Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Mar, 2018 02:07 PM
पंजाब आप के प्रधान भगवंत मान,पंजाब कांग्रेस प्रधान सुनील जाखड़,आप नेता रहे धर्मवीर गांधी तथा कांग्रेस विधायक रवनीत बिट्टू आज लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन से मिले।
दिल्लीः पंजाब आप के प्रधान भगवंत मान,पंजाब कांग्रेस प्रधान सुनील जाखड़,आप नेता रहे धर्मवीर गांधी तथा कांग्रेस विधायक रवनीत बिट्टू आज लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन से मिले। इस मुलाकात दौरान उन्होंने भगत सिंह के शहीदी दिवस पर संसद में श्रद्धांजलि देने की मांग उठाई। इसके साथ ही अकाली सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने लोकसभा अध्यक्ष से संसद में छुट्टी घोषित करने और विजिटर गैलरी में 2 कुर्सियां रिजर्व करने का अनुरोध किया है।
बता दें कि 23 मार्च 1931 को शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी दी गई थी। उम्र के उस पड़ाव जहां लोग अपने भावी जीवन के सपने देखते हैं वहां भारत माता के इन लालों ने आजादी से मोहब्बत करके मौत को अपनी दुल्हन बना लिया इसलिए ही स्वतंत्रता से इश्क करने वाले शहीद भगत सिंह का नाम कभी अकेले नहीं लिया जाता, उनके साथ राजगुरु और सुखदेव का भी जिक्र होता है।
कौन थे भगत सिंह
भगत सिंह का जन्म पंजाब के किसान सरदार किशन सिंह के घर हुआ था, इनकी मां का नाम विद्यावती कौर था। 13 अप्रैल 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने एक पढ़ने लिखने वाले सिख लड़के की सोच को ही बदल दिया। लाहौर में स्कूली शिक्षा के दौरान ही उन्होंने यूरोप के अलग-अलग देशों में हुई क्रांति के बारे में अध्ययन किया। भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी। इसके बाद भगत सिंह पं.चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन से जुड़ गए थे। जिसके बाद इस संगठन का नाम हो गया था हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन। इस संगठन का उद्देश्य सेवा, त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले नवयुवक तैयार करना था।
देश लाल सुखदेव थापर
ऐसी ही सोच देश लाल सुखदेव थापर की भी थी, इनका जन्म पंजाब के शहर लायलपुर में रामलाल थापर और रल्ली देवी के घर पर 15 मई 1907 को हुआ था। सुखदेव और भगत सिंह दोनों 'लाहौर नेशनल कॉलेज' के छात्र थे। ताज्जुब ये है कि दोनों ही एक ही साल में लायलपुर में पैदा हुए थे और एक ही साथ शहीद हुए।
शिवराम हरि राजगुरु
आपमें से बहुत कम लोग जानते होंगे कि शिवराम हरि राजगुरु महाराष्ट्र के रहने वाले थे। उनका जन्म पुणे के पास खेड़ नामक गांव (वर्तमान में राजगुरु नगर) में हुआ था। बचपन से ही राजगुरु के अंदर जंग-ए-आजादी में शामिल होने की ललक थी। वे महाराष्ट्र के देशाथा ब्रह्मण परिवार से थे। उनके परिवार का शांत साधारण जीवन था, लेकिन उनके जीवन में अशांति तब आयी, जब होश संभालते ही उन्होंने अंग्रेजों के जुल्म को अपनी आंखों के सामने होते देखा और यहीं से उन्होंने प्रण किया कि वो अपनी भारत माता को गुलामी की बेड़ियों से आजाद कराएंगे।