कैंसर के बाद काला पीलिया ने जकड़ा यह शहर

Edited By Updated: 22 May, 2017 09:46 AM

malva in the grip of black jaundice after cancer

पिछले 2 दशक से पंजाब में सबसे अधिक कैंसर की बीमारी की समस्या झेलता आ रहा मालवा क्षेत्र अब काला पीलिया की बीमारी से जूझने लगा है। सरकारी आंकड़े इस बात की गवाही भरते हैं कि मालवा क्षेत्र में काला पीलिया की बीमारी दिन-प्रतिदिन गंभीर रूप धारण करती जा...

मोगा(पवन ग्रोवर): पिछले 2 दशक से पंजाब में सबसे अधिक कैंसर की बीमारी की समस्या झेलता आ रहा मालवा क्षेत्र अब काला पीलिया की बीमारी से जूझने लगा है। सरकारी आंकड़े इस बात की गवाही भरते हैं कि मालवा क्षेत्र में काला पीलिया की बीमारी दिन-प्रतिदिन गंभीर रूप धारण करती जा रही है। यदि सरकार तथा स्वास्थ्य विभाग ने इस बीमारी को रोकने के लिए ठोस प्रयास या कोई जागरूकता मुहिम शुरू न की तो इस बीमारी के नतीजे और भी गंभीर हो सकते हैं। मोगा जिले में काला पीलिया की बीमारी संबंधी  ‘पंजाब केसरी’ की ओर से एकत्र किए ब्यौरे काफी हैरानीजनक हैं, जिसके तहत यह बात उभर कर सामने आ रही है कि मोगा जिले में काला पीलिया के मरीजों की संख्या हजारों में है तथा जिला स्तरीय सरकारी अस्पताल में काला पीलिया की मुफ्त या रिवायती दरोंं पर दवाई लेने वाले मरीजों की संख्या 3 हजार से भी अधिक है, जबकि प्राइवेट अस्पतालों से इलाज करवाने वाले मरीजों का सरकार के पास कोई आंकड़ा नहीं है, क्योंकि प्राइवेट तौर पर इलाज करने वाले डाक्टर सरकारी अधिकारियों को कोई जानकारी नहीं देते।

नीम-हकीमों का सहारा ले रहे गरीब लोग 
काला पीलिया के शरीर में पड़ते प्रभाव का पता लगाने के लिए करवाया जाता टैस्ट प्राइवेट तौर पर लगभग 7-8 हजार रुपए में होता है, जिसके बाद मरीज को उसकी असल स्थिति के बारे में पता चलता है तथा उसी के मुताबिक ही मरीज को दवाई खानी पड़ती है, लेकिन कई लोग टैस्टों पर इतना रुपया खर्च करने के डर से नीम-हकीमों से अपना इलाज करवा रहे हैं। जिले के गांव घोलिया कलां, दौधर सहित अनेक स्थानों पर ऐसे देसी वैद्य हैं, जो काला पीलिया को देसी विधि से ठीक करने का दावा करते हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही है तथा अक्सर ही लोग थक-हार कर अंतिम स्टेज के नजदीक आकर अंग्रेजी इलाज की तरफ भागते हैं। आमतौर पर देसी इलाज करने वाले नीम-हकीम निजी लैबोरेटरियों से नैगेटिव-पॉजीटिव वाला टैस्ट करवा कर ही इलाज शुरू कर देते हैं, जबकि इस बीमारी का असल इलाज एलाइजा या बड़े टैस्ट करवाने के बाद ही शुरू होता है।

कई लोगों ने नहीं करवाया काला पीलिया का टैस्ट 
पता लगा है कि गांवों तथा शहरों में अभी भी बहुसंख्यक लोग ऐसे हैं, जो कई बीमारियों का शिकार तो हैं, लेकिन अभी तक उन्होंने एक बार भी काला पीलिया का टैस्ट नहीं करवाया है। चाहे डाक्टरों की ओर से सलाह दी जाती है कि प्रत्येक व्यक्ति वर्ष में कम से कम एक बार अपने शरीर की बीमारियों संबंधी जांच जरूर करवाए, लेकिन लोग आॢथक तंगी के चलते ऐसा करवाने में असमर्थ हैं।

स्वास्थ्य विभाग शुरू करे जागरूकता मुहिम
समाज सेवी व इंजीनियर गगन बंसल का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग को इस बीमारी के कारणों संबंधी लोगों को जागरूक करने के लिए जागरूकता मुहिम शुरू करनी चाहिए। कैंसर तथा काला पीलिया के कहर ने मालवा इलाके को प्रभावित किया है। इन दोनों बीमारियों को खत्म करने के लिए सरकार व संबंधित विभाग को पहल के आधार पर ठोस कदम उठाने चाहिएं। 

परिवार में एक से दूसरे को हो रही बीमारी 
इस संबंध में विभागीय सूत्रों से एकत्र की जानकारी में यह तथ्य सामने आया है कि परिवारों में पति-पत्नी द्वारा शारीरिक संबंध बनाने के अलावा दूषित रक्त चढ़ाने तथा प्रयोग की सुइयों का दोबारा इस्तेमाल करने से इस बीमारी में बढ़ौतरी हो रही है। विशेषज्ञों के अनुसार काला पीलिया का वायरस मुख्य तौर पर लिवर पर अपना हमला करता है तथा कई बार मरीज द्वारा बीमारी के प्रति लापरवाही दिखाने से इसका नुक्सान और बढ़ जाता है।

स्वास्थ्य विभाग नि:शुल्क कैंपों में करे लोगों की जांच : एडवोकेट ग्रोवर
इस मामले पर ङ्क्षचता प्रकट करते हुए एडवोकेट रमेश ग्रोवर ने कहा कि काला पीलिया की बीमारी को बढऩे से रोकने के लिए सरकार को चाहिए कि वह जिलावार स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को यह हिदायत दे कि वे गांव-गांव में जाकर कैंप लगा कर संदिग्ध मरीजों की जांच कर उनको बीमारी संबंधी जागरूक करें। उन्होंने कहा कि अधिकतर लोगों की तो समय पर शारीरिक जांच न होने के कारण इन गंभीर बीमारियों का आखिरी स्टेज में पता चलता है।

क्या कहना है स्वास्थ्य अधिकारियों का  
इस मामले संबंधी जब मोगा के सीनियर मैडीकल अफसर डा. अरविन्द्र पाल सिंह से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि काला पीलिया की बीमारी संबंधी विभाग द्वारा जागरूक तो किया जाता है, लेकिन सैमीनारों में अधिकतर लोग नहीं आते तथा जो लोग सैमीनार में आते हैं, वे विभाग की दलीलों को समझने की बजाय मजाक कर चलते बनते हैं। कुछ वर्ष पहले गांवों में बैठे झोला छाप डाक्टरों ने एक-दूसरे की सुइयां प्रयोग कर इस बीमारी को बड़े स्तर पर फैलाया है, लेकिन लोग अभी भी यह बात समझने को तैयार नहीं हैं कि ऐसे डाक्टरों से किनारा करना चाहिए। स्वास्थ्य विभाग द्वारा बहुत कम रेटों पर काला पीलिया के टैस्ट करने के साथ-साथ सारा इलाज मुफ्त किया जाता है तथा मोगा सिविल अस्पताल में 3 हजार से भी अधिक मरीज काला पीलिया की नि:शुल्क दवाई प्राप्त कर रहे हैं।
 

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