Edited By Updated: 09 Dec, 2016 04:23 PM
सन् 1967 का पंजाब विधानसभा चुनाव राज्य में कांग्रेस की सियासी गिरावट के तौर पर याद किया जाता है। आजादी के बाद यह पहला चुनाव था जब राज्य में गैर कांग्रेसी सरकार बनी और अकाली दल के नेता जस्टिस गुरनाम सिंह राज्य के पहले अकाली मुख्यमंत्री बने। इस चुनाव...
जालंधर (वैब टीम): सन् 1967 का पंजाब विधानसभा चुनाव राज्य में कांग्रेस की सियासी गिरावट के तौर पर याद किया जाता है। आजादी के बाद यह पहला चुनाव था जब राज्य में गैर कांग्रेसी सरकार बनी और अकाली दल के नेता जस्टिस गुरनाम सिंह राज्य के पहले अकाली मुख्यमंत्री बने। इस चुनाव को दलित नेता मास्टर गुरबंता सिंह की हार के कारण याद किया जाता है। आजादी के बाद यह पहला चुनाव था जब कांग्रेस के मजबूत दलित नेता मास्टर गुरबंता सिंह आर.पी.आई. के उम्मीदवार पी. राम के हाथों 2708 वोटों से हार गए थे। करतारपुर सीट से उस चुनाव के दौरान पी. राम को 18,708 वोट मिले जबकि मास्टर गुरबंता सिंह को 16,000 वोट हासिल हुए थे।
अकाली दल को मिला था पंजाबी सूबा संघर्ष का लाभ
इस चुनाव से पहले भाषा के आधार पर पंजाबी सूबा संघर्ष चलाने का फायदा अकाली दल को मिला था। अकाली दल के इस आंदोलन को कांग्रेस के सिख विधायकों का भी समर्थन मिला था ।
1965 में कांग्रेस के 15 विधायक अलग पंजाबी सूबे की मांग पर अकाली दल के समर्थन में आ गए थे। पंजाबी सूबे की मांग को लेकर अकाली नेता संत फतेह सिंह ने 10 सितम्बर, 1965 से आमरण अनशन की चेतावनी दे दी थी लेकिन इस बीच भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया और संत फतेह सिंह को अपना संघर्ष स्थगित करना पड़ा। इस बीच केंद्र की कांग्रेस सरकार ने गृह मंत्री हुक्म सिंह की अगुवाई में पंजाबी सूबे की मांग पर विचार करने के लिए कमेटी का गठन कर दिया जिसके बाद पंजाबी सूबे (आज का पंजाब) का गठन हुआ और इसके बाद पंजाब में अकाली दल का प्रभाव बनना शुरू हो गया।