Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Sep, 2017 11:16 AM
गुरदासपुर में होने वाले उपचुनाव में जीतने वाले उम्मीदवार ने चाहे 18 माह के लिए सांसद बनना है। पर इस उपचुनाव के नतीजों के साथ न सिर्फ कई धनाढ्य राजनीतिज्ञों के भविष्य का फैसला होगा बल्कि उम्मीदवार की जीत-हार और उनको पड़ने वाली वोटों से प्रमुख...
गुरदासपुरः गुरदासपुर में होने वाले उपचुनाव में जीतने वाले उम्मीदवार ने चाहे 18 माह के लिए सांसद बनना है। पर इस उपचुनाव के नतीजों के साथ न सिर्फ कई धनाढ्य राजनीतिज्ञों के भविष्य का फैसला होगा बल्कि उम्मीदवार की जीत-हार और उनको पड़ने वाली वोटों से प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के लोक आधार की स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।
कैप्टन के लिए बड़ी चुनौती
कांग्रेस की तरफ से अपने कार्यकाल के पहले 6 माह दौरान अपने कुछ चुनावी वायदों को अमलीजामा पहनाने संबंधी किए जा रहे दावों के उलट यदि किसी कारण सुनील जाखड़ को जनता का फतवा न मिला तो इसका सीधा प्रभाव यह माना जा सकता है कि 6 माह में ही लोगों का कैप्टन अमरेंद्र सिंह की सरकार से मोह भंग हो गया है।
प्रताप सिंह बाजवा के भविष्य पर भी पड़ सकता है प्रभाव !
यदि सुनील जाखड़ चुनाव में विजयी होते हैं तो इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि 2019 दौरान होने वाले मतदान में फिर से उनको ही गुरदासपुर से चुनाव मैदान में उतारा जाएगा। प्रताप सिंह बाजवा का बतौर राज्यसभा सदस्य कार्यकाल 2019 के बाद समाप्त होना है। इससे पहले बाजवा या उनकी पत्नी के लिए कादियां की विधानसभा सीट पूरी तरह सुरक्षित थी परन्तु इस बार वहां उनके छोटे भाई फतेहजंग सिंह बाजवा विधायक हैं । अब वह किसी भी कारण इस सीट को छोड़ना नहीं चाहेंगे।
सुनील जाखड़ का निजी मान भी दाव पर
पंजाब विधानसभा में विरोधी पक्ष के नेता के तौर पर और पंजाब कांग्रेस के प्रधान के इलावा ओर अलग -अलग पदों पर काम करने वाले सुनील जाखड़ की छवि एक बुद्धिमान और ईमानदार राजनीतिज्ञ वाली है, परन्तु 2014 के लोकसभा तथा 2017 के विधानसभा चुनाव दौरान लगातार उनकी हुई हार कारण कहीं न कहीं उनके राजनीतिक कद को धक्का जरूर लगा है। अब जब कैप्टन और उनके हमख्याली विधायकों ने पूरे जोश के साथ जाखड़ को गुरदासपुर के चुनाव मैदान में उतारा है तो यहां उनकी जीत उनके राजनीतिक कद को ऊंचा करेगी।
कविता खन्ना और स्वर्ण सलारिया का भविष्य
अकाली-भाजपा गठजोड के उम्मीदवार स्वर्ण सलारिया 2009 से गुरदासपुर की टिकट प्रमुख दावेदार के तौर पर मांग रहे थे। उन्होंने जिले में सख्त मेहनत करके अपना आधार बनाया है। अगर चुनावों में वह विजय प्राप्त करते हैं तो पार्टी और लोगों में उन का कद ओर ऊंचा होगा। यदि वह हार जाते हैं तो आगामी 2019 के मतदान दौरान पार्टी की तरफ से इस टिकट संबंधी फिर से विचार किया जा सकता है । तब 4 बार लोकसभा सदस्य रह चुके विनोद खन्ना की पत्नी को अपनी दावेदारी पेश करने के लिए एक ओर मौका मिल सकता है।
'आप'की पंजाब लीडरशिप की परीक्षा
विधान सभा मतदान उपरांत 'आप' नेताओं ने दिल्ली बैठी लीडरशिप को पंजाब में ज़्यादा दखल न देने के लिए कहा था। इसके अंतर्गत अब जब यह चुनाव केवल पंजाब के सभी नेताओं के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है। फिर भी इसमें संतुष्टिजनक परिणाम प्राप्त न होने पर सीधे तौर पर लोकल लीडरशिप की तरफ से किए जा रहे दावों पर सवाल खड़े हो जाएंगे।