Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Oct, 2017 01:28 PM
किसानों की खुदकुशियां आज एक बेहद गंभीर मुद्दा बना हुआ है। इस मुद्दे की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि
भटिंडा(विजय): किसानों की खुदकुशियां आज एक बेहद गंभीर मुद्दा बना हुआ है। इस मुद्दे की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पंजाब सरकार को सत्ता में आते ही छोटे किसानों का 2 लाख रुपए तक का कर्ज माफ करने का ऐलान करना पड़ा। हालांकि कैप्टन सरकार की यह कर्जमाफी भी किसानों को कोई राहत प्रदान नहीं कर सकी व किसानों की खुदकुशियों का सिलसिला अभी भी जारी है। किसान संगठन व सरकार खुदकुशियों को लेकर अब भी आमने-सामने हैं। किसान संगठनों का कहना है कि सरकार किसानों-मजदूरों का सारा सरकारी व गैर-सरकारी कर्ज माफ करे ताकि किसानों को कुछ राहत मिल सके।
कब थमेगा किसानों के आत्महत्या का सिलसिला
पंजाब में सरकार बदल गई, मुख्यमंत्री बदल गए, मौसम भी बदल गया और मौसम की तरह राजनेता के वायदे भी बदल गए। मगर नहीं बदला तो वह है, किसानों के आत्महत्या करने का सिलसिला, न ही आत्महत्या के बाद मुआवजे के लिए धरना प्रदर्शन में कोई कमी आई है। जब धरना व्यापक रूप धारण कर लेता है तो सरकार की तरफ से किसानों के लिए मुआवजे कि घोषणा होती है। इस तरह पंजाब सरकार अपनी नैतिक जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती है। मुआवजे की घोषणा होते ही किसानों का धरना भी खत्म हो जाता है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि मुआवजा ही एक मात्र इस समस्या का हल हो। मगर ऐसा होता नहीं है। मुआवजे की रकम आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवार तक पहुंचने के दरमियान न जाने कितने और किसान आत्महत्या करने की सूची में शामिल हो चुके होते हैं। किसानों की आत्महत्या की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कैप्टन अमरेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री बने हुए अभी महज 7 महीने ही हुए हैं, इतने कम समय में सिर्फ भटिंडा जिले में 60 से ज्यादा किसान आत्महत्या कर अपनी जिंदगी की इहलीला समाप्त कर चुके हैं।
खेती-किसानी में ग्लैमर की जरूरत
आज खेती-किसानी का काम करना अब पिछड़े होने की निशानी के रूप में मान लिया गया है। आंकड़े पर अगर गौर करें तो कुछ हद तक यह सही भी है क्योंकि खेती और किसानी में पढ़े-लिखे लोगों की संख्या काफी कम है। अगर कोई पढ़ा-लिखा खेती करता भी है तो उसको सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता है। खेती को ग्लैमर के साथ जोड़ देने से काफी युवा इसकी तरफ रुख कर नए रास्ते इजाद कर सकते हैं जिससे खेती करना लाभदायक माना जाने लगेगा व यह कहावत फिर से चरितार्थ होती दिखने लगेगी कि उत्तम खेत मध्यम व्यापार।
10 वर्षों में 6926 किसान कर चुके हैं आत्महत्याएं
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किसानों की आत्महत्या से संबंधित कराए गए एक सर्वे के अनुसार पंजाब में पिछले 10 वर्षों के दौरान 6926 किसान आत्महत्या कर चुके हैं जिसमें 3954 किसान हैं व 2972 खेतीहर मजदूर शामिल हैं। इस सर्वे ने यह साफ रेखांकित कर दिया है कि सबसे ज्यादा आत्महत्या की घटना मालवा क्षेत्र के दो जिलोंबङ्क्षठडा और मानसा में हुई हैं। ऐसा कतई नहीं कि किसानों के आत्महत्या की समस्या सिर्फ पंजाब में ही होती है बल्कि इसने राष्ट्रीय रूप धारण कर लिया है। पिछले महीने ही महाराष्ट्र के किसान मुआवजा के लिए सड़क पर आ गए थे। मजबूर होकर महाराष्ट्र सरकार ने कर्ज माफी की घोषणा की। किसानों के इस तरह से सिलसिलेवार आत्महत्या का बीज 90 के दशक में ही बो दिया गया था।
जब हरित क्रांति की शुरूआत हुई थी मगर समय रहते इस पर ध्यान देने के बदले हरित क्रांति को किसान हित के रूप में बहुत जोर शोर से प्रचारित किया गया जैसे देश में खाद संकट का हल सिर्फ हरित क्रांति से ही संभव हो सकता है, आज उसी का विनाशक रूप हमारे सामने दिखलाई दे रहा है। किसान ज्यादा उत्पादन के लिए ज्यादा से ज्यादा खाद का प्रयोग करने लगे, इस वजह से फसल उत्पादन तो बढ़ गया लेकिन खेत की उरर्वक क्षमता धीरे-धीरे करके नष्ट होती चली गई। आज स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि खेत अब बंजर होने की कगार पर पहुंच गए हैं। इस वजह से अनाज की उत्पादन क्षमता पर इसका बुरा असर पड़ा है।किसान कर्ज लेकर खाद व बीज खरीदता है, जिससे वह लागत से ज्यादा खर्च कर देता है, यही आत्महत्या का कारण बनता है। भटिंडा के किसान साल भर में के वल तीन ही फसलें अपने खेतों में लगाते हैं, गेहूं, धान और नरमा।