मकसद से भटकने लगा GST, मनमर्जी पर उतरीं राज्य सरकारें!

Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Jul, 2017 02:26 PM

goods and services tax

केन्द्र सरकार द्वारा 1 जुलाई से लगाए गए जी.एस.टी. की धीरे-धीरे परिभाषा ही बदलती जा रही है। ऐसा महसूस हो रहा है कि यह कानून मकसद से भटक

लुधियाना(सेठी): केन्द्र सरकार द्वारा 1 जुलाई से लगाए गए जी.एस.टी. की धीरे-धीरे परिभाषा ही बदलती जा रही है। ऐसा महसूस हो रहा है कि यह कानून मकसद से भटक रहा है, क्योंकि केन्द्र ने इसे ‘एक देश, एक टैक्स’ का नाम दिया था परंतु राज्य सरकारों की पूरी तैयारी न होने के कारण हर तरफ अपनी मनमर्जी की जा रही है। इसका परिणाम देश के सैंकड़ों कारोबारियों को भुगतना पड़ रहा है। 


गौरतलब है कि इस नई कर प्रणाली में ई-वे बिल भी लगाया जाना था लेकिन जी.एस.टी. कौंसिल की खुद की तैयारी न होने के कारण इस प्रावधान को 1 अक्तूबर 2017 को लागू करने की घोषणा कर दी गई। जो कुछ राज् यों को पसंद नहीं आई और उन्होंने अपने-अपने राज्य में वैट के समय के कानून को ही लागू करना शुरू कर दिया है। इससे देशभर के कारोबारी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। पता चला है कि बिहार, नागालैंड, मिजोरम सहित उत्तर प्रदेश सरकार ने ई-वे बिल को अपने स्तर पर लगा दिया है। वहीं यू.पी. ने तो 25 जुलाई को लागू किए इस कानून में बहुत से सख्त प्रावधान भी डाल दिए हैं। अब अन्य राज्यों से एक्सपोर्ट होने वाले माल के साथ फार्म-38 लगाना अनिवार्य है। इसमें कारोबारी इन्वॉयस के हिसाब से फार्म डाऊनलोड करके पूरी डिटेल भरेंगे और उसे अपलोड कर देंगे। विभाग की ओर से एस.एम.एस. द्वारा आए नंबर के सहारे उत्तर प्रदेश में कहीं भी ले जाया जा सकता है परंतु इसमें दिक्कत यह है कि ई-वे बिल वही होगा, जिसकी कीमत 5 हजार से अधिक होगी।

इसके साथ समय अवधि का भी ध्यान रखना पड़ेगा अर्थात् दिल्ली से गाजियाबाद जाने वाले माल के लिए यू.पी. सरकार ने 24 घंटे का समय दिया है। इस कानून से छोटे-छोटे कारोबारियों को भारी दिक्कत आ रही है, क्योंकि 5 हजार की रकम बहुत कम है परंतु यू.पी. सरकार ने अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए यह सख्त प्रावधान बनाया है। यहां लिखने योग्य बात यह है कि यदि राज्य सरकारों ने जी.एस.टी. लगाने के बाद भी अपनी मर्जी करनी है तो केन्द्र का क्या रोल है। ऐसे में एक देश एक टैक्स की बात कहां ठीक बैठती है, क्योंकि यू.पी. के बाद अन्य राज्य भी अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए ऐसे कदम उठा सकते हैं। इससे देश के कारोबारियों को 1 अक्तूबर से पहले ही कारोबार करना मुश्किल हो जाएगा।

ई-वे बिल नहीं होना चाहिए
पंजाब प्रदेश व्यापार मंडल के सुनील मेहरा, मोङ्क्षहद्र अग्रवाल व राधेशाम आहूजा ने कहा कि ई-वे बिल देश के कारोबार के लिए घातक है इसलिए इसे लगाना नहीं चाहिए। 
इन नेताओं ने कहा कि जो राज्य अपने स्तर पर ई-वे बिल को लगा रहे हैं, उन पर रोक लगनी चाहिए, क्योंकि जी.एस.टी. में पहले से ही प्रॉसीक्यूशन, सर्च एंड सीजर, स्टॉक रजिस्टर जैसे सख्त प्रावधान शामिल हैं। ऊपर से ई-वे बिल लगाना अफसरशाही को बढ़ावा और भ्रष्टाचार में वृद्धि को निमंत्रण देना है। इन व्यापारी नेताओं ने कहा कि व्यापार मंडल ने केन्द्र को कई बार सुझाव दिया है कि जी.एस.टी. कौंसिल में जहां कानून बनाए और उनमें बदलाव किया जाता है, वहीं इस कौंसिल में कारोबारियों को प्रतिनिधिता मिलनी चाहिए। जो कानून जिसके लिए बन रहा है, उसका कौंसिल में शामिल होना जरूरी है अन्यथा इसी प्रकार कारोबारियों से धक्का होता रहा है और होता रहेगा। 

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