Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Aug, 2017 02:58 PM
बेशक सारा देश इस समय देश की स्वतंत्रता का 70 वर्ष बहुत ही धूमधाम से मना रहा है
गुरदासपुर(विनोद): बेशक सारा देश इस समय स्वतंत्रता का 70वां वर्ष धूमधाम से मना रहा है परंतु भारत पाकिस्तान विभाजन के समय जो कत्लोगारत हुई थी उसे भुलाना 70 साल बाद भी मुश्किल है। वह समाज तथा मानवता पर लगा कलंक कभी नहीं धुल पाएगा। इस दर्द को बयां कर रहे थे गुरदासपुर निवासी जनक राज कंवल जो देश के विभाजन के समय लगभग 21 साल के थे जबकि इस समय लगभग 91 वर्ष के है।
जनक राज कंवल जो पेशे से प्रसिद्व सराफ है तथा शौंक से शायर है ने कहा कि भारत विभाजन के समय एक दिन के लिए गुरदासपुर शहर पाकिस्तान का हिस्सा बना था,परंतु दूसरे ही दिन गुरदासपुर को भारत का हिस्सा घोषित कर दिया गया। यदि गुरदासपुर तब पाकिस्तान का हिस्सा बना रहता तो निश्चित रूप में पूरा जम्मू -कश्मीर भी पाकिस्तान का हिस्सा होता क्योंकि जम्मू कश्मीर जाने के लिए तब सड़क का रास्ता जिला गुरदासपुर के रास्ते ही था परंतु पूर्व जस्टिस सुप्रीम कोर्ट मेहर चंद महाजन की सूझबूझ से जिला गुरदासपुर फिर भारत का हिस्सा बना।
अपने एक दिन के पाकिस्तान का हिस्सा बने रहने के अनुभव को बताते हुए जनक राज कंवल ने बताया कि जिस दिन गुरदासपुर को पाकिस्तान का हिस्सा घोषित किया गया था तब गुरदासपुर नगर कौंसिल के उस समय के प्रधान अनायत उल्ला जो गुरदासपुर मे ही सराफ थे ने हम प्रमुख शहरियों को नगर कौंसिल कार्यालय बुला कर पार्टी दी थी। हमें दुख भी था,परंतु हालात से मजबूर बड़ी संख्या में लोग उस पार्टी मे शामिल हुए परंतु उस एक दिन पूरे शहर में एक भी गड़बड़ नहीं हुई तथा सब कुछ सामान्य रहा। जबकि गुरदासपुर में बड़ी संख्या में मुसलमान रहते थे परंतु जैसे ही गुरदासपुर को फिर से भारत का हिस्सा घोषित किया गया तो अफवाहों का बाजार गर्म हो गया तथा विभिन्न स्थानों से हिन्दुओं द्वारा मुसलमानों को कत्ल करने तथा मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं को कत्ल करने की बातें होने लगी। तब यही कहा जाने लगा कि भारत हिन्दुओं का तथा पाकिस्तान मुसलमानों का देश बन गया है। इस अफवाहों ने इस कत्लेआम को व्यावहारिक रूप देना शुरू कर दिया। गुरदासपुर शहर में बहुत अधिक मुसलमान रहते थे जिन्होंने गुरदासपुर से निकलना शुरू कर दिया।
उन्होंने बताया कि गुरदासपुर में कड़ी सुरक्षा के बीच दो राहत कैंप बनाए गए। एक शहर में तो दूसरा रेलवे स्टेशन मे पास बनाया गया। अंग्रेजों ने राहत कैंपों की सुरक्षा बहुत सख्त कर रखी थी परंतु इस सबके बावजूद इक्कठे रहने वाले लोग एक दूसरे के दुश्मन बन गए परंतु फर्क यह था कि हिन्दु नेता केवल मुसलमान नेताओं पर हमला करते थे जबकि मुसलमान लोग आम हिन्दुओं पर हमले करने लगे। शहर सहित आस-पास के इलाकों मे लूटमार की घटनाए शुरू हो गई तथा लोग बहुत सहम गए। मुसलमान राहत कैंपों में अपना मामूली समान समेट कर ही आ गए। बाजार में लूटमार करने संबंधी एक व्यक्ति पर शक होने पर अंग्रेज पुलिस अफसर की गोली चलाने से वह मारा गया जिसकी पहचान बाद मे प्रभु कुमार के रूप मे हुई। जबकि मुसलमान भी बड़ी संख्या में लूटमार करने के आरोप मे गोली लगने तथा आम लोगों की हिसां का शिकार हुए थे।
उन्होंने बताया कि शहर में जब मुसलमानों का आतंक बहुत अधिक बढ़ गया तथा पुलिस भी बेबस हो गई तो तब कुछ हिन्दु विचारधारा के लोगों ने गुरदासपुर में एक मकान की छत पर से मुसलमानों पर बमों से हमले करने शुरू किए थे जिससे शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया था पंरतु उसके बावजूद मुसलमानों का कहर कम नहीं हुआ। परंतु जब अधिकतर मुसलमान गुरदासपुर शहर व आसपास के इलाकों से भारत की जमीन छोड़ कर पाकिस्तान चले गए तो फिर शांति हुई। उन्होंने बताया कि कुछ मुस्लिम परिवार जो गुरदासपुर शहर में अच्छे व्यापारी थे वह पाकिस्तान के शहर लाहौर मे भी इस समय बहुत अच्छे व्यापारी बने हुए है तथा मुझे एक बार पाकिस्तान जाकर उन्हें मिलने का मौका भी मिला था। उन्होने काफी जोरशोर से मेरा स्वागत किया। वह लोग भी 1947 के विभाजन को याद कर दुखी होते हैं।