मनप्रीत-सिंगला आमने-सामने देवर और भाभी के बीच वाक्युद्ध

Edited By Updated: 25 Jan, 2017 11:01 AM

manpreet brother and sister face to face shouting match between singla

विधानसभा हलका भटिंडा (शहरी) एकमात्र ऐसा हलका है जहां केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौ.....

चंडीगढ़(भुल्लर): विधानसभा हलका भटिंडा (शहरी) एकमात्र ऐसा हलका है जहां केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने खुद उम्मीदवार को जिताने के लिए चुनावी कमान संभाल रखी है। शिअद से अलग हुए मनप्रीत सिंह बादल की पीपल्स पार्टी ऑफ पंजाब (पी.पी.पी.) का मर्जर होने के बाद जहां कांग्रेस ने उन्हें उम्मीदवार बनाया है वहीं शिअद के सरूप चंद सिंगला की जीत सुनिश्चित बनाने के लिए खुद केंद्रीय मंत्री हरसिमरत डटी हुई हैं। 


बादल परिवार के बीच इस जंग के चलते भटिंडा (शहरी) का मुकाबला भी चर्चा का केंद्र बना हुआ है। उल्लेखनीय है कि पी.पी.पी. बनाने के बाद वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के समर्थन से भटिंडा लोकसभा हलके से लड़कर मनप्रीत ने अपनी भाभी हरसिमरत कौर को कड़ी टक्कर दी थी। जीत-हार का अंतर भी कम था। लोकसभा चुनाव में विधानसभा हलकों में मनप्रीत को मिली वोट पर नजर डालें तो सबसे बड़ी लीड भटिंडा शहरी हलके से ही मिली थी। उन्हें शिअद के मुकाबले 29 हजार से अधिक वोटों की बढ़त मिली थी। 


हरसिमरत अब शिअद उम्मीदवार सिंगला का अभियान खुद हाथ में लेकर मनप्रीत से पुराना हिसाब-किताब ही बराबर नहीं करना चाहतीं, बल्कि उसकी हार भी देखना चाहती हैं। इस तरह असल मुकाबला देवर-भाभी के बीच ही माना जा रहा है। सिंगला तो मात्र उम्मीदवार के रूप में चेहरा ही हैं। इसके अलावा आम आदमी पार्टी की ओर से उतारा गया नया चेहरा दीपक बांसल भी मुकाबले में है। ङ्क्षहदू चेहरा होने के कारण शहर में उन्हें भी समर्थन मिल रहा है परंतु देखना यह है कि वह किसका नुक्सान करते हैं।


अधिकतर मुकाबलों में ङ्क्षहदू चेहरे ही जीते 
बेशक वर्ष 1957 से लेकर अब तक कभी कांग्रेस तो कभी शिअद जीतता रहा है लेकिन जनसंघ व आजाद उम्मीदवारों ने भी 1-1 बार जीत दर्ज करवाई है। कई बार आजाद विधायक दूसरे स्थान पर रहे। कम्युनिस्टों का भी यहां प्रभाव होने के कारण 2 बार उनके उम्मीदवार भी दूसरे नंबर पर रहे। इस सीट से ज्यादातर ङ्क्षहदू चेहरे ही जीतते रहे हैं। वर्ष 2012 में भी शिअद की ओर से शहर के ही उद्योगपति व ङ्क्षहदू चेहरे सरूप चंद सिंगला को ही मैदान में उतारा गया था। उन्होंने कांगे्रस के हरमंदर सिंह जस्सी को कड़ी टक्कर देते हुए उसे 5590 मतों से हराया था जबकि उस समय क्षेत्र में 74 प्रतिशत पोङ्क्षलग हुई थी।

 

यहां से जीतने वाले बन चुके हैं मंत्री
यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि भटिंडा शहरी हलके से जीतने वाले कई विधायक सरकार में मंत्री भी बनते रहे हैं। इनमें कांग्रेस के सुरिंद्र सिंगला और स्वर्गीय सुरेंद्र कपूर के अलावा अकाली दल के सेठ कस्तूरी लाल का नाम शामिल है। सिंगला कैप्टन अमरेंद्र सिंह की सरकार में वित्त मंत्री थे। मौजूदा विधायक सरूप चंद सिंगला को भी बादल सरकार में मुख्य संसदीय सचिव का पद मिला था। जबकि इस बार भी वह टिकट की दौड़ में शामिल थे। दिलचस्प बात यह भी है कि कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ रहे मनप्रीत बादल भी बादल सरकार में वित्त मंत्री रह चुके हैं।


