Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Sep, 2017 11:10 AM
जिले में स्वाइन फ्लू ने दस्तक दे दी है। जिले के गांव भागीके निवासी 65 वर्षीय एक व्यक्ति के स्वाइन फ्लू के लिए गए सैंपल का नतीजा पॉजीटिव आने से स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया है।
मोगा (संदीप): जिले में स्वाइन फ्लू ने दस्तक दे दी है। जिले के गांव भागीके निवासी 65 वर्षीय एक व्यक्ति के स्वाइन फ्लू के लिए गए सैंपल का नतीजा पॉजीटिव आने से स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया है।
बेशक फरीदकोट के मैडीकल कालेज में उपचाराधीन स्वाइन फ्लू पीड़ित की हालत खतरे से बाहर बताई गई है। स्वास्थ्य विभाग की टीम ने जिला एपिडिमोलॉजिस्ट डा. मनीष अरोड़ा की अध्यक्षता में उक्त मरीज के घर पहुंचकर उसके परिवार के छोटे बच्चों सहित 12 सदस्यों को दवाइयां देने सहित आसपास के लोगों को भी जागरूक किया। अगर मोगा की बात की जाए तो जिले की आबादी 10 लाख से अधिक है लेकिन स्वाइन फ्लू के दस्तक देने व इस संबंधी स्वास्थ्य विभाग के प्रबंधों की बात करें तो लगता है कि अगर आने वाले दिनों में स्वाइन फ्लू को लेकर गंभीर स्थिति पैदा होती है तो स्वास्थ्य विभाग के लिए इस स्थिति को काबू करना एक चैलेंज से कम नहीं होगा।
एक ही कमरे का आइसोलेटिड वार्ड वह भी खराब वैंटीलेटर के सहारे
जिला स्तरीय सिविल अस्पताल में अस्पताल प्रबंधन ने स्वाइन फ्लू से निपटने के लिए आइसोलेटिड वार्ड स्थापित किया गया है। वार्ड एक ही कमरे में व खराब वैंटीलेटर मशीन के सहारे चल रहा है। आइसोलेटिड वार्ड के नोडल अफसर डा. गगनदीप सिंह के अनुसार पिछले वर्ष भी वैंटीलेटर मशीन खराब हो गई थी जिसे रिपेयर करवाया गया था। अब भी यह चल नहीं रही है। उन्होंने कम्पनी का इंजीनियर भेज इसे तुरन्त ठीक करवाने की अपील की है।
आई.सी.यू. के बिना आइसोलेटिड वार्ड का कोई महत्व नहीं
जिला स्तरीय अस्पताल में पिछले 30 सालों से आई.सी.यू. तक स्थापित नहीं हो सका है। चिकित्सा व्यवसाय से जुड़े विशेषज्ञों के अनुसार अगर कोई गंभीर मरीज सामने आता है तो उसका पहले आई.सी.यू. में उपचार करने के बाद उसे उसकी स्थिति के अनुसार ही आइसोलेटिड वार्ड में शिफ्ट किया जाता है। इस प्रकार आई.सी.यू. के बिना आईसोलेटिड वार्ड का कोई महत्व नहीं रह जाता है।
अस्पताल प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं देने में भी नाकाम
जिला स्तरीय सिविल अस्पताल आई.सी.यू. यूनिट, बर्न यूनिट सहित अन्य कई प्राथमिक सुविधाएं न होने के चलते रैफरल अस्पताल बन चुका है। जो सरकार के सरकारी अस्पतालों में हाईटैक स्वास्थ्य सुविधाएं देने के बड़े-बड़े दावों पर प्रश्न चिन्ह लगा रहा है।