Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Jan, 2018 10:17 AM
मोदी सरकार 2014 में हर वर्ष 1 करोड़ रोजगार पैदा करने के वायदे के साथ सत्ता में आई थी। युवाओं को भाजपा की नीतियां खूब भायी थीं और पहली बार वोटर बने 80 प्रतिशत युवाओं ने भाजपा को वोट डाल उसे पूर्ण तौर पर सत्ता सौंपी थी। मगर रोजगार की बात करें तो मोदी...
जालंधर (रविंदर शर्मा): मोदी सरकार 2014 में हर वर्ष 1 करोड़ रोजगार पैदा करने के वायदे के साथ सत्ता में आई थी। युवाओं को भाजपा की नीतियां खूब भायी थीं और पहली बार वोटर बने 80 प्रतिशत युवाओं ने भाजपा को वोट डाल उसे पूर्ण तौर पर सत्ता सौंपी थी। मगर रोजगार की बात करें तो मोदी सरकार इस वायदे पर पूरी तरह से असफल साबित हुई है। नोटबंदी व जी.एस.टी. ने तो रोजगार की कमर ही तोड़ कर रख दी है।
नोटबंदी व जी.एस.टी. ने एम.बी.ए. व इंजीनियरिंग की डिग्रियों को रद्दी कर दिया है। इंडस्ट्री और कॉमर्स एसोसिएशन एसोचैम ने कहा कि बी श्रेणी के बिजनैस स्कूलों को अपने विद्यार्थियों को रोजगार दिलाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। संगठन के अनुसार महज 20 फीसदी विद्यार्थियों को ही रोजगार मिल पा रहे हैं। आजाद भारत में यदि इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के लिए कई दशकों तक इंजीनियरिंग की डिग्री ने अहम भूमिका निभाई तो वहीं 1991 से अभी तक उदारवाद की दिशा में रफ्तार देने का काम मैनेजमैंट की डिग्री (एम.बी.ए.) ने किया। 1991 के बाद देश में निजी क्षेत्र ने एम.बी.ए. से लैस वर्कफोर्स के सहारे अपने कारोबार में जिस तरह से इजाफा किया कि जल्द एम.बी.ए. देश में पैसा कमाने का दूसरा प्रोफैशन बनकर तैयार हो गया। मगर ताजा आंकड़ों को देखते हुए एसोचैम ने कहा कि नवम्बर 2016 में नोटबंदी के ऐलान व जी.एस.टी. लागू होने के बाद कमजोर कारोबारी धारणा और नई परियोजनाओं में गिरावट के कारण इन बिजनैस स्कूलों के विद्यार्थियों के लिए रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं।
एसोचैम के पिछले साल तक लगभग 30 प्रतिशत एम.बी.ए. पास करने वाले विद्यार्थियों को रोजगार का अवसर आसानी से मिल रहा था। एसोचैम के अनुसार बिजनैस स्कूलों और इंजीनियरिंग कॉलेजों के विद्यार्थियों को मिलने वाले वेतन पेशकश में भी पिछले साल की तुलना में 40 से 45 प्रतिशत की गिरावट आई है। ऑल इंडिया काऊंसिल फॉर टैक्रिकल एजुकेशन के आंकड़ों के मुताबिक 2016-17 के दौरान देश में 50 फीसदी से अधिक एम.बी.ए. ग्रैजुएट को बाजार में नौकरी नहीं मिल सकी। इससे यही लगता है नोटबंदी व जी.एस.टी. से एम.बी.ए. और इंजीनियरिंग की आधी डिग्रियां रद्दी हो गई हैं। हालांकि इन आंकड़ों में देश के प्रीमियर इंस्टीच्यूट आई.आई.एम. के आंकड़े शामिल नहीं हैं क्योंकि आई.आई.एम. का टैक्रिकल काऊंसिल से संबंध नहीं है। गौर हो कि देश में लगभग 5000 ए.बी.एम. इंस्टीच्यूट से 2016-17 के दौरान लगभग 2 लाख ग्रैजुएट निकले, मगर इनमें से अधिकतर के लिए जॉब मार्कीट में नौकरी मौजूद नहीं थी। यही हालत बीते वर्ष देश के इंजीनियरिंग कालेजों का रहा, जिसके असर से इस साल इंजीनियरिंग कालेजों में एडमिशन का दौर खत्म होने के बाद भी आधी से ज्यादा सीटें खाली रह गई हैं।