Edited By Updated: 17 Feb, 2017 12:56 PM
नोटबंदी के कारण देश में किसानों को अपने कृषि उत्पाद बेचने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा। अब नोटबंदी का असर प्याज उत्पादक किसानों पर पड़ा है।
जालंधर (धवन) : नोटबंदी के कारण देश में किसानों को अपने कृषि उत्पाद बेचने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा। अब नोटबंदी का असर प्याज उत्पादक किसानों पर पड़ा है।
प्याज की कीमतें मौजूदा सीजन में निम्नतम स्तर तक पहुंच गई हैं। एक क्विंटल प्याज की कीमत 950 रुपए नासिक में बताई गई है। लस्सल गांव जो देश की सबसे बड़ी प्याज की मार्कीट है, में भारी मंदी देखी गई है। प्याज की पैदावार भी ज्यादा हुई है, जिस कारण भी कीमतों पर असर पड़ रहा है। लस्सल गांव में रोजाना 40,000 क्विंटल लाल प्याज पहुंच रहा है, जबकि पहले इसकी सप्लाई मात्र 12 से 15 हजार क्विंटल हुआ करती थी। प्याज की बम्पर फसल होने के कारण प्याज को भेजने के लिए रेलवे से व्यापारियों ने ज्यादा वैगनों की मांग की है।
प्याज के व्यापारियों द्वारा प्याज अन्य राज्यों में भेजने के लिए रोजाना रेलवे से 40 रैक की मांग की जा रही है, जबकि उन्हें 15 वैगन ही मिल रहे हैं। अगर व्यापारी सड़क मार्ग से प्याज की सप्लाई करते हैं तो उन पर और भी ज्यादा वित्तीय बोझ पड़ जाता है। सड़क मार्ग से प्याज भेजने के लिए व्यापारियों को रोजाना 200 ट्रक चाहिएं।
होलसेल में चाहे प्याज के दाम औंधे मुंह गिरे हुए हैं, परंतु इसके बावजूद प्याज की कीमतों में आई गिरावट का फायदा आम जनता तक नहीं पहुंच पा रहा है। होलसेल में अगर कीमतें 5 से 7 रुपए प्रतिकिलो चल रही हैं तो रिटेल में अब भी प्याज 20 से 22 रुपए प्रतिकिलो बिक रहा है। प्याज उत्पादक किसानों का कहना है कि नोटबंदी तथा अधिक पैदावार दोनों ने ही उत्पादकों पर चोट मारी है।
उन्होंने कहा कि किसानों को बहुत कम कीमत पर प्याज बेचना पड़ रहा है। प्याज के जो भी दाम तय कर दिए जाते हैं, वे उन्हें स्वीकार्य होते हैं। प्याज उत्पादक किसानों का मानना है कि ज्यादा पैदावार होने के कारण कीमतें नीचे गिरी हैं, परंतु उनकी मजबूरी यह है कि वे प्याज की फसल को कोल्ड स्टोरेज में नहीं रख सकते । वह इसकी लागत सहन करने की स्थिति में नहीं हैं।
देश के अलग-अलग राज्यों में प्याज की विभिन्न कीमतें चल रही हैं। ज्यादा मात्रा में प्याज खरीदने पर कम दाम लिए जाते हैं, जबकि कम मात्रा में प्याज लेने वालों से ज्यादा पैसे वसूले जाते हैं। किसान उत्पादकों का मानना है कि नोटबंदी के कारण पहले ही नकदी की मात्रा कम चल रही है। इससे किसान बुरी तरह से आहत हुए हैं।