कर्जा माफी का नहीं हुआ किसानों को ज्यादा लाभ, 5 वर्षों में 70 किसान गंवा चुके हैं अपनी जान

Edited By Punjab Kesari,Updated: 07 Aug, 2017 09:40 AM

in the last 5 years 70 farmers have lost their lives

पिछले लगभग 5 वर्षों से आर्थिक मंदहाली में गुजर रही पंजाब की किसानी से परेशान पंजाब तथा खासकर मालवा क्षेत्र के किसान मौत को गले लगा रहे हैं। मौसमी मार तथा सरकारों की ‘अनदेखी’ के कारण घाटे का सौदा बनी किसानी व तबाह हुई फसलों तथा घरेलू कारणों में उलझे...

मोगा (पवन ग्रोवर): पिछले लगभग 5 वर्षों से आर्थिक मंदहाली में गुजर रही पंजाब की किसानी से परेशान पंजाब तथा खासकर मालवा क्षेत्र के किसान मौत को गले लगा रहे हैं। मौसमी मार तथा सरकारों की ‘अनदेखी’ के कारण घाटे का सौदा बनी किसानी व तबाह हुई फसलों तथा घरेलू कारणों में उलझे किसानों के पास खुदकुशी के बिना कोई और रास्ता ही नहीं बचा है। मानसिक परेशानी की पीड़ा झेलते ‘खेतों’ के पुत्र आए दिन खुदकुशियां कर रहे हैं। दूसरी तरफ आर्थिक पीड़ा कारण यह किसान चाहे आप तो इस दुनिया को अलविदा कह गए लेकिन इनके बज्जे खेलने तथा पढऩे के दिनों दौरान किसान आंदोलन में कूद पड़े हैं।

‘पंजाब केसरी’ द्वारा एकत्रित की जानकारी में यह तथ्य भी उभरकर सामने आया है कि चाहे राज्य की नई बनी सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस ने कुछ समय पहले 5 एकड़ से कम जमीन वाले किसानों का 2 लाख रुपए प्रति एकड़ कर्जा माफ करने की योजना बनाई है लेकिन फिर भी आर्थिकता की मार झेलते किसानों द्वारा खुदकुशियां करने का सिलसिला जारी है। इस मामले संबंधी विभिन्न स्थानों से एकत्रित जानकारी के अनुसार गत 5 वर्षों में 70 से अधिक मोगा से संबंधित किसान मौत को गले लगा चुके हैं, वैसे इस संबंधी पक्के आंकड़े हासिल नहीं हुए हैं। जिले के गांव हिम्मतपुरा के किसान बसंत सिंह ने आर्थिक हालत कारण 24 जुलाई को जहरीली दवाई पीकर खुदकुशी कर ली थी। मृतक की पत्नी बेअंत कौर ने कहा कि उसके पति पर 5 लाख रुपए बैंक कर्ज के अलावा साहूकारों व सहकारी सभा का भी कर्ज है।

यही नहीं बस डेढ़ एकड़ जमीन पर बिजाई किया धान पानी की भेंट चढ़ गया है तथा पहले गेहूं को आग लग गई थी। अप्रैल 2015 में पकी गेहूं पर पड़ी कुदरती मार तथा नरमे सहित अन्य तबाह हुई फसलें भी जिले के किसानों की मौत का सबब बनी हैं। गांव रौंता का नौजवान किसान मंजीत सिंह भी 14 अगस्त, 2015 को आर्थिक हालत कारण खुदकुशी कर गया था। 3 एकड़ जमीन वाले इस किसान के ऊपर 6 लाख रुपए का कर्ज था। पहले किसान की जमीन बिक गई जिस कारण मानसिक परेशानी को झेलना किसान के वश में नहीं रहा। इसी गांव का ही बहादुर सिंह भी 16 अप्रैल, 2015 को खुदकुशी कर गया था। थोड़ी जमीन वाले इस किसान के पास आमदन का कोई साधन नहीं था। इसके अलावा जिले के हरविंदर सिंह, जरनैल सिंह कुस्सा, बलविंदर सिंह घल्ल भी आर्थिक मंदी के बोझ का सामना करने से बेबस होकर मौत को गले लगा चुके हैं।

कर्जा माफी संबंधी अभी भी जानकारी नहीं मिल सकी किसानों को
पंजाब सरकार द्वारा चाहे 5 एकड़ जमीन तक वाले किसानों का 2 लाख रुपए किसानी कर्जा माफ किया गया है लेकिन अभी तक किसानों को यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि सरकार द्वारा किस स्तर पर कर्ज माफ किया गया है। किसान खेती लिमिटों तथा सहकारी सभाओं के कर्जे के साथ-साथ साहूकारों के कर्ज की माफी भी चाहते हैं लेकिन सरकार के पास इस तरह की सामथ्र्य दिखाई नहीं दे रही जिस कारण मामला ‘पेचीदा’ बना हुआ है। सूत्र बताते हैं कि सरकार ने इस कर्जा माफी में अढ़ाई एकड़ जमीन वाले किसानों को और छूट भी दी है लेकिन अभी इस संबंधी पूरी जानकारी उभरकर सामने नहीं आ सकी है।

कई स्थानों पर पोस्टमार्टम की लापरवाही बनी पीड़ितों के मुआवजे के लिए समस्या
इस दौरान यह भी पता चला है कि कई किसानों के परिवारों द्वारा मृतकों का पोस्टमार्टम नहीं करवाया गया। जिस कारण पीड़ितों को मुआवजा हासिल करने में परेशानी पेश आ रही है। गौरतलब है कि सरकार द्वारा मुआवजे के नियमों अनुसार 174 की कार्रवाई जरूर होने के अलावा कर्जा सहकारी सभाओं व बैंकों का होने की शर्त रखी गई है लेकिन बहुत से किसानों पर साहूकारों का कर्जा था। 

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