजीकृत मतदाता हैं जिनमें से 73,852 पुरुष और 66,462 महिला वोटर हैं।


 

कैप्टन सियासत में जनरल से ‘सीनियर’
पटियाला विधानसभा क्षेत्र से इस बार सेना के दो बड़े दिग्गज आमने-सामने होंगे। हालांकि जनरल सिंह अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल रह चुके हैं लेकिन कैप्टन अमरेंद्र को राजनीति में ज्यादा अनुभव है। जनरल सिंह जहां सेना के सर्वाेच्च पद पर रह चुके हैं वहीं कैप्टन पंजाब के मुख्यमंत्री बन चुके हैं। दोनों ही उम्मीदवार एक-एक बार पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में भी शामिल रहे हैं। कैप्टन अमरेंद्र जहां वर्ष 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई में शामिल थे वहीं जनरल सिंह 1971 के अलावा ऑपरेशन कारगिल में भी शामिल थे। कैप्टन के सेना में भर्ती होने के लगभग एक साल बाद जे.जे. सिंह भर्ती हुए थे। वर्ष 1980 में कैप्टन सेना को छोड़कर राजनीति में आ गए जबकि जनरल सिंह ने 46 साल सेना में सेवा के बाद सेवानिवृत्ति ली।


 

सत्ताविरोधी लहर के साथ-साथ शहर का विकास और व्यवस्था भी मुद्दा
यहां से पोलो ग्राऊंड व मोती महल की तरफ बढ़ती सड़क पर चलते हुए कुछ दूरी पर ही चुनावों की वजह से कामकाज में आई थोड़ी मंदी के बीच अपनी दुकानों के बाहर जमे बैठे दुकानदारों से बातचीत हुई। राजनीतिक हवा के बारे में पूछने पर एकबारगी तो चुप्पी पसर गई, लेकिन फिर पूरे पंजाब में त्रिकोणीय मुकाबला होने का हवाला देते हुए पटियाला में भी ऐसी ही स्थिति बयां की गई। सत्ताविरोधी लहर के साथ-साथ शहर के विकास, व्यवस्था को भी मुद्दा बताया गया। शहर के भीतरी इलाकों में प्रशासनिक अनदेखी और राजनीतिक हित ही अव्यवस्था का कारण बन रहे हैं। अतिक्रमण की वजह से रास्ते और भी संकरे होते जा रहे हैं और अव्यवस्थित व अनियंत्रित वाहनों की पार्किंग सिरदर्द बनी हुई है। बारिश के दिनों में इलाके में पानी भर जाना आम बात है। इन सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है लेकिन इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और सत्ता का साथ जरूरी है। यही सोचकर पटियाला के लोग मतदान करेंगे।


 

लोगों में वी.आई.पी. टैग का लालच भी
हालांकि पटियाला सिटी के लोगों में इस बात को लेकर रोष भी है कि कैप्टन अमरेंद्र अमूमन आम लोगों की पहुंच से दूर रहते हैं लेकिन कांग्रेस द्वारा सत्ता हासिल करने की स्थिति में कैप्टन के सी.एम. बनने की उम्मीद वोटरों को ललचा रही है। शायद यही कारण है कि पटियाला शहर के भीतरी इलाकों के बाशिंदे अभी भी कैप्टन के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान हुए पटियाला शहर के विकास कार्यांे को याद करते हैं।

 

अकाली का नया प्रयोग फौजी पर दाव खेला 
इस रियासती सीट पर अकाली दल भी जीत का परचम लहराने के लिए भरसक प्रयास में है। इसी क्रम में अकाली-भाजपा ने ‘कैप्टन’ के मुकाबले ‘जनरल’ को खड़ा किया है। हालांकि जनरल पर ‘बाहरी’ टैग लगा होने के कारण अंदरखाते विरोध भी है जिसे पार्टी लीडरशिप शांत करने के लिए प्रयासरत रही और फलीभूत होती नजर आ रही है। अकाली दल इससे पहले भी 2015 के उपचुनाव में ङ्क्षहदू प्रत्याशी उतारने का प्रयोग कर चुका है जबकि इस बार ‘फौजी’ पर दांव लगाते हुए नया प्रयोग सफल होने की उम्मीद लगाए बैठा है।

 

‘आप’ कर सकती है ‘सॢजकल स्ट्राइक’ 
उधर, आम आदमी पार्टी की तरफ से चुनाव मैदान में डॉक्टर बलबीर सिंह मौजूद हैं और युद्ध कला के माहिर दोनों ही पूर्व फौजियों को ‘सॢजकल स्ट्राइक’ के जरिए हराने की कोशिश में है। राज्यभर में चल रही सत्ता विरोधी लहर का फायदा आम आदमी पार्टी पटियाला में भी मिलने की उम्मीद कर रही है लेकिन यहां से पार्टी टिकट पर सांसद बने डॉक्टर धर्मवीर गांधी आप की राह का सबसे बड़ा रोड़ा बनकर मजबूती से जमे हुए हैं।


 

राजनीति में आने वाले जनरल सिंह सेना के दूसरे बड़े अफसर
यह पहली बार नहीं है जब सेना के जनरल को किसी राजनीतिक पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है। इससे पहले भाजपा ने जनरल वी.के. सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया था। सेवानिवृत्ति के बाद जनरल सिंह भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ बाबा रामदेव के विरोध प्रदर्शन में दिखाई दिए थे। इसके बाद मार्च 2014 में जनरल सिंह ने भाजपा ज्वॉइन कर ली। 2014 में ही भाजपा ने उन्हें गाजियाबाद लोकसभा हलके से उम्मीदवार बनाया। उन्होंने कांग्रेस के राज बब्बर को हराया था।


इसलिए वोट दें; जीतने वाला प्रत्याशी उपलब्ध रहेगा या नहीं
अन्य शहरों के मुकाबले पटियाला पर सरकार के खजाने का करम थोड़ा कम ही रहा। अनारदाना चौक के नजदीक ही जौडिय़ां भट्ठियां के चौक में बनी स्टेज पर जब पहुंचे तो चुनावी चर्चा का माहौल चल रहा था। कैप्टन के लंबी से भी चुनाव लडऩे पर ‘वोटरों का पक्ष-विपक्ष’ आमने-सामने था। लोगों का कहना था कि कांग्रेस को इस बार हार नजर आ रही है इसलिए कैप्टन को दो सीटों पर उतारा है। दूसरी तरफ इस कदम को सही बताने वाले भी डटे रहे। एक सज्जन बोले कि इस बात को ध्यान में रखकर मतदान करें कि जीतने वाला उनके लिए उपलब्ध रहेगा या नहीं, लेकिन पता नहीं क्यों पटियाला के वोटर सिर्फ ‘वी.आई.पी.’ में ही खुश हो जाते हैं।

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