Edited By Updated: 10 Apr, 2017 05:37 PM
राष्ट्रीयकृत बैंक में नौकरी करने वाले एक कर्मचारी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस युवती के साथ उसकी शादी होने जा रही है, वह एड्ज पीड़ित होगी । उसकी कोख में जन्म लेने वाला बच्चा भी एड्ज की बीमारी का शिकार होगा। इस बात का खुलासा होने पर डाक्टर...
अमृतसर(महेन्द्र): राष्ट्रीयकृत बैंक में नौकरी करने वाले एक कर्मचारी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस युवती के साथ उसकी शादी होने जा रही है, वह एड्ज पीड़ित होगी । उसकी कोख में जन्म लेने वाला बच्चा भी एड्ज की बीमारी का शिकार होगा। इस बात का खुलासा होने पर डाक्टर भी इसे एक करिश्मा मान रहे थे। दूसरी तरफ बैंक कर्मी को अपनी दुनिया उजड़ती साफ दिखाई दे रही थी।
उल्लेखनीय है कि शहर के एक इलाके से संबंधित एक युवक की वर्ष 2003 में मजीठा रोड निवासी एक युवती, जो कि स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत है, के साथ शादी हो गई। शादी से उनका 12 वर्षीय एक बेटा भी है। बेटे के जन्म के करीब 2 वर्ष बाद भी इस महिला के गर्भ में जन्म से पहले ही एक अन्य बच्चे की मौत हो गई। बैंक कर्मी के अनुसार उसकी पत्नी को वर्ष 2007 में बहुत तेज बुखार हुआ था। ब्लड टैस्ट के दौरान पता चला कि उसकी पत्नी एच.आई.वी. पोजीटिव है।
इसका पता चलते ही जहां सारे परिवार में हड़कंप मच गया, वहीं अस्पताल के डाक्टरों ने उसके तथा उसके बेटे के भी ब्लड टैस्ट करवाए। इसमें उसका बेटा भी एच.आई.वी. पोजीटिव निकला जबकि उसकी अपनी रिपोर्ट एच.आई.वी. नैगेटिव थी। सब कुछ जानते हुए भी उसने अपनी पत्नी का इलाज करवाने के साथ-साथ उसकी सेवा व देखभाल की। स्वास्थ्य थोड़ा बहुत ठीक होने पर उसकी पत्नी यह जानते हुए कि वह खुद तो एच.आई.वी. पोजीटिव है और उसका पति एच.आई.वी. नैगेटिव है, खुद ही बहाना बना कर ससुराल छोड़ मायके चली गई। इसके पश्चात उसने अपने पति, सास तथा ननदों के खिलाफ दहेज उत्पीडन तथा पिटाई आदि करने की पुलिस से शिकायत कर दी। अदालत ने पति के खिलाफ ही मुकदमा चलाने की अनुमति दी जबकि ससुराल के अन्य सभी सदस्यों को आरोप मुक्त कर दिया था। सुनवाई के पश्चात 8 फरवरी 2016 को जे.एम.आई.सी. नवदीप कौर की अदालत ने बैंक कर्मी को भी निर्दोष मानते हुए उसे बरी कर दिया था।
खर्चे का केस किया, अदालत ने सिर्फ बच्चे का ही लगाया खर्च
बैंक कर्मी ने बताया कि उसकी पत्नी ने दहेज उत्पीडऩ के मामले के साथ-साथ अपने व बेटे के लिए खर्च हासिल करने के लिए भी अलग से केस दायर कर दिया था क्योंकि वह खुद भी सरकारी नौकरी करती थी, इसलिए अदालत ने उसका तो खर्च नहीं लगाया लेकिन बेटे के लिए पहले 1,000 रुपए तथा बाद में 5,000 रुपए प्रति माह खर्चा लगा दिया। बैंक कर्मी ने बताया कि हालांकि वह शुरू में अपनी पत्नी को इस हालत में अकेला नहीं छोडना चाहता था लेकिन जिस तरह से उसकी पत्नी ने उसके, उसकी बुजुर्ग 60 वर्षीय मां तथा बहनों के खिलाफ उल्टे-सीधे केस दायर कर दिए थे, उसे देख उसे ऐसा करने के लिए विवश होना पड़ा। बैंक कर्मी ने बताया कि उसके परिवार ने जो जेवर पत्नी को शादी के समय दिए थे, वह भी देने को तैयार था लेकिन उसकी पत्नी तलाक के एवज में 10 लाख रुपए की ही जिद कर रही थी। हालांकि वह पहले तो 4-5 लाख रुपए ही देने की बात कर रह था। जज साहिब द्वारा मामला निपटाने की खातिर उन्होंने 8.5 लाख रुपए देने की बात कह दी थी। वह उनके इस आदेश पर भी सहमत हो गया था लेकिन बावजूद इसके उसकी पत्नी कभी 10 लाख रुपए के लिए जिद कर रही थी और कभी यह कह रही थी कि वह अपने पति के साथ ही रहना चाहती है। इस पर जिला एवं सैशन जज गुरबीर सिंह का कहना था कि सारे तथ्यों को देखते हुए यह अब संभव नहीं है, इसलिए तलाक ही उचित ही फैसला होगा। इस दौरान उन्होंने बैंक कर्मी की पत्नी को समझाने के भी बहुत प्रयास किए लेकिन उनके प्रयास भी सफल नहीं हुए। इसके कारण यह तलाक का फैसला बीच में ही अटक कर रह गया और इस मामले को लेकर अतिरिक्त जिला एवं सैशन जज रजनी छोकरा की अदालत में 19 अप्रैल को सुनवाई होगी।