मेरे सपनों का पंजाब यहां  गरीबों को मिले हर सुविधा

Edited By Updated: 22 Jan, 2017 11:29 AM

it met every facility to the poor state of my dreams

चुनाव को लेकर बातचीत दौरान पूरन चंद वडाली,प्यारे लाल वडाली ने कहा कि मेरे सपनों के पंजाब में कोई गरीब नहीं है। गरीबों को हर वह सहूलियत है जो आज के दौर में अन्य वर्ग के लोग मांग रहे हैं।

चुनाव को लेकर बातचीत दौरान पूरन चंद वडाली,प्यारे लाल वडाली ने कहा कि मेरे सपनों के पंजाब में कोई गरीब नहीं है। गरीबों को हर वह सहूलियत है जो आज के दौर में अन्य वर्ग के लोग मांग रहे हैं। एक ऐसा पंजाब जो अपने पहलवानों, सभ्यता व कला के लिए दुनिया भर में मशहूर है। अगर बात करें आज के पंजाब की तो यह काफी बदल गया है।  लोगों में वैस्टर्न कल्चर अपनाने की होड़ लगी है। इस होड़ में वह अपनी विरासत, सभ्याचार, पहरावे, बोली व कला को कहीं न कहीं पीछे छोड़ते जा रहे हैं। पहले लोग सूफी व अन्य पंजाबी लोक गीतों से अपना मनोरंजन करते थे, आज दुनिया पॉप संगीत के पीछे भाग रही है। 

पंजाब में खुले प्राइवेट व अन्य संस्थान पंजाबी भाषा को छोड़कर अन्य भाषाओं का ज्ञान बांटना जरूरी समझते हैं।  राज्य में ही पंजाबी भाषा की अनदेखी हो रही है। आज जरूरत है पंजाबी भाषा को राज्यभर के हर प्राइवेट व सरकारी स्कूलों, कालेजों व अन्य संस्थाओं में लाजिमी करने की। यहां पंजाबी सिखाई ही न जाए बल्कि बोलना भी लाजिमी किया जाए। कहीं न कहीं पंजाबी भाषा की अनदेखी के लिए लोग भी जिम्मेदार हैं जो बच्चे को जन्म के बाद से ही अपनी मातृभाषा छोड़ अन्य भाषाओं में बोलने व लिखने की शिक्षा देना शुरू कर देते हैं जबकि उन्हें अपनी मातृभाषा का ज्ञान देना बेहद जरूरी है। जो व्यक्ति अपनी मातृभाषा और विरसे से जुड़ा होता है, उसे संस्कारी बनाने के लिए कुछ अन्य करने की जरूरत नहीं होती। इन्हीं कारणों से आज संयुक्त परिवार टूटकर एकल परिवारों की ओर बढ़ रहे हैं। बुजुर्गों का मान-सम्मान घट रहा है।

पंजाबी भाषा गुरुओं के मुख से निकली भाषा है। इसका मान-सम्मान बेहद जरूरी है।  नौजवान अपनी पारम्परिक चीजों को छोड़कर नशे की गिरफ्त में फंस रहे हैं। नौजवानों को दोबारा पहलवानी के क्षेत्र में लाना होगा। युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा होने चाहिएं। यदि बात की जाए किसानों की तो पंजाब में खेती क्षेत्र लाभदायक नहीं रहा है। छोटे किसान पूरी उम्र कर्ज में दबकर रह जाते हैं। कर्ज से ज्यादा ब्याज हो जाता है। आधुनिक मशीनरी ने काम तो आसान कर दिया है, लेकिनखर्च बढ़ा दिया है। पुरातन समय में मशीनरी नहीं थी लेकिन कृषि का काम लाभदायक था। किसान हाथ से काम करने में विश्वास रखते थे। आज किसान का बेटा ही किसान नहीं बनना चाहता। वह किसानी को छोड़कर अन्य धंधे अपना रहा है।

युवा खुद स्वरोजगार की शिक्षा हासिल कर अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करें। स्कूलों में नैतिक शिक्षा का अभाव है। यूं तो स्कूल-कालेज जाने वाले युवाओं के बस्तों में किताबों का बोझ बढ़ा दिया जाता है लेकिन इन पुस्तकों में वह शिक्षा नहीं है जो युवाओं को दी जानी चाहिए। इन पुस्तकों के दम पर युवाओं को कलम का कारीगर तो बना दिया जाता है परंतु पंजाब के विरसे की शिक्षा नहीं दी जाती। ऐसा भी नहीं है कि इन सबके लिए सरकार अकेले जिम्मेदार है। इसके पीछे युवाओं का गैर जिम्मेदाराना रवैया भी जिम्मेदार है। अंत में हमं यही कहना चाहेंगेा कि पहले भी चुनाव होते थे लेकिन लोगों में भाईचारा बना रहता था। लोगों से अपील है कि वह वोट जरूर करें लेकिन अपने भाईचारे को दाव पर लगाकर नहीं बल्कि ईमानदारी के साथ।
     

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