हरसिमरत और मनप्रीत में आरोप-प्रत्यारोप 
चुनाव रैलियों और मीटिंगों के दौरान कांग्रेस के उम्मीदवार मनप्रीत बादल और शिअद प्रत्याशी के समर्थन में जुटी सांसद हरसिमरत बादल के बीच तीखा वाक्युद्ध भी छिड़ा हुआ है। जहां हरसिमरत अपने देवर मनप्रीत पर तीखे निशाने साधते हुए चुनाव भाषणों के दौरान कहती हैं कि जो अपने घर का नहीं हो सका, वह आपका कैसे हो पाएगा। वह पार्टी की पीठ में छुरा घोंपने तक के आरोप लगाकर लोगों से हराने की अपील कर रही हैं। वहीं मनप्रीत भी पलटवार करते हुए अपने संबोधन में कह रहे हैं कि उनके लिए देश व राज्य पहले हैं और परिवार बाद में। बादल सरकार की लूट व कुशासन से लोगों को मुक्ति दिलवाना और प्रदेश को प्रगति की राह पर ले जाना ही उनका मुख्य उद्देश्य है। इस तरह भटिंडा शहरी हलके के चुनाव युद्ध में बादल परिवार के 2 प्रमुख सदस्यों का ही आमना-सामना होने के कारण मुकाबला काफी रोचक बना हुआ है।

 

नाराजगी; उम्मीदवारों से नेताओं की दूरी
देखने में आया है कि प्रमुख पाॢटयों में गुटबंदी है। कांग्रेस की टिकट के दावेदार हरमंदर सिंह जस्सी को बेशक पार्टी ने दूसरे हलके मोड़ से टिकट देकर शांत किया है परंतु कई प्रमुख नेता अंदरूनी तौर पर नाराज हैं और खुलकर साथ नहीं चल रहे हैं। इसी तरह शिअद में भी कई ग्रुप हैं। नाराजगियों के चलते कई प्रमुख नेताओं ने उम्मीदवार से दूरी बनाई हुई है। ऐसा ही हाल भाजपा का भी है। नाराजगी इस बात से है कि अकालियों द्वारा सत्ता के कार्यों में नजरअंदाज किया जाता रहा है। अकाली सांसद हरसिमरत खुद भाजपा के नाराज नेताओं को मनाने में जुटी हुई हैं परंतु कई अभी भी नहीं मान रहे। ‘आप’ के उम्मीदवार को भी पार्टी के ही नाराज लोगों का सामना करना पड़ रहा है।

 

अमरेंद्र की घोषणा का भी असर
पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने शहर के बीचोंबीच गोल डिग्गी मार्कीट के निकट मनप्रीत बादल के समर्थन में 23 जनवरी को रैली की थी। इस रैली में कैप्टन ने घोषणा की कि कांग्रेस की सरकार बनने पर मनप्रीत ही राज्य के वित्त मंत्री होंगे। कैप्टन की इस घोषणा का भी शहरवासियों पर असर दिखाई पड़ रहा है और लोगों में चर्चा भी है। शहर के व्यापारियों को लगने लगा है कि अगर शहर का विधायक वित्त मंत्री होगा तो उनकी मुश्किलें जल्द हल हो पाएंगी।

 

मनप्रीत का शिक्षित व सिंगला का सोशल फैक्टर 
शहर के लोगों में कांग्रेसी पार्टी के प्रत्याशी मनप्रीत बादल के उच्च शिक्षा प्राप्त होने तथा शिरोमणि अकाली दल के प्रत्याशी सरूप चंद सिंगला का सोशली एक्टिव होने का फैक्टर भी मतदाताओं पर असर डाल रहा है। मनप्रीत बादल जहां आंकड़ों सहित तर्कपूर्ण तरीके से बात करके लोगों पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं, वहीं सिंगला के लिए सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहने का फैक्टर भी उनके प्रभाव को बनाए रखने का काम कर रहा है।

 

कांग्रेस 7, शिअद 4 और 1-1 बार जनसंघ व आजाद भी जीता 
पिछले विधानसभा चुनावों के परिणामों पर एक नजर 
1957 और 1962 में कांग्रेस के हरबंस लाल 
1967 में आजाद उम्मीदवार फकीर चंद 
1969 में शिअद के तेजा सिंह
1972 में कांग्रेस के केशो राम 
1977 में जनसंघ पार्टी (जे.एन.पी.) के हित अभिलाषी 
1980 में कांग्रेस के सुरिंद्र सिंगला 
1985 में शिअद के सेठ कस्तूरी लाल 
1992 में कांग्रेस के सुरेंद्र कपूर 
1997 में शिअद के चिरंजी लाल गर्ग 
2002 में कांग्रेस के सुरिंद्र सिंगला 
2007 में कांग्रेस के हरमंदर सिंह जस्सी 
2012 में अकाली दल के सरूप चंद सिंगला

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