Edited By Updated: 18 Jan, 2017 02:06 AM
जलालाबाद विधानसभा क्षेत्र की सियासत ने नई करवट ली है। शिअद प्रमुख सुख....
जलालाबाद: जलालाबाद विधानसभा क्षेत्र की सियासत ने नई करवट ली है। शिअद प्रमुख सुखबीर सिंह बादल का गढ़ रहे इस विधानसभा क्षेत्र पर वी.आई.पी. सीट का तमगा तो पहले से ही लगा है लेकिन अब कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के दिग्गजों ने यहां ताल ठोककर इसे भी हॉट बना दिया है।
सबकी निगाहें अब इस बात पर टिकी हैं कि आम आदमी पार्टी के दिग्गज नेता भगवंत मान और कांग्रेस की तरफ से सांसद रवनीत बिट्टू को टिकट देने के बाद इस क्षेत्र पर किसकी सरदारी रहेगी। वैसे कहा तो यही जाता है कि जलालाबाद में उसकी ‘सरदारी’, जिसके साथ बिरादरियों की ‘यारी’। ऐसा इसलिए भी है कि इस विधानसभा क्षेत्र में करीब 30 से 35 फीसदी मतदाता राय सिख बिरादरी के हैं जबकि चौधरी बिरादरी का वोट बैंक करीब 10 से 15 फीसदी है। जाहिर है कि जिस सियासतदान के साथ इनका समर्थन है, उसकी जीत तय है। यही वजह है कि सभी सियासतदान इन बिरादरियों को रिझाने में जुटे हुए हैं। मामला इस बार थोड़ा पेचीदा इसलिए है क्योंकि राय सिख को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। इससे पहले राय सिख बिरादरी के बड़े चेहरे और फिरोजपुर से सांसद शेर सिंह घुबाया तराजू पकड़कर ही सियासत करते रहे हैं लेकिन अबकी बार उनके बेटे दविंदर सिंह घुबाया हाथ के साथ हो लिए हैं।
कांग्रेस
कांग्रेस नेता रवनीत सिंह बिट्टू के मैदान में उतरने से माना जा रहा है कि दविंद्र सिंह घुबाया उनके लिए चुनावी मंच पर राय सिख बिरादरी से समर्थन मांगेंगे जबकि शेर सिंह घुबाया के अकाली दल में होने के चलते वह अपना सियासी धर्म निभाएंगे। अब बात चौधरी बिरादरी की करें तो इस बिरादरी का एक बड़ा वर्ग कांग्रेस के साथ रहा है लेकिन अंदरूनी गुटबाजी के चलते यह बिरादरी बंटी हुई है। रवनीत के आने से माना जा रहा है कि कांग्रेस का यह बिरादरी वोट बैंक एकजुट होगा जिससे कांग्रेस को और मजबूती मिलेगी।
आम आदमी पार्टी
आम आदमी पार्टी अलग अंदाज में सियासी सफर तय कर रही है। आप नेता भगवंत मान तो सीधे ताल ठोक रहे हैं कि ‘आप’ के सत्ता में आने से क्षेत्र में विकास की नई गाथा लिखी जाएगी। बेशक यहां के विधायक सुखबीर ने विकास की ‘गंगा’ बहाई है लेकिन मतदाताओं का बड़ा हिस्सा अभी भी कर्ज, बेरोजगारी से जूझ रहा है। यही वजह है कि युवा नशे की लत से ग्रसित हैं। मतदाताओं को यह बात खटकती भी है कि चुनावी चर्चा छिड़ते ही सबसे बड़ा सवाल यही होता है कि नशे ने युवा पीढ़ी को बर्बाद कर दिया। सरकार चाहती तो एक दिन में सब बंद हो जाता लेकिन होता कुछ नहीं है।
नब्ज: विकास तो हुआ पर कई मुद्दे अभी भी कायम
हालांकि विकास की बात पर सबकी राय एकसुर में यही है कि जितना विकास पिछले 9 सालों में इस क्षेत्र ने किया है, उतना अब तक नहीं हुआ। खेतों तक सीधे नहरी पानी की सिंचाई का बंदोबस्त हो गया है। गांव की गलियां, चौपालें सीमैंट की बन गई हैं, सोलर लाइट सिस्टम लग गए हैं। वहीं, बिजली की सप्लाई भी दुरुस्त है जिससे खेती का झंझट नहीं रहता। बावजूद इसके कर्ज, बेरोजगारी, नशे जैसे मुद्दे कायम हैं, जो मतदाताओं को आम आदमी पार्टी के झंडे तले ले जाने के लिए काफी हैं। आप नेता मान भी मतदाताओं की इस नब्ज को बखूबी पहचानते हैं, इसलिए हर मंच पर शिअद-भाजपा-कांग्रेस पर सीधा निशाना तानते हैं।
कांग्रेस और अकाली दल चार-चार बार जीत चुके हैं जलालाबाद सीट
वर्ष 1967 में जलालाबाद सीट पर पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे। उस समय सी.पी.आई. के उम्मीदवार पी. सिंह ने कांग्रेस के एल. सिंह को हराया था। इस विधानसभा क्षेत्र में अब तक हुए 12 बार चुनाव में शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस दोनों ही सियासी दल चार-चार बार जीत हासिल कर चुके हैं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के लिए यहां से 2 राजनीतिक परिवार से संबंध रखने वाले उम्मीदवार मैदान में हैं। पहले मौजूदा उप-मुख्यमंत्री और अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के बेटे हैं वहीं कांग्रेस पार्टी ने मौजूदा सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री स्व. बेअंत सिंह के पोते रवनीत सिंह बिट्टू को टिकट दी है।
पहली बार 2 सांसद होंगे आमने-सामने
यह पहली बार होगा जब जलालाबाद सीट से चुनाव लडऩे के लिए प्रमुख पार्टियों ने मौजूदा सांसदों को अपना उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने लुधियाना से सांसद रवनीत सिंह बिट्टू जबकि पहली बार पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ रही आम आदमी ने संगरूर से सांसद भगवंत मान को टिकट दी है। गौरतलब है कि राजनीतिक अनुभव में कांग्रेस के सबसे यूथ नेता रवनीत बिट्टू अपने प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी के भगवंत मान से थोड़ा आगे हैं। भगवंत मान पहली बार सांसद बने हैं जबकि बिट्टू इससे पहले आनंदपुर साहिब से सांसद रह चुके हैं।
चौपाल
हरे-भरे खेतों के बीच बलखाती सड़क। इन पर सरपट दौड़ती गाडिय़ां कब गांव या शहर तक पहुंच जाती हैं, पता ही नहीं चलता। बेशक अचानक ब्रेक लगती है लेकिन गड्ढों की वजह से नहीं बल्कि पहाड़ों को देखने के लिए। जी हां, हरे-भरे खेतों के बीच रेतीली मिट्टी के पहाड़। यह पहाड़ सही मायनों में जलालाबाद विधानसभा क्षेत्र की पहचान हैं। देसी भाषा में इन्हें टिब्बे-टीले कहा जाता है। हालांकि जलालाबाद शहर के बढ़ते दायरे के कारण इन टिब्बों का अस्तित्व भी खत्म होता जा रहा है लेकिन अभी भी यह अपनी पहचान बताते हैं।
बाशिंदे बताते हैं कि कभी इलाके का बड़ा हिस्सा टिब्बों की तरह वीरान था। खेती-बाड़ी के नाम पर मूंगफली या नरमे के भरोसे ही थे लेकिन अब गेहूं-धान की भी अच्छी पैदावार है। नहरी पानी की सप्लाई ने राहत दी है। हालांकि छोटी जमीन के किसानों की इलाके में बहुतायत होने के कारण युवाओं को रोजगार तलाशने में मशक्कत करनी पड़ती है। उस पर शादी-ब्याह के लिए अगर किसी ने जमीन पर कर्ज लिया है तो यह चिंता अलग। गांव गुलाम रसूलवाला अब शहरी-सा दिखने लगा है। बारिश के बाद बढ़ी ठंड में आग ताप रहे सोनू भुल्लर ने यह कहकर लंबी सांस ली। उनके मुताबिक कभी वह भी समय था कि बारिश में कच्ची गलियों से निकल पाना मुश्किल हो जाता था लेकिन अब पक्की गलियां हैं। सोलर एनर्जी से रातें रोशन हैं।
बस यही चिंता है। नशा खत्म हो जाए। साथ बैठे इकबाल, जसविंदर, सुखदेव व कुलविंदर ने भी हामी भर दी। उनके मुताबिक महालम गांव नशे की जीती-जागती तस्वीर है। बेरोजगारी ने युवाओं को नशेड़ी बना दिया है। यहां बेशक विकास हुआ है लेकिन बड़ी आबादी गरीबी से जूझ रही है। जलालाबाद में जो भी सियासी दल के नेता दावे करते हैं या कर रहे हैं, उनके लिए ऐसे गांव दावों की पोल खोल का बड़ा उदाहरण हैं।