Edited By Updated: 09 Dec, 2016 01:53 PM
नोटबंदी को लेकर चारों ओर मौजूदा समय में हाहाकार वाला माहौल बना हुआ है, जिसके चलते न केवल बेरोजगारी, गरीबी व भुखमरी पैर पसारने लगी है
लुधियाना(खुराना): नोटबंदी को लेकर चारों ओर मौजूदा समय में हाहाकार वाला माहौल बना हुआ है, जिसके चलते न केवल बेरोजगारी, गरीबी व भुखमरी पैर पसारने लगी है, बल्कि धार्मिक स्थलों में लंगर छकने वाले लोगों की संख्या में भी एकाएक भारी बढ़ौतरी हुई है। ऐसे में जहां कुछ धार्मिक स्थलों में कैश में चढऩे वाले चढ़ावे में कमी आई है, वहीं दानी सज्जन भी अपनी चादर देख कर पांव पसारने वाली नीति पर उतर आए हैं, जिसके चलते अधिकतर मंदिरों व गुरुद्वारों में लंगर के लिए राशन, सब्जियां व दालें आदि खरीदने के लिए प्रबंधकों को कुछ परेशानियां हो रही हैं। इसके बावजूद शहर के प्रमुख धार्मिक स्थलों गुरुद्वारा श्री गुरु कलगीधर सिंह सभा,गुरुद्वारा दुख निवारण साहिब व जगराओं पुल के नजदीक पड़ते श्री दुर्गा माता मंदिर के दानी सज्जनों के जोश में कोई कमी नहीं आई है और वे आज भी अपनी कमाई का कुछ हिस्सा धर्म-कर्म के कार्यों में दान करने में लगे हैंं। चढ़ावे के रूप में मिली सहायता से ही उक्त धार्मिक स्थलों पर प्रबंधक जैसे-तैसे लंगर तैयार कर संगत में वितरित कर रहे हैं।
गुरुद्वारा दुख निवारण साहिब में नतमस्तक हो रही संगत ने नोटबंदी के बाद बने हालात के बारे में जिक्र करते हुए कहा कि असल में गुरुद्वारों में लंगर की प्रथा करीब 535 वर्ष पहले गुरु नानक देव जी ने अपने पिता मेहता कालू द्वारा व्यापार के लिए दिए गए 20 रुपए से शुरू की थी, जोकि आज तक निरंतर चली आ रही है और गुरबाणी के आदेशों के मुताबिक प्रत्येक सिख अपनी कमाई का 10वां हिस्सा धर्म-कर्म के लिए दसवंद के रूप में दान करता है, इसलिए अधिकतर संगत द्वारा आज नोटबंदी के बावजूद गुरुद्वारों में अपनी जेब के हिसाब से आटा, सब्जियां, दालें व अन्य राशन सामग्री भेजी जा रही है, जिसमें कुछ गिरावट जरूर आई है, परंतु बावजूद इसके गुरुद्वारे में लंगर की प्रथा बरकरार चल रही है।