Edited By Punjab Kesari,Updated: 03 Oct, 2017 03:01 PM
बेशक केन्द्र सरकार ने मजदूरों को उनके घरों के नजदीक अपने गांव में ही रोजगार मुहैया करवाने के लिए मनरेगा स्कीम शुरू की थी लेकिन केन्द्र सरकार की इस स्कीम के प्रति पंजाब सरकार द्वारा ज्यादा उत्साह न दिखाना तथा.............
निहाल सिंह वाला/बिलासपुर(बावा/जगसीर): बेशक केन्द्र सरकार ने मजदूरों को उनके घरों के नजदीक अपने गांव में ही रोजगार मुहैया करवाने के लिए मनरेगा स्कीम शुरू की थी लेकिन केन्द्र सरकार की इस स्कीम के प्रति पंजाब सरकार द्वारा ज्यादा उत्साह न दिखाना तथा पंजाब की अधिकतर पंचायतों की ओर से इस स्कीम के प्रति नकारात्मक रवैया अपनाए जाने के कारण खुशहाल समझे जाते पंजाब के मजदूर बिहार व बंगाल के मजदूरों से भी बदतर जिंदगी जीने को मजबूर हैं। सरकार द्वारा अब तक चलाई स्कीमें इन मजदूरों के लिए कोई मायने नहीं रखतीं।
सरकारी स्कूलों की हाजिरी हुई कम
शिक्षा विभाग के सूत्रों अनुसार ब्लाक निहाल सिंह वाला के समूह सरकारी प्राइमरी स्कूलों में 23 हजार के करीब बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, जिनमें 65 प्रतिशत के करीब दलित परिवारों के लड़के-लड़कियां तथा 35 प्रतिशत के करीब जनरल, पिछड़ी श्रेणियों व अन्य जातियों के बच्चे हैं। नरमा चुगने गए मजदूर स्कूलों में पढ़ते अपने बच्चों को घर अकेला नहीं छोड़ सकते, जिस कारण वे अपने बच्चों, यहां तक कि अपने पशुओं को भी साथ ले जा चुके हैं।
सरकारी प्राइमरी स्कूलों के हाजिरी रजिस्टर इस बात की गवाही भरते हैं कि दलित परिवारों के बच्चे नरमा, कपास की ऋतु समय हर वर्ष 2 से अढ़ाई महीने स्कूल में गैर-हाजिर रहते हैं तथा इन अढ़ाई महीनों दौरान स्कूलों में बच्चों की हाजिरी सिर्फ 50 प्रतिशत ही रह जाती है। दलित परिवारों से बातचीत दौरान करनैल सिंह, जागीर सिंह, प्रेम सिंह, चंद सिंह माछीके, दर्शन सिंह, दुल्ला सिंह, भाग सिंह, भोला सिंह सैदोके आदि का कहना है कि सामान समेत ले जाने व वापस घरों को छोडऩे की जिम्मेदारी उन लोगों की होती जो मजदूरों को ले जाते हैं। वहीं विभिन्न गांवों से एकत्रित की गई जानकारी के अनुसार गांवों की दलित बस्तियों में 1-2 परिवार ही रह गए हैं, जो चले जाने वाले मजदूरों के घरों की रक्षा करते हैं।
बच्चों के गैर-हाजिर रहने पर स्कूल का नतीजा होता है खराब
इस संबंधी विभिन्न स्कूलों के अध्यापकों से बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि पिछले लंबे समय से यह रवैया चिंता का कारण बना हुआ है। उन्होंने कहा कि गैर-हाजिर रहने वाले बच्चे का नाम न तो स्कूल से काट सकते हैं तथा न ही उसको फेल कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि विभाग की हिदायत पर 45 दिनों से अधिक गैर-हाजिर रहने वाले बच्चे का हम गैर-हाजिरी तहत अलग रजिस्टर पर नाम दर्ज करते हैं। उन्होंने कहा कि इन बच्चों के अढ़ाई-तीन महीने स्कूल में गैर-हाजिर रहने कारण स्कूल का नतीजा खराब होता है, जिस कारण विभागीय कार्रवाई की तलवार उन पर लटकती रहती है।
60 हजार परिवार घरों से दूर मनाएंगे दीपावली
अक्तूबर में दीपावली का त्यौहार है। इस दिन देश के हर सरकारी-प्राइवेट दफ्तरों समेत अन्य संस्थानों में छुट्टी के चलते लोग अपने घरों में दीपावली मनाते हैं लेकिन पंजाब के 60 हजार से अधिक मजदूर जिनके लिए पेट की भूख कारण यह त्यौहार कोई मायने नहीं रखता, वे दीपावली अपने घरों से बाहर ही मनाएंगे। बेशक सरकारी स्कूलों में सरकार द्वारा बच्चों की संख्या में बढ़ौतरी करने के लिए नि:शुल्क किताबें, वजीफे, दोपहर का खाना देने के बाद ‘पढ़ो पंजाब स्कीम’ के तहत करोड़ों रुपए खर्च किए गए लेकिन यह लालच भी मजदूर दलित बच्चों के लिए कोई उम्मीद की किरण बनकर नहीं चमका। यहां तक कि केन्द्र द्वारा शुरू की मनरेगा स्कीम भी मजदूरों को मेहनत करने से नहीं रोक सकी तथा मजदूरों के हाथ निराशा ही लगी है।
मोगा जिले के विभिन्न गांव बुट्टर, रनियां, बोडे, बधनी कलां, दौधर, लोपों, कुस्सा, माछीके, हिम्मतपुरा, भागीके, सैदोके, निहाल सिंह वाला, बिलासपुर, रौंता, पत्तों हीरा सिंह, रामा व बरनाला जिले के भदौड़, मझूके, भोतना, गहल, चाननवाल, पक्खो, बीहला तथा लुधियाना जिले के कस्बा हठूर, बुर्ज, मल्ल, रसूलपुर, लक्खा, बस्सियां, झोरड़ा का दौरा करने से यह बात देखने को मिली कि गांवों के 25 से 75 प्रतिशत दलित परिवार हरियाणा, अबोहर-बङ्क्षठडा की ओर नरमा, कपास चुगने के लिए हर वर्ष की तरह बेघर होकर काम करने गए हैं। जहां वे दिसम्बर व जनवरी तक रहेंगे।