Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Oct, 2017 11:39 AM
देश के विकास के लिए युवा पीढ़ी का पढ़ा-लिखा होना जरूरी होता है। स्टूडैंट्स के लिए बेहतर शिक्षा उपलब्ध करवाना सरकार की जिम्मेदारी बनती है। भारत में भी सरकारों द्वारा अपने-अपने राज्यों में विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा देने के लिए बच्चों को सरकारी...
जालंधर(दुग्गल): देश के विकास के लिए युवा पीढ़ी का पढ़ा-लिखा होना जरूरी होता है। स्टूडैंट्स के लिए बेहतर शिक्षा उपलब्ध करवाना सरकार की जिम्मेदारी बनती है। भारत में भी सरकारों द्वारा अपने-अपने राज्यों में विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा देने के लिए बच्चों को सरकारी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा, किताबें, खाना जैसी सुविधाएं उपलब्ध करवाने पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं परन्तु इतने खर्च के बावजूद सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या नहीं बढ़ रही।
एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक अगर साल 2010-11 से लेकर 2015-16 तक की बात की जाए तो सरकारी स्कूलों में एनरोलमैंट कम ही हुई है, जबकि इसी अवधि में प्राइवेट स्कूलों में विद्यार्थियों की एनरोलमैंट में इजाफा दर्ज किया गया। इसी रिपोर्ट की माने तो अन्य योजनाओं पर प्रतिवर्ष खर्चे करोड़ों रुपए के अलावा वर्ष 2009 से लेकर वर्ष 014 तक 5 सालों में अकेले सर्वशिक्षा अभियान के तहत ही 1.16 लाख करोड़ रुपए खर्च किए गए।
इतने पैसे खर्चने के बावजूद बच्चों के अभिभावकों का रुझान प्राइवेट स्कूलों की तरफ है। पक्ष जानने के लिए जब कुछ अभिभावकों से बात की गई तो उनका कहना था कि भले ही सरकारी स्कूलों में कई सुविधाएं दी जाती हैं परन्तु प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई का स्तर सरकारी स्कूलों की अपेक्षा ऊंचा होता है। सरकार द्वारा हर वर्ष बच्चों की एनरोलमैंट, इंफ्रास्ट्रक्चर, स्कूल में मूलभूत सुविधाओं की सारी रिपोर्ट तैयार होती है। इसके बावजूद अपनी खामियों में सुधारने में सरकारें असफल क्यों रहती हैं यह एक बड़ा सवाल है।