पढ़ने का जुनून,एक टांग पर रोज स्कूल जाती है मीरा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Dec, 2017 02:00 PM

mansa news

जब हौसला बना लिया ऊंची उड़ान का, फिर फिजूल है कद देखना आसमान का...।

मानसाः जब हौसला बना लिया ऊंची उड़ान का, फिर फिजूल है कद देखना आसमान का...। शायद ये लाईनें मानसा की मीरा के लिए बनी थीं। बोहा कस्बे की छह साल की बच्ची है मीरा। वह एक टांग पर जब रोज सवा किलोमीटर दूर स्कूल आती-जाती है तो उसे देखने वाला उसके जज्बे और जुनून का कायल हो जाता है। गांव का हर व्यक्ति उसके इस बुलंद हौसले को सलाम करता है। 

 

बोहा के सरकारी प्राइमरी स्कूल के टीचर कुछ महीने पहले ड्रॉप आऊट बच्चों के लिए सर्वे कर रहे थे। उनका मकसद था कि राईट टु एजुकेशन एक्ट के तहत स्कूल से वंचित रह गए बच्चों को दाखिल कराया जा सके। तभी कुछ दूर स्थित झुग्गियों में उन्हें मीरा और उसके भाई-बहन मिले। मीरा की एक टांग नहीं थी। यह देख टीचरों को खास उम्मीद नहीं थी कि बच्ची पढ़ पाएगी लेकिन उन्होंने तीनों बच्चों का दाखिला कर लिया। बच्चों की ड्रेस और किताबों का इंतजाम भी स्कूल की तरफ से कर दिया गया। टीचरों के लिए यह एक रूटीन था, उन्होंने सोचा कि बाकी दो बच्चे स्कूल आ जाएं, वही बहुत है लेकिन अगले ही दिन इलाके के लोग सुबह एक छोटी सी बच्ची को एक टांग पर सधे हुए ढंग और पूरी रफ्तार के साथ स्कूल बैग लिए ड्रेस में देखा तो वे हैरान रह गए। इसके बाद चौंकने की बारी टीचरों की थी। 

 

स्कूल के प्रिंसीपल गुरमेल सिंह खुद दिव्यांग हैं। सो वे यह दर्द बखूबी समझते हैं। पढ़ाई के लिए मीरा का जज्बा देखने के बाद उन्होंने सारे स्टाफ को हिदायत दी कि यह हर हाल में यकीनी बनाया जाए कि मीरा को कोई परेशानी न आए। उसके बाद जैसे-जैसे दिन बीतते गए हर कोई मीरा के जज्बे और हौसले का मुरीद बनता गया। पहली क्लास में ही मीरा के साथ उसका भाई ओम प्रकाश भी पढ़ता है। अब मीरा का बैग लाने और ले जाने की जिम्मेदारी उसने संभाल ली है। इस उम्र में ही उसे बड़े भाई की भूमिका का एहसास हो गया है। 
 

मानसा की छह साल की मीरा के हौसले और जज्बे ने सबको किया कायल
मीरा की टीचर परमजीत कौर ने भी उसकी मदद शुरू कर दी है। वह कोशिश करती हैं कि अगर संभव हो सके तो वह अपनी स्कूटी पर मीरा को स्कूल ले जाएं और वापसी में भी छोड़ दें लेकिन रोजाना यह संभव नहीं हो सकता। परमजीत कौर बताती हैं कि मीरा को पढ़ने का बहुत शौक है।

 

स्कूल आना मानो उसकी जिंदगी का सबसे अहम काम है। उसे स्कूल आते हुए सिर्फ अढाई महीने हुए हैं, पर पूरा मन लगा कर पढ़ती है। उसे अच्छे विद्यार्थियों में गिना जाता है। स्कूल और पढ़ाई के लिए इतना जोश उन्होंने किसी और बच्चे में नहीं देखा। मीरा का घर स्कूल से करीब सवा किलोमीटर दूर है और एक टांग से चलना कोई आसान काम नहीं है। बड़े होकर क्या बनोगी जैसे सवालों के न तो उसके पास जवाब हैं और न ही उसे ये समझ आते हैं  लेकिन मीरा की चमकती आंखों में पढ़ाई को लेकर एक उम्मीद जरूर नजर आती है।

 

मीरा के हौसले से परिवार को बंधी आस
रतिया रोड झुग्गियों में रहने वाले मीरा के परिवार की हालत बेहद खराब है। उसके पिता रमेश को गठिया है। वे बिस्तर पर हैं। मां उसके साथ नहीं रहती। दो भाई और एक बहन हैं। दादा की आंखें खराब हैं। बूढ़ी दादी लोगों से मांग कर परिवार का पालन करती है। पढ़ाई के प्रति मीरा की दीवानगी देख कर अब उसकी दादी को कुछ आस बंधी है।

 

मिड-डे मील का आसरा भी खत्म
मीरा की टीचर परमजीत कौर बताती हैं कि पहले स्कूल में मिड-डे मील बनता था तो गरीब परिवारों के बच्चे एक टाईम भरपेट खा लेते थे लेकिन काफी समय से ग्रांट नहीं आने के कारण वह भी बंद हो गया। एक दिन वह मीरा के घर गईं तो उसकी दादी ने एक मुट्ठी चावल दिखाए कि इन्हीं से किसी तरह पूरे परिवार का पेट भरेगा। फिर उन्होंने मोहल्ले वालों से बात की, सबने मिल कर पैसे जमा किए और राशन खरीद कर उन्हें दिया।

 

हादसे में काटी गई थी टांग
एक सड़क हादसे के बाद मीरा की टांग काटनी पड़ी थी। उसका परिवार तब मानसा जिले में ही सरदूलगढ़ में रहता था। वहां उसके माता-पिता खेतों में मजदूरी करते थे। एक दिन मीरा और उसके भाई बहन बकरियां चराने गए थे। तभी एक ट्रक से उसका एक्सीडेंट हो गया।

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