नोटबंदीः गुरुद्वारों के लंगर भी हो रहे  प्रभावित

Edited By Updated: 09 Dec, 2016 12:55 PM

note bandi effect on gurudwara langar

नोटबंदी को आज एक माह पूरा होने के बाद भी लोगों में हाहाकार मची हुई है। बैंकों के पास करंसी बेहद कम आ रही है और जनता को अपने पैसे निकालने के लिए दर-दर धक्के खाने पड़ रहे हैं।

जालंधर(बुलंद): नोटबंदी को आज एक माह पूरा होने के बाद भी लोगों में हाहाकार मची हुई है। बैंकों के पास करंसी बेहद कम आ रही है और जनता को अपने पैसे निकालने के लिए दर-दर धक्के खाने पड़ रहे हैं। ऐसे में भगवान के घर भी इस मंदी की मार से अछूते नहीं हैं। गत दिनों हमारी टीम ने गुरुद्वारों की गौलक और चढ़ावे पर नोटबंदी के प्रभाव के बारे विभिन्न गुरुद्वारों के प्रबंधकों से बात की थी और ये तथ्य सामने आए थे कि गुरुद्वारों के चढ़ावे और पाठों की बुकिंग में 50 फीसदी कमी दर्ज की गई है। ऐसे में एक माह बाद नोटबंदी का असर जानने के लिए हमने इस बार गुरुघरों के लंगरों बारे पता करना चाहा तो पाया कि नोटबंदी ने लोगों को इस कदर मजबूर कर दिया है कि अपने घरों के राशन के लिए भी उन्हें पूरे पैसे नहीं मिल पा रहे, ऐसे में जो लोग खुशी से और श्रद्धापूर्वक गुरु द्वारों में राशन लंगर के लिए चढ़ाते थे, उन्हें बेहद मजबूरीवश अब हाथ खींचकर दान करना पड़ रहा है, क्योंकि लोगों को तो अपनी तन्खाह के पैसे भी बैंकों से नहीं मिल पा रहे तो चढ़ावा बेचारे कैसे दें? ऐसे में शहर के मुख्य गुरुद्वारों के प्रबंधकों से बात की गई तो ऐसे विचार सामने आए-


लंगर में रसद दान करने वालों में आई कमी : बिट्टू
गुरुद्वारा दीवान अस्थान सैंट्रल टाऊन के महासचिव गुरमीत सिंह बिट्टू का कहना है कि गुरुद्वारे में रात को लोग लंगर छकने आते हैं, बेशक गुरुद्वारे की कमेटी द्वारा लंगर के लिए रसद का पूरा इंतजाम किया जाता है पर पहले लंगर में रसद दान करने के लिए बहुत-सी संगत आती थी पर अब उनमें काफी कमी आई है। 

लंगर भेटा में आई है काफी कमी : मंजीत सिंह
गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा, गुरु नानक मिशन चौक के कमेटी मैंबर मनजीत सिंह का कहना है कि जब से देश में नोटबंदी लगी है तब से ही लंगर भेटा में काफी कमी दर्ज की गई है। लंगर की रसद खुद गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को खरीदनी पड़ रही है।

हर किसी को अपने परिवार की चिंता : टोनी
गुरुद्वारा दुख निवारण साहिब, जी.टी.बी.नगर के महासचिव कंवलजीत सिंह टोनी का कहना है कि नोटबंदी ने लोगों को अपने परिवारों की चिंता में डाल दिया है। ऐसे में लंगरों के लिए राशन देने वालों में कमी आना स्वाभाविक है। 
 

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