इतिहास बनकर रह गया सिविल एयरपोर्ट, फिर से उड़ान भरने को तरस रही हवाई पट्टी

Edited By Updated: 22 May, 2017 01:11 PM

historical civil airport  awaited to fly again

करीब 40 करोड़ की लागत से तैयार हुए सिविल एयरपोर्ट 11 वर्ष पहले 2006 में देश के हवाई नक्शे पर आया था परन्तु आधुनिक यात्री सुविधाओं से सुसगिात इस एयरपोर्ट को ‘रन थू्र’ होते ही नजर लग गई तथा वर्ष दर वर्ष बीतने के बाद धीरे-धीरे यह महत्वपूर्ण सिविल...

पठानकोट(शारदा): करीब 40 करोड़ की लागत से तैयार हुए सिविल एयरपोर्ट 11 वर्ष पहले 2006 में देश के हवाई नक्शे पर आया था परन्तु आधुनिक यात्री सुविधाओं से सुसगिात इस एयरपोर्ट को ‘रन थू्र’ होते ही नजर लग गई तथा वर्ष दर वर्ष बीतने के बाद धीरे-धीरे यह महत्वपूर्ण सिविल एयरपोर्ट इतिहास बनकर रह गया। विमान सेवाएं लम्बे समय से नाना प्रकार के कारणों के चलते बंद होने से इस एयरपोर्ट ने अपना रंग-रूप व स्वरूप खोना शुरू कर दिया था। यात्रियों के लिए हवाई अड्डे के टर्मिनल पर जुटाई गई आधुनिक सुविधाएं धीरे-धीरे मरनासन्न अवस्था की ओर अग्रसर है। 

एक दशक पहले जो इस सिविल एयरपोर्ट पर रौनक थी वो अब बीते कल की बात हो चुकी है। हालांकि इस एयरपोर्ट से पंजाब सहित पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश व जम्मू-कश्मीर की जनता व व्यापारियों को भी इसका लाभ मिलना निश्चित था परन्तु आधे दशक से भी अधिक समय से एयरपोर्ट की हवाई पट्टी उड़ान भरने को तरस गई है जबकि एयरपोर्ट की हवाई पट्टी देश की सबसे बड़ी हवाई पट्टियों में शामिल हैं यहां पर भारी भरकम गजराज जैसे विमान भी आसानी से उतर व उड़ान भर सकते हैं। 

विमान सेवाओं की समय-सारिणी बनी एयरपोर्ट की वीरानी  का कारण
इस एयरपोर्ट से स्थानीय लोगों सहित हिमाचल प्रदेश के डमटाल, नूरपुर व्यापारिक क्षेत्रों के साथ जम्मू-कश्मीर की कठुआ बैल्ट थी, हवाई सेवाओं के मामले में लाभान्वित होनी थी। विमान सेवाओं की समय-सारिणी कुछ इस प्रकार से जटिल थी कि इन क्षेत्रों के कारोबारियों व अन्य सामान्य यात्रियों का तारतम्य नहीं बैठ पा रहा था। पठानकोट के साथ कठुआ, डमटाल व नूरपुर आदि में कारोबार करने वाले व्यापारी चाहते थे कि सिविल एयरपोर्ट से हवाई सुविधाएं यानी विमान सेवाएं इस प्रकार हों कि वे सुबह देश की राजधानी दिल्ली व अन्य महानगरों की ओर अपने कार्यों के चलते कूच करें तथा रात होने तक फिर वहां से फ्लाइट लेकर वापस लौट आएं। इसलिए उन्होंने महंगा हवाई सफर तय करने की जगह फिर से आसानी से उपलब्ध रेल सेवा को ही अपने कार्यों को निपटाने के लिए अधिमान दिया। यात्रियों व विमान सेवाओं के इस एयरपोर्ट से विमुख होने से सिविल एयरपोर्ट में वीरानी का आलम छा गया।  

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