Edited By Punjab Kesari,Updated: 11 Jan, 2018 11:07 AM
पंजाब की लोकसभा सीटों के विश्लेषण की सीरीज में आज हम बात करेंगे जालन्धर लोकसभा सीट की
पंजाब की लोकसभा सीटों के विश्लेषण की सीरीज में आज हम बात करेंगे जालन्धर लोकसभा सीट की। इस सीट पर फिलहाल कांग्रेस का कब्जा है और अकाली दल लगातार इस सीट पर हार का मुंह देख रहा है। पंजाब केसरी के संवाददाता नरेश कुमार बता रहे हैं कि आने वाले चुनाव में अकाली दल के पास इस सीट पर मैदान में उतारने के लिए बहुत ज्यादा विकल्प मौजूद नहीं हैं और कांगे्रस में भी पिछले 32 साल से एक उम्मीदवार को दोबारा टिकट न देने की परम्परा रही है।
कांग्रेस लगातार 4 बार जीती
अकाली दल ने आखिरी बार 1996 के चुनाव में यह सीट जीती थी। उस वक्त दरबारा सिंह पार्टी के उम्मीदवार थे। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार उमराव सिंह को हराया था। 1998 के चुनाव में भी जालन्धर में गैर-कांग्रेसी उम्मीदवार इंद्र कुमार गुजराल की जीत हुई थी। वह जनता दल की टिकट पर चुनाव लड़े थे और उन्हें अकाली दल का समर्थन हासिल था लेकिन 1999 के बाद हुए 4 चुनावों में अकाली दल जालन्धर सीट जीत नहीं पाया है। इस दौरान पार्टी ने नरेश गुजराल, हंसराज हंस और पवन कुमार टीनू जैसे अपने बड़े चेहरे मैदान में उतार कर देख लिए हैं लेकिन तीनों को हार का मुंह देखना पड़ा। लिहाजा अगले चुनाव में अकाली दल किसे मैदान में उतारेगा यह सबसे बड़ा सवाल होगा। दूसरी तरफ कांग्रेस के सांसद चौ. संतोख सिंह को दोबारा मैदान में उतारने को लेकर भी पार्टी के अपने राजनीतिक कारण हो सकते हैं। 1985 के बाद कांग्रेस ने कभी भी अपने विजेता उम्मीदवार को दोबारा मैदान में नहीं उतारा है। कांग्रेस की तरफ से सिर्फ रजिन्द्र सिंह स्पैरो ही 1980 और 85 में लगातार 2 बार सांसद बने थे। उनसे पहले लगातार 3 बार सांसद रहने का रिकार्ड स्वर्ण सिंह के नाम पर है। यदि पार्टी चौ. संतोख सिंह को दोबारा मैदान में उतारती है तो पार्टी 33 साल पुरानी अपनी रणनीति को दोबारा दोहराएगी।
विधानसभा चुनाव में मजबूत हुई कांग्रेस
पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति जालन्धर लोकसभा सीट पर मजबूत हुई है लेकिन यह मजबूती शहरी विधानसभा सीटों पर ही है। शहर के बाहर ग्रामीण सीटों पर अकाली दल मजबूत नजर आ रहा है। 2017 के विधानसभा चुनाव दौरान कांग्रेस ने जालन्धर वैस्ट, जालन्धर सैंट्रल, करतारपुर, जालन्धर नॉर्थ और जालन्धर कैंट की सीटों पर भी कब्जा किया है जबकि अकाली दल फिल्लौर, नकोदर, शाहकोट और आदमपुर की सीटों पर काबिज हुआ है लेकिन कांग्रेस को 2017 में अकाली दल के मुकाबले 72,155 वोट ज्यादा हासिल हुए हैं। 2017 के चुनाव में जालन्धर लोकसभा के तहत आती विधानसभा सीटों पर कांग्रेस को 4,38,324 वोट हासिल हुए जबकि अकाली दल को 3,66,169 वोट हासिल हुए हैं। अकाली दल 2014 में यह चुनाव 70,981 मतों से हारा था और कांग्रेस की यह लीड विधानसभा चुनाव तक भी कायम रही।
उधर दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी की स्थिति जालन्धर में कमजोर हुई है। ‘आप’ को 2014 में जालन्धर लोकसभा सीट पर 2,54,121 मत हासिल हुए थे जोकि 2017 में कम होकर 2,39,774 रह गए। ‘आप’ को जालन्धर में 14,347 मतों का नुक्सान हुआ है। पार्टी जालन्धर लोकसभा सीट की किसी भी विधानसभा सीट पर लीड हासिल नहीं कर सकी।
संंसद में हाजिरी 89'
बहस में हिस्सा 25
सवाल पूछे 55
प्राइवेट मैंबर बिल 01
ऐसे रही चौ. संतोख सिंह
की संसद में हाजिरी
पहला सत्र 100'
दूसरा सत्र 100'
तीसरा सत्र 95'
चौथा सत्र 91'
पांचवां सत्र 65'
छठा सत्र 90'
सातवां सत्र 88'
आठवां सत्र 100'
नौवां सत्र 85'
दसवां सत्र 100'
ग्यारहवां सत्र 69'
बारहवां सत्र 89'
तेरहवां सत्र 92'
जालन्धर
कांग्रेस अकाली-भाजपा आप
2014 2017 2014 2017 2014 2017
फिल्लौर 49,000 37,859 31,413 41,336 33,213 35,779
नकोदर 32,640 35,633 37,497 56,241 36,700 37,834
शाहकोट 29,199 42,008 47,862 46,913 29,896 41,010
करतारपुर 48,561 46,729 35,962 40,709 21,664 29,981
जालन्धर (वैस्ट) 48,599 53,983 27,118 36,649 21,616 15,364
जालन्धर (सैंट्रल) 40,066 55,518 29,816 31,440 26,317 15,269
जालन्धर (नॉर्थ) 53,038 69,715 35,505 37,424 22,166 13,386
जालन्धर (कैंट) 44,932 59,349 34,339 30,225 34,368 25,912
आदमपुर 34,432 37,530 29,966 45,229 28,164 25,239
लोकसभा चुनाव में पोस्टल वोट कांग्रेस-12, अकाली दल-20, आप-17
मैंने तो पिछले सांसद मोहिन्द्र सिंह के.पी. के हिस्से का बकाया 70 लाख रुपए का फंड भी खर्च किया
है। जालन्धर के शेष फंड के लिए केंद्र को रिपोर्ट भेजी गई है और फंड जारी होते ही विकास कार्यों में तेजी लाई जाएगी। -चौ. संतोख सिंह सांसद जालन्धर
फंड का ब्यौरा
जारी फंड 15 करोड़
ब्याज सहित फंड 16.24 करोड़
खर्च फंड 11.52 करोड़
बचा फंड 4.72 करोड़
कुल फंड खर्च 76.77'
नोट : फंड का सारा डाटा एम.पी. लैड की सरकारी वैबसाइट से लिया गया है। जमीनी स्तर पर नोडल अफसर के पास खर्च का आंकड़ा अलग हो सकता है।