नोटबंदी बना मंदसौर घटना का कारण,व्यापारियों-किसानों के रिश्तों में पड़ी दरार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Jun, 2017 05:40 PM

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मंदसौर में किसान आंदोलन के कारण हुई व्यापक हिंसा के लिए जिम्मेदार केन्द्र सरकार का नोटबंदी का फैसला माना जा रहा है।

जालंधर  (धवन): मंदसौर में किसान आंदोलन के कारण हुई व्यापक हिंसा के लिए जिम्मेदार केन्द्र सरकार का नोटबंदी का फैसला माना जा रहा है। नोटबंदी के कारण किसानों तथा व्यापारियों के बीच आपसी विश्वास खत्म हो गया था। इससे स्थानीय मार्कीट बिल्कुल खत्म हो गई थी। 

 

मंदसौर के व्यापारी सुनील कुमार ने बताया कि किसानों को नोटबंदी के बाद से लगातार मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। किसानों से संबंधित दिनेश पतीदार ने कहा कि व्यापारियों ने उनका नोटबंदी के बाद शोषण किया, जिससे व्यापारियों की समस्याएं लगातार बढ़ रही थीं, परन्तु राज्य सरकार उनका हल नहीं निकाल पा रही थी। किसानों को उनकी फसलों पर उचित दाम नहीं मिल रहा था। किसानों पर कर्जा लगातार बढ़ रहा था। 

 

मंदसौर में हुई घटना के कारण 8 व्यापारियों की मौतें हुई तथा व्यापारियों की दुकानों व वाहनों को भारी नुक्सान पहुंचा। स्थानीय व्यापारियों ने भी माना कि मोदी सरकार द्वारा गत वर्ष 8 नवम्बर को लिए गए नोटबंदी के फैसले के बाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था बुरी तरह से छिन्न-भिन्न होकर रह गई थी। 

 

मंदसौर में नोटबंदी के बाद से किसानों को बैंकों से पर्याप्त नकदी नहीं मिल रही थी। उन्हें अगर नकदी की जरूरत पड़ती थी तो उन्हें अपनी फसल व अन्य वस्तुएं कम दाम पर बेचने के लिए विवश होना पड़ता था। अगर वे बैंक में चैक लगाते थे तो उसे क्लीयर होने में ही 20 का समय लग जाता था। फसल तैयार होते ही किसान उसे व्यापारियों द्वारा मांगे जाने वाले मुंह मांगे दामों पर बेच देते थे। किसानों ने अपने ऋणों की किस्तों का भुगतान करना होता था, इसलिए वे अपनी फसल को कम दाम पर बेचने के लिए विवश थे। ऋण देने वाले किसानों से 2 प्रतिशत मासिक ब्याज दर पर किस्तें वसूल रहे थे। जो किसान किस्तों का भुगतान नहीं कर पाते थे, उन्हें अपनी जमीन बेचने के लिए विवश होना पड़ रहा था।

 

किसान संगठनों का मानना था कि मंदसौर में जमीन की कीमतें भी आधी रह गई थीं। 5 लाख रुपए प्रति वीघा वाली जमीन अढ़ाई लाख रुपए प्रति वीघा पर आ गई थी। नोटबंदी के बाद से किसानों के पास नकदी का अभाव चल रहा था। व्यापारियों का भी मानना था कि नोटबंदी ने उन्हें भी भारी नकु्सान पहुंचाया। किसानों को नकदी की जरूरत होती थी, परन्तु सरकार ने उनके हाथ भी बांध कर रख दिए थे। कई चैक फेल हो रहे थे क्योंकि उस पर नाम के अक्षर सही नहीं लिखे जा रहे थे। किसानों से चैकों में त्रुटियां हो रही थीं। किसान यह समझ रहे थे कि व्यापारी उनसे धोखा कर रहे हैं, जबकि गलतियां चैक में हो रही थीं। व्यापारियों ने कहा कि उनके पास भी क्रैडिट ड्राई होकर रह गया था। प्रत्येक व्यापारी की खरीद शक्ति में भारी गिरावट आ गई थी। अनेकों चिट फंड कम्पनियां कृषि बाजार में प्रवेश कर गई थी। 
 

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