‘मैं वो नहीं’ जज साहिब! गुहार लगाने वाले को 4 वर्ष बाद मिला इंसाफ

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Jul, 2017 11:56 AM

jail founder gets justice after 4 years

1.75 लाख का चैक बाऊंस होने का एक ऐसा अजीब मामला सामने आया है, जिसमें चैक व बैंक खाता किसी अन्य व्यक्ति से संबंधित था, लेकिन चैक जारी करने वाले असली व्यक्ति की बजाए किसी अन्य व्यक्ति को ही अकारण 4 वर्ष तक कानूनी लड़ाई लडऩी पड़ी।

अमृतसर (महेन्द्र): 1.75 लाख का चैक बाऊंस होने का एक ऐसा अजीब मामला सामने आया है, जिसमें चैक व बैंक खाता किसी अन्य व्यक्ति से संबंधित था, लेकिन चैक जारी करने वाले असली व्यक्ति की बजाए किसी अन्य व्यक्ति को ही अकारण 4 वर्ष तक कानूनी लड़ाई लडऩी पड़ी।

उसे खुद को निर्दोष तथा अपनी सही पहचान साबित करने के लिए न सिर्फ जमानत तक करवानी पड़ी, बल्कि कई प्रकार की परेशानियों का भी सामना करना पड़ा। आखिर उसके द्वारा अकारण तथा बिना किसी दोष के 4 वर्ष तक कानूनी लड़ाई लडऩे के पश्चात स्थानीय चैक बाऊंस के मामले पर सुनवाई करने वाली विशेष अदालत से अब जा कर इंसाफ मिला है। तथ्य सामने आने पर आखिर स्थानीय जे.एम.आई.सी. मनदीप सिंह की विशेष अदालत ने कथित आरोपी को बरी कर दिया है।

क्या कहते हैं कानूनी विशेषज्ञ?
इस तरह का अजीब मामला सामने आने पर जब कुछ कानूनी विशेषज्ञों से बात की गई, तो कानूनी विशेषज्ञ एडवोकेट रमेश चौधरी, मनीष बजाज, रवि भूपिन्द्र महाजन, संजीव बनियाल का कहना है कि अगर किसी व्यक्ति द्वा रा बिना वजह गलत तरीके से किसी निर्दोष व्यक्ति के खिलाफ इस तरह का कोई मामला दायर किया जाता है और ऐसे गलत मुकदमे की वजह से किसी निर्दोष शख्स को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ा हो, तो वह गलत मुकदमा दायर करने वाले के खिलाफ मानहानि के साथ-साथ उससे मुआवजा हासिल करने के लिए भी मुकदमा दायर कर सकता है। 

मामले के हालात
स्थानीय मेन बाजार, मुस्तफाबाद, बटाला रोड निवासी तिलक राज पुत्र छन्नो राम ने झब्बाल रोड पर स्थित गांव सांघना निवासी तरसेम लाल पुत्र बंता सिंह के खिलाफ नैगोशिएबल इन्स्ट्रियूमैंट एक्ट की धारा 138 के तहत 30मई2013 को स्थानीय एक अदालत में चैक बाऊंस का मुकदमा दायर किया था। इसमें उसका कहना था कि आरोपी ने उससे 1.75 लाख रुपए का दोस्ताना कर्ज लेते हुए जल्द वापिस लौटाने का यकीन दिलाया था। समयसीमा समाप्त होने पर जब उसने उससे अपने रुपए वापिस मांगे, तो आरोपी ने इतनी ही राशि का एक चैक नंबर 078692 दिनांक 24दिसम्बर2012 के लिए उसके नाम पर जारी कर दिया जो यूनियन बैंक आफ इंडिया की स्थानीय डैमगंज शाखा से संबंधित था।

शिकायतकर्ता का कहना था कि इस चैक को कैश करवाने के लिए जब उसने अपने बैंक ‘बैक आफ इंडिया’ की स्थानीय शाखा हाल बाजार में लगाया, तो उसके बैंक द्वारा 23 मार्च 2013 को जारी की गई मीमो के अनुसार आरोपी के बैंक खाते में समुचित फंड उपलब्ध न होने के कारण आरोपी का यह चैक बाऊंस हो गया था जिस पर उसे 17 अप्रैल 2013 को 15 दिनों का लीगल नोटिस भी जारी किया गया था, बावजूद इसके आरोपी ने बाऊंस हुए चैक की धनराशि नहीं अदा की थी।

अपनी सही पहचान के लिए आधार कार्ड और पैन कार्ड तक किए पेश
बैंक द्वारा इस बात की पुष्टि किए जाने के बावजूद कि उनके रिकार्ड में चैक से संबंधित खाताधारक का नाम तरसेम लाल पुत्र बहादुर सिंह निवासी मुस्तफाबाद है, न कि तरसेम लाल पुत्र बंता सिंह निवासी गांव सांघना, लेकिन बावजूद इसके मुद्दई पक्ष के दावे को झुठलाने के लिए बिना वजह मुकदमे का सामना करने वाले शख्स गांव सांघना निवासी तरसेम सिंह पुत्र बंता सिंह को अपने कौंसिल एम.एस. ढिल्लों के जरिए अदालत में अपनी सही पहचान साबित करने के लिए अपना आधार कार्ड तथा पैन कार्ड तक दिखाना पड़ा। इन सभी तथ्यों को देखने के पश्चात अदालत ने सभी पहलुओं पर गौर करते हुए कथित आरोपी को पूरी तरह से निर्दोष मानते हुए उसे बरी करने का फैसला सुनाया है। 

तरसेम लाल पुत्र बहादुर सिंह के नाम का निकला बैंक खाता 
मामले की सुनवाई के दौरान जब यूनियन बैंक आफ इंडिया की स्थानीय डैमगंज शाखा से संबंधित एस.डब्ल्यू.ओ. नवजोश सिंह को रिकार्ड सहित गवाही के लिए तलब करवाया गया, तो रिकार्ड के अनुसार बैंक खाता मुस्तफाबाद, बटाला रोड निवासी किसी तरसेम लाल पुत्र बहादुर सिंह के नाम का था, जबकि मुकदमा दायर किया गया था गांव सांघना निवासी तरसेम लाल पुत्र बंता सिंह के खिलाफ। हालांकि इस दौरान भी मुद्दई पक्ष सांघना निवासी तरसेम सिंह पुत्र बंता सिंह को ही तरसेम लाल बता रहा था। 

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