ई कैटेगिरी में पहुंचा घग्गर का पानी,  इसके प्रभाव से सिंचाई योग्य भी नहीं रहा भू-जल

Edited By Updated: 27 Apr, 2017 10:36 AM

gaggar  s water reached in e categagiri  its effect was not irrigable

भटिंडा प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्टें बताती हैं कि घग्गर का पानी जहरीला हो चुका है।

भटिंडा( बलविंद्र शर्मा): भटिंडा प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्टें बताती हैं कि घग्गर का पानी जहरीला हो चुका है। इससे घग्गर के आसपास की जमीन पर खेती बुरी तरह से प्रभावित हो गई है। कई किलोमीटर तक जमीन बंजर होने का अंदेशा है। एकत्रित की गई जानकारी के मुताबिक पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की एक सांझी बैठक हर 3 महीने बाद होती है जिसमें तीनों राज्यों के प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के अधिकारी शामिल होते हैं। 

तीनों राज्यों में घग्गर में बहते पानी और साथ लगते इलाके के भू-जल के सैंपल लिए जाते हैं। पानी की गुणवत्ता ‘ए’ से ‘ई’  कैटेगिरी तक मापी जाती है। जैसे-जैसे पानी प्रदूषित होता जाता है, वैसे-वैसे कैटेगिरी ‘ए’ से खिसकर नीचे आती रहती है। घग्गर में पानी की रिपोर्ट अधिकतर ई ही आ रही है, जोकि सबसे ज्यादा प्रदूषित है। इस कारण साथ लगे जमीन के भू-जल की रिपोर्ट डी कैटेगिरी के आसपास रहती है, जोकि पीने योग्य या सिंचाई के योग्य नहीं मानी जाती। 


प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड भटिंडा जोन के एस.डी.ओ. रोहित सिंगला ने उक्त बात की पुष्टि करते हुए कहा कि सैंपल एकत्र करने के लिए बाकायदा प्वाइंट निश्चित किए जाते हैं, जैसे कि घग्गर में बहते पानी के लिए सरदूलगढ़, भूंदड़, रतिया (हरियाणा) है, जबकि भू-जल के प्वाइंट सरदूलगढ़-रतिया रोड पर हैं, जहां विशेष तौर पर टयूबवैल लगाए हुए हैं। उन्होंने कहा कि घग्गर में बहते पानी के सैंपल अधिकतर ‘ई’ कैटेगिरी के ही आ रहे हैं जबकि भू-जल की कैटेगरी बदलती रहती है, जो ‘ई’ से नीचे है, क्योंकि धरती पानी को साफ कर देती है। 

घग्गर के 18 गांव सिंचाई के लिए हरियाणवी कानून पर निर्भर

घग्गर के किनारे पर सरदूलगढ़ क्षेत्र में कुल 18 गांव पड़ते हैं, जिनमें रोडकी, झंडा खुर्द, झंडा कलां, सरदूलगढ़, साधू वाला, फूस मंडी, कौड़ी वाला, भलनवाला, आहलूपुर, लोहगढ़, खैरा खुर्द, खैरा कलां, करंडी, संघ, राज रानी, लोहारखेड़ा, नाहरा, मान खेड़ा (हरियाणा की तरफ) हीर के, वरन, भगवानपुर हींगणा, रणजीतगढ़ वांदर, मीरपुर कलां, मीरपुर खुर्द, सरदूलेवाला, काहनेवाला, भूंदड़ (पंजाब की तरफ) आदि हैं, जो पंजाब में होते हुए भी सिंचाई के लिए हरियाणवी कानून पर निर्भर हैं।
 पंजाब के नियमों के अनुसार प्रांत में 21 दिनों बाद एक हफ्ते के लिए नहरी बंदी आती है, जबकि उक्त गांवों को हरियाणा की मर्जी के कारण एक हफ्ते बाद ही 15 दिनों की नहरबंदी का सामना करना पड़ता है। अंत टेलों पर रह जाते खेतों तक पानी पहुंचता ही नहीं। ऐसा इसलिए होता है कि भाखड़ा की फतेहपुर ब्रांच का अधिक पानी हरियाणा को मिलता है। नियम है कि अगर एक ब्रांच का पानी किसी राज्य के बड़े हिस्से को सिंचाई योग्य पानी देता है तो जरूरी नियम भी उसी राज्य के लागू होंगे। टोहाणा मुख्य हैड पर हरियाणा के खेतों को पानी देने के बाद ही गोलेवाला हैड को पानी दिया जाता है, जो पंजाब के खेतों को मिलता है। इसलिए इन गांवों के लिए एस.ई. हिसार की वारबंदी ही लागू होती है। 

सिंचाई के लिए श्राप बना काला पानी
कुदरती विज्ञान है कि नदियां व दरिया खुले रोमों के जरिए धरती से जुड़े हुए हैं। ऐसा होने से दरिया के पानी की स्वच्छता व निर्मलता कायम रहती है, जबकि धरती भी रिचार्ज होती रहती है। अब दशक से घग्गर में सीवरेज और फैक्टरियों का दूषित पानी पड़ रहा है, जोकि कुदरती पानी की बूंद के लिए भी तरस गया है। अब घग्गर का दूषित पानी खुले रोमों जरिए धरती में समा रहा है जिस कारण इसके किनारों की धरती का पानी भी काला हो गया है। 
धरती का निचला काला पानी अब किनारों के खेतों के लिए श्राप साबित हो रहा है क्योंकि पिछले वर्ष आई बाढ़ ने खेतों के खाल, वाट आदि सभी हदबंदी तोड़ दी थी। इसके बाद यह खाल नहीं बन सके। इस क्षेत्र में नहरी पानी की उपलब्धता भी नहीं है, जिस कारण लोग टयूबवैल जरिए धरती के निचले पानी से ही सिंचाई करने के लिए मजबूर हैं। जोकि फसलों के लिए भी जहरीला है और मनुष्य जिंदगी पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है।  

हजारों एकड़ जमीन बंजर होने के कगार पर 
- पंजाब के पटियाला से सरदूलगढ़ तक के क्षेत्र से आगे हरियाणा के रतिया तक घग्गर के किनारे के साथ लगती 10 से 12 किलोमीटर जमीनें इसके जहरीले पानी के कारण प्रभावित हुई हैं। इससे हजारों एकड़ जमीन बंजर होने की कगार पर है। जट्ट समाज सभा हरियाणा पंजाब और हरियाणा प्रदेश के सिंचाई विभागों से संपर्क कर चुकी है लेकिन किसी द्वारा भी भू-जल की जांच रिपोर्ट नहीं दी गई। अधिकारी मानते जरूर है कि भू-जल दूषित हुआ है और सिंचाई के काबिल नहीं लेकिन वे इसको घग्गर से नहीं जोड़ते। करीब 100 से 125 फुट गहरा भू-जल दूषित होने के कारण अब किसान 400 फुट गहरे बोर करने के लिए मजबूर हैं। वे अपने तौर पर पानी की चैकिंग करवा चुके हैं, जो पीने योग्य या सिंचाई योग्य नहीं है। घग्गर को प्रदूषण मुक्त करने के लिए सभा द्वारा बड़े स्तर पर संघर्ष शुरू किया गया है, जिसमें पंजाब की जत्थेबंदियों को भी जोड़ा जाएगा। 
-डा. नैब सिंह मंडेर, रतिया (हरियाणा)

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