Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Oct, 2017 01:18 PM
सरकारी टी.बी. अस्पताल में आक्सीजन न मिलने से मरीज की हुई मौत के मामले में पंजाब सरकार ने चुप्पी साधी हुई है। मरीज की मौत को 1 सप्ताह से अधिक दिन बीत जाने के उपरांत भी सरकार ने अस्पताल प्रशासन के खिलाफ अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है।
अमृतसर (दलजीत): सरकारी टी.बी. अस्पताल में आक्सीजन न मिलने से मरीज की हुई मौत के मामले में पंजाब सरकार ने चुप्पी साधी हुई है। मरीज की मौत को 1 सप्ताह से अधिक दिन बीत जाने के उपरांत भी सरकार ने अस्पताल प्रशासन के खिलाफ अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है।
सरकार की अनदेखी के कारण जहां उक्त अस्पताल में सेहत सेवाओं को जनाजा निकल रहा है वहीं इलाज के लिए आने वाले मरीज मौत का ग्रास बन रहे हैं। जानकारी के अनुसार टी.बी. अस्पताल में आक्सीजन न मिलने से मरीज मंगल सिंह की मौत हो गई थी। सेहत मंत्री ब्रह्म महेन्द्रा ने मीडिया में मामला आने के उपरांत सरकारी मैडीकल कालेज के प्रिंसीपल को जांच के निर्देश दे दिए थे। प्रिंसीपल ने एक ही दिन में रिपोर्ट फाइनल करके विभाग को भेज दी थी परन्तु अफसोस की बात है कि एक सप्ताह से अधिक समय हो जाने के उपरांत भी किसी भी जिम्मेदार अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
18 अक्तूबर को जिस समय टी.बी. अस्पताल में आक्सीजन की आपूर्ति ठप्प हुई थी, तब एमरजैंसी वार्ड में 8 मरीज दाखिल थे। ये सभी मरीज आक्सीजन न मिलने से बुरी तरह हांफ रहे थे। टी.बी. अस्पताल में आक्सीजन का स्टॉक खत्म हो चुका था, लेकिन यहां से मात्र एक किलोमीटर दूर स्थित गुरु नानक देव अस्पताल (जी.एन.डी.एच.) में ऑक्सीजन सिलैंडर का भंडार उपलब्ध था। हैरानी की बात है कि टी.बी. अस्पताल के डाक्टरों ने वहां से सिलैंडर मंगवाना उचित नहीं समझा। यदि जी.एन.डी.एच. से सिलैंडर मंगवा लिए जाते तो आज मंगल सिंह जीवित होता।
दरअसल, टी.बी. अस्पताल व जी.एन.डी.एच. दोनों ही मैडीकल शिक्षा एवं खोज विभाग द्वारा संचालित किए जाते हैं। इन दोनों अस्पतालों को आक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनियां अलग-अलग हैं। जी.एन.डी.एच. में भुल्लर गैस सॢवस द्वारा आक्सीजन भेजी जाती है जबकि टी.बी. अस्पताल में शक्ति गैस कंपनी द्वारा। मंगल सिंह की मौत के बाद टी.बी. अस्पताल प्रशासन द्वारा शक्ति गैस कंपनी पर ठीकरा फोड़ा जा रहा है। प्रशासन का यह आरोप काफी हद तक ठीक भी है क्योंकि 18 अक्टूबर को आक्सीजन की सप्लाई मंगवाने के लिए इमरजैंसी वार्ड में कार्यरत पी.जी. डॉक्टर ने बार-बार शक्ति गैस कंपनी को फोन किया, पर कंपनी की ओर से जवाब मिला कि उन्हें 1.40 लाख रुपये के बकाए का भुगतान चाहिए।
कंपनी के इस कोरे जवाब के बाद टी.बी. अस्पताल के डाक्टरों ने आक्सीजन उपलब्ध करवाने की दिशा में प्रभावी कदम नहीं उठाया। यदि डाक्टर चाहते तो जी.एन.डी.एच. से आपात्कालीन स्थिति में 4-5 सिलैंडर मंगवा सकते थे। जी.एन.डी.एच. में गैस प्लांट विद्यमान है। यहां हमेशा 100 से 120 सिलैंडर उपलब्ध रहते हैं। इसके अतिरिक्त टी.बी. अस्पताल से कुछ दूरी पर ई.एन.टी. अस्पताल व सिविल अस्पताल भी हैं। यहां से भी सिलैंडर मंगवाए जा सकते थे। बहरहाल, आक्सीजन की कमी के कारण मंगल सिंह की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग ने उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए हैं।
आर.टी.आई. एक्टीविस्ट रजिन्द्र शर्मा राजू ने कहा कि सरकार की ढिमुल के चलते मासूम मरीजों की जान जा रही है। यदि समय पर मरीज को आक्सजीन मिली होती तो आज मंगल सिंह जीवत होता। अस्पताल प्रशासन ने कुछ ही दूरी पर स्थित अस्पतालों से आक्सीजन सिलैंडर नहीं मंगवाए जिससे साबित होता है कि अस्पताल मरीज की मौत के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है। पिछले कुछ महीनों में अस्पताल में मरीजों की की धड़ाधड़ हो रही मौतें रहस्यपूर्ण हैं। सरकार यदि मंगल सिंह की मौत को गंभीरता से लेते हुए जांच करे तो कई बड़े खुलासे हो सकते हैं।