Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Jan, 2018 08:45 PM
साल 2016 में लागू की गई नोटबन्दी का प्रभाव सभी कामों और वर्गों पर अभी तक देखने को मिलने रहा है, जिस के कारण दीवाली का प्रसिद्ध त्योहार भी फीका रहा और इस बार की लोहड़ी भी पैसे की कमी के कारण मंदी की मार में गुजर रही है। त्योहार चाहे कोई भी रहा है,...
ममदोट(संजीव, धवन): साल 2016 में लागू की गई नोटबन्दी का प्रभाव सभी कामों और वर्गों पर अभी तक देखने को मिलने रहा है, जिस के कारण दीवाली का प्रसिद्ध त्योहार भी फीका रहा और इस बार की लोहड़ी भी पैसे की कमी के कारण मंदी की मार में गुजर रही है। त्योहार चाहे कोई भी रहा है, पिछले एक साल से पैसों की कमी के कारण हर वर्ग के लिए मायूसी भरा और फीका ही नजर आ रहा है।
खुशाहल माने जाते पंजाब में कनाडा की तरह प्रवासी लोगों इधर त्योहारों के सीजन दौरान अच्छी कमाई का जरिया मान कर रोजगार के लिए आते हैं परन्तु इस बार मायूसी के आलम में डूबे हुए नजर आ रहे हैं। कुल मिला कर आर्थिक मंदहाली कारण सभी वर्गों के खुशियां भरे रंग-बिरंगे, प्राचीन और रिवायती लोहड़ी जैसे त्योहार अपने रंग और लोकप्रियता भूलते दिखाई दे रहे हैं। पिछले साल के मुकाबले मूंगफली के रेटों में भारी गिरावट होने के बावजूद बस-स्टैंडों, मैन चौकों, बजारों के इलावा दुकानों के आगे अड्डे बना कर बैठे मूंगफली विक्रेता मंदी कारण परेशान दिखाई दे रहे हैं।
असंतुलित बजट कारण लोहड़ी का त्योहार फीका हैं- मूंगफली विक्रेता तरसेम कुमार
पिछले कई दिनों से अच्छी उम्मीद के साथ बड़े स्तर पर शुरू किए मूंगफली के धंधे पर नोटबन्दी का बुरा प्रभाव देखने को मिल रहा। इससे कुछ साल पहले नव-विवाहित जोड़ों और लड़का पैदा हुए घर वाले 20 से 30 किलोग्राम मूंगफली बांट कर खुशियां सांझी करते हैं परन्तु इस बार घरों में 3-4 किलोग्राम मूंगफली के साथ गुजारा कर रहे हैं। इस बार असंतुलित बजट के कारण लोहड़ी का त्योहार फीका है।
महंगाई और पैसों की कमी ने सभी त्योहार फीके किए- किंटू बजाज किराना मरचैंट
दिनों-दिन बढ़ रही महंगाई और पैसों की कमी ने सभी बजट बिगाड़ दिए हैं और पैदा हुए असंतुलन ने बाजारों में मंदी फैलाई है जिस के साथ त्योहार फीके हो गए हैं। नोटबन्दी से पहले किसी भी त्योहार में कई दिन पहले बाजारों में रौणकें शुरू हो जातीं परन्तु पिछले एक साल से मंदी का बोलबाला नजर आ रहा है।
बाजार में सभी धंधों पर नोटबन्दी ने प्रभाव पाया है- तरलोक चंद स्वामी दुकानदार
बाजारों में सभी धंधे चौपट हो चुके हैं और आर्थिक मंदहाली कारण रिवायती और प्राचीन त्योहारों को मंहगाई के दौर में और ज्यादा पैसे खर्च कर पाना कठिन हो गया है, जिस से लोगों की सभी त्योहारों प्रति रूचि घटती नजर आ रही है।