चुनावी बिसात पर सियासी मोहरे फिट, मुद्दों की चलेगी चाल

Edited By Updated: 22 Jan, 2017 12:57 AM

electoral political pawns on the chessboard fit

पंजाब में विधानसभा चुनाव के लिए बिछी बिसात में मोहरे फिट हो चुके हैं। नामांकन पत्र दा....

जालंधर(इलैक्शन डैस्क): पंजाब में विधानसभा चुनाव के लिए बिछी बिसात में मोहरे फिट हो चुके हैं। नामांकन पत्र दाखिल करने और नाम वापस लेने की प्रक्रिया भी समाप्त हो चुकी है। चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) ने सत्ताधारी अकाली-भाजपा गठबंधन के बड़े चेहरों को घेरने के लिए चक्रव्यूह रच दिया है। कांग्रेस की तरफ  से कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने खुद मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ  लंबी में ताल ठोकी है तो पार्टी के लुधियाना से सांसद रवनीत बिट्टू उप-मुख्यमंत्री सुखबीर बादल को जलालाबाद में चुनौती देंगे। 


मजीठा हलके में ‘आप’ ने हिम्मत सिंह शेरगिल को मैदान में उतारा है तो नवजोत सिंह सिद्धू अमृतसर ईस्ट से भाग्य आजमाएंगे। पंजाब केसरी ने उन सीटों की लिस्ट तैयार की है जिन पर कांग्रेस, भाजपा-अकाली दल और ‘आप’ के बड़े चेहरे मैदान में हैं यानी इन सीटों पर हो रही है ‘बिग फाइट’। हमारे रिपोर्ट्र्स की टीम ने यह जानने की कोशिश की है कि इन  सीटों पर कहां कौन किसे चुनौती दे रहा है और इन सीटों पर मुद्दे क्या हैं। 


इन मुद्दों पर मांगे जाएंगे वोट
पंजाब विधानसभा चुनावों के लिए 4 फरवरी को होने वाले मतदान के लिए अब करीब पंद्रह दिन नशा, ला एंड आर्डर, इंडस्ट्री को रियायतें, बिजली, बेरोजगारी, एस.वाई.एल. किसानी और इंफ्रास्ट्रक्चर के अलावा विधानसभा सीटवाइज स्थानीय मुद्दों को लेकर उम्मीदवार जनता के बीच वोट मांगने जाएंगे। जनता को कई तरह के सब्जबाग भी दिखाए जाएंगे।  


दलित बहुल दोआबा में दोहरी चुनौती
कांग्रेस के गढ़ समझे जाते दोआबा में 20 वर्षों से अकाली-भाजपा गठबंधन सेंध लगाता रहा है। 2002 का चुनाव छोड़ दिया जाए तो 3 चुनावों में दोआबा में अकाली-भाजपा गठजोड़ का बोलबाला रहा है। पंजाब में दलितों के गढ़ दोआबा में अस्सी के दशक में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने काफी प्रभाव दिखाया था लेकिन यह प्रभाव काफी कम समय के लिए रहा। दोआबा एक बार फिर कांग्रेस के पाले में जाता रहा है। 

 

1997 के चुनाव में दोआबा की कुल 26 सीटों में से 19 सीटों पर अकाली-भाजपा गठबंधन ने जीत हासिल की थी और कांग्रेस को महज 5 सीटें हासिल हुई थीं, जबकि 1-1 सीट पर आजाद और बसपा विजयी रही थी। वर्ष 2002 आते-आते कांग्रेस ने अपने इस गढ़ पर दोबारा कब्जा कर लिया और दोआबा की 16 सीटें जीत कर सत्ता हासिल की। वहीं अकाली-भाजपा गठजोड़ को 10 सीटें हासिल हुईं। 2007 में अकाली-भाजपा गठजोड़ का दोआबा पर दोबारा कब्जा हो गया। 26 में से 21 सीटें जीत लीं। 2012 के चुनाव में भी दोआबा में अकाली-भाजपा गठजोड़ का दबदबा रहा।     


मालवा में कांग्रेस, अकाली-भाजपा के लिए चुनौती बनी ‘आप’
पंजाब विधानसभा पर सरदारी करने का रास्ता मालवा से होकर गुजरता है। इस बात को कांग्रेस के साथ-साथ अकाली-भाजपा गठजोड़ और आप भी भली-भांति समझती हैं। डेढ़ दशक पहले राज्य की सत्ता पर काबिज हुई कैप्टन सरकार को वर्ष 2002 के चुनाव में हासिल हुई कुल 62 सीटों में से 31 मालवा (29 कांग्रेस व 2 सी.पी.आई.) से ही मिली थीं। वर्ष 2007 के चुनाव में जब कांग्रेस दोआबा और माझा से पूरी तरह से साफ हो गई थी तो उस समय मालवा ने ही कांग्रेस की लाज बचाई थी। कांग्रेस को उस समय कुल 44 सीटें हासिल हुई थीं, जिनमें से 37 मालवा से थीं। 


अकाली-भाजपा गठजोड़ के लिए भी मालवा का रण उतना ही अहम है क्योंकि 2007 में राज्य की सत्ता में आए गठजोड़ को मालवा की 65 सीटों में से 24 सीटें हासिल हुई थीं, जबकि 2012 में मालवा में अकाली-भाजपा की जीत का आंकड़ा 36 था। आप ने हालांकि पंजाब में कोई विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा है लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में उसको 4 सीटें मालवा से ही मिली थीं और पार्टी ने मालवा की 31 विधानसभा सीटों पर बढ़त बना ली थी। मालवा में जमीनी स्तर पर आधारभूत ढांचे का विकास, रोजगार और किसानों की बदहाली अहम मुद्दे हैं। यहां दोनों पाॢटयों को आम आदमी पार्टी से कड़ी चुनौती मिल रही है।

 

माझा में बागी बिगाड़ सकते हैं खेल!
पाकिस्तान की सीमा के साथ सटा पंजाब का माझा इलाका पारम्परिक रूप से अकाली दल का गढ़ रहा है। गत 4 चुनाव में से 3 बार अकाली दल ने इस इलाके में बढ़त बनाई है। वर्ष 1997 के चुनाव में अकाली-भाजपा गठजोड़ ने यहां से 25 सीटें जीती थीं, जबकि 2 सीटों पर आजाद उम्मीदवार विजयी रहे थे। कांग्रेस का इस दौरान माझा में खाता भी नहीं खुला था। हालांकि 2002 चुनाव में कांग्रेस माझा में 17 सीटें जीतने में सफल रही और अकाली-भाजपा गठजोड़ को इस चुनाव में यहां से मात्र 7 सीटें मिलीं और 3 सीटों पर आजाद उम्मीदवार विजयी रहे।  


वर्ष 2007 के चुनाव में कांग्रेस माझा में 3 सीटों पर सिमट गई और अकाली-भाजपा गठजोड़ को यहां से कुल 24 सीटें हासिल हुईं। गत चुनाव में भी कांग्रेस को यहां से 9 सीटें ही मिलीं, जबकि अकाली-भाजपा गठबंधन को