Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Sep, 2017 03:04 PM
केंद्र सरकार द्वारा राज्य में गत वर्ष 8 नवम्बर को नोटबंदी लागू की गई थी, जिसके तहत 500 तथा 1000 रुपए के पुराने नोटों को बंद कर दिया
जालंधर(धवन): केंद्र सरकार द्वारा राज्य में गत वर्ष 8 नवम्बर को नोटबंदी लागू की गई थी, जिसके तहत 500 तथा 1000 रुपए के पुराने नोटों को बंद कर दिया गया था। नोटबंदी के कारण जहां अनेक उद्योगों पर असर पड़ा है वहीं आलू उत्पादक अभी तक नोटबंदी की मार से उभर नहीं पाए हैं। बाजार में आलू की कीमतें औंधे मुंह गिरी हुई हैं। आलू की कीमत 1 से 2 रुपए प्रति किलो चल रही है, जबकि आलू को स्टोर करने की लागत 3 रुपए प्रति किलो आती है।
आलू का पुराना स्टॉक अभी क्लीयर नहीं हुआ है, इसलिए व्यापारी आलू की नई फसल को खरीदने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। बाजार में आलू की अत्यधिक मात्रा हो गई है जबकि उसकी मांग इतनी अधिक नहीं है कि राज्य में 552 स्टोरों में आलू को स्टोर करने की क्षमता 20 लाख मीट्रिक टन है, जबकि 2016-17 में आलू का उत्पादन ही 25.19 लाख मीट्रिक टन हुआ था, इसलिए अब और फसल को स्टोर करने की क्षमता मार्कीट में मौजूद नहीं है। आलू उत्पादकों का कहना है कि आमतौर पर सितम्बर महीने में कोल्ड स्टोरों में पड़ी 70 से 80 प्रतिशत आलू की फसल को बेच दिया जाता है। इस वर्ष केवल 25 प्रतिशत आलू को बेचा गया है तथा उसे भी कम कीमत पर बेचा गया है।
नोटबंदी के संबंध में जालंधर पोटैटो ग्रोवर्स एसो. के प्रवक्ता जगत प्रकाश सिंह गिल ने बताया कि आलू के बीजों की सप्लाई नवम्बर महीने में की गई थी जब केंद्र सरकार ने नोटबंदी को लागू किया था। अन्य राज्यों के व्यापारियों के पास नकदी नहीं थी तथा आलू उत्पादकों ने उधार देने से इंकार कर दिया था। फरवरी में जब नई फसल आई तो किसानों को बाजार में आलू की अच्छी कीमत नहीं मिल रही थी जिस कारण कइयों ने अपनी फसल को कोल्ड स्टोर में रखवा दिया। उन्होंने बताया कि बाजार में अब आलू की नई फसल आ गई है जबकि पहले से ही कोल्ड स्टोर में फसल भी पड़ी हुई है जिस कारण मांग की तुलना में आलू की सप्लाई काफी अधिक हो गई है जिस कारण कीमतों का नीचे गिरना स्वाभाविक था। देश में आलू उत्पादक के कुल हिस्से में पंजाब का योगदान 5 प्रतिशत है। पश्चिमी बंगाल, बिहार तथा उत्तर प्रदेश में भी आलू का उत्पादन काफी अधिक होता है परन्तु ये राज्य आलू के बीज पंजाब से लेकर जाते हैं। 2016 में किसानों ने पंजाब से बीज नहीं लिए थे बल्कि उनके पास पैसों की कमी थी, क्योंकि नोटबंदी को केंद्र सरकार ने लागू कर दिया था इसीलिए अब आलू की फसल को उत्पादक सड़कों पर फैंकने में लगे हुए हैं। पिछले 3 वर्षों में आलू उत्पादकों के सामने सबसे बदतर स्थिति चल रही है। अब आलू उत्पादक सरकार से सबसिडी की मांग कर रहे हैं तथा साथ ही आलू को निर्यात करने का मामला भी उन्होंने सरकार के सामने रखा हुआ है।