सरकारी स्कूलों में छात्रों के साथ हो रहा कुछ ऐसा कि...

Edited By Updated: 26 Feb, 2017 08:21 AM

fake admission in the goverment school

सरकारी प्राइमरी स्कूलों में अध्यापकों द्वारा अपनी पोस्ट बचाने के लिए जाली तौर पर छात्रों की भर्ती का स्कैंडल सामने आने से शिक्षा विभाग द्वारा इस संबंधी उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए गए हैं, परंतु सरकारी व प्राईवेट स्कूलों में प्रवेश पाने के लिए बच्चों...

गुरदासपुर(विनोद): सरकारी प्राइमरी स्कूलों में अध्यापकों द्वारा अपनी पोस्ट बचाने के लिए जाली तौर पर छात्रों की भर्ती का स्कैंडल सामने आने से शिक्षा विभाग द्वारा इस संबंधी उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए गए हैं, परंतु सरकारी व प्राईवेट स्कूलों में प्रवेश पाने के लिए बच्चों का आधारकार्ड जरूरी होने के बावजूद इस तरह का स्कैंडल होना चिन्ता का विषय है, यह विभाग के अधिकारी भी अब मानने लगे हैं।

क्या है सरकारी प्राइमरी स्कूलों में जाली छात्र प्रवेश का मामला 
पंजाब सरकार द्वारा जारी आदेश अनुसार शिक्षा विभाग में सरकारी प्राइमरी स्कूलों में 30 छात्रों के पीछे एक अध्यापक होना चाहिए। इसी तरह यह प्रतिशत बढ़ता जाता है। 60 बच्चों के लिए 2 अध्यापक तथा 90 बच्चों के लिए 3 अध्यापक चाहिए होते हैं। यदि छात्र कम हो जाते हैं तो उस स्कूल के अध्यापकों को प्रतिशत अनुसार किसी बड़े स्कूल में भेज दिया जाता है, परंतु सीमावर्ती तथा पिछड़े हुए इलाकों के अध्यापक, जो अपने-अपने घरों के पास तैनात हैं, वे अपने पद बचाने के लिए सरकारी स्कूलों में जाली छात्र भर्ती कर लेते हैं तथा अपने पद को वहीं बनाए रखते हैं। इससे एक तो सरकार को यह नुक्सान होता है कि कम बच्चों के लिए अधिक अध्यापक तैनात रहते हैं, वहीं सभी छात्रों के लिए मिलने वाला मिड-डे मील का राशन भी खुर्द-बुर्द होता है जिसे बेच कर अध्यापक जाली तौर पर भर्ती बच्चों की फीस जमा करवाते हैं।

कैसे करते हैं जाली भर्ती का धंधा
इकट्ठी की गई जानकारी अनुसार दूरदराज के इलाकों में चल रहे सरकारी प्राइमरी स्कूलों के अध्यापक स्कूल में छात्र कम हो जाने पर अपना तबादला रोकने के लिए यह जाली भर्ती करते हैं। जो बच्चे प्राईवेट स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कर रहे होते हैं, उनका दाखिला सरकारी स्कूलों में दिखाकर ये अध्यापक अपना तबादला रुकवाने में सफल हो जाते हैं। इस जाली भर्ती में भी बच्चे का आधारकार्ड लेकर उसकी फोटोकॉपी प्रवेश-फार्म के साथ लगा देते हैं, जिस कारण छात्र 2 स्कूलों में प्रवेश पा जाता है। इस तरह सरकार द्वारा चलाई जा रही मिड-डे मील योजना में भी घपला होता है। इन जाली प्रवेश वाले बच्चों के नाम पर भी मिड-डे मील प्राप्त कर उसे बेच दिया जाता है तथा राशि खुर्द-बुर्द कर दी जाती है।

कैसे आया यह जाली भर्ती का स्कैंडल सामने
जैसे ही पांचवीं कक्षा की परीक्षा 21 फरवरी को शुरू हुई तो कुल छात्रों में से लगभग 100 छात्र परीक्षाओं में गैर-हाजिर पाए गए, जिस पर जांच में पाया गया कि सभी स्कूलों से तो शत-प्रतिशत छात्र परीक्षा देने के लिए आए हैं, जिस पर शिक्षा विभाग के कान खड़े होने स्वाभाविक थे। इस संंबंधी सभी ब्लाक शिक्षा अधिकारियों को आदेश दिए गए कि छात्रों की उपस्थिति यकीनी बनाई जाए, परंतु इसके बावजूद दूसरे दिन भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ, तब शिक्षा विभाग का यह स्कैंडल सामने आया। इस संबंधी अब जांच की जा रही है कि कौन-कौन से स्कूल में जाली छात्र भर्ती हुई है। छात्र के प्रवेश-फार्म के साथ उसका आधारकार्ड लगा है या नहीं?

क्या कहते हैं इस संबंधी शिक्षा अधिकारी
यदि इस संबंधी शिक्षा अधिकारियों से बात की जाए तो उनका कहना है कि गत सालों में तो यह जाली छात्र भर्ती का क्रम बहुत अधिक था, तब तो एक-एक ब्लाक में 400 से 500 तक जाली तौर पर भर्ती छात्रों का पता चलता था, क्योंकि तब बच्चों के प्रवेश के समय उसका आधारकार्ड नहीं लगता था। तब भी अध्यापक अपना तबादला रोकने के लिए यह जाली छात्र प्रवेश भर्ती करते थे, परंतु अब जब से सरकारी तथा प्राईवेट स्कूलों में प्रवेश फार्म के साथ आधारकार्ड लगना जरूरी हुआ है तब से जाली प्रवेश का मामला रुक जाना चाहिए था, परंतु इसके बावजूद यह स्कैंडल हुआ है। इस मामले की उच्चस्तरीय जांच करवाकर दोषी अध्यापकों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाएगी। 

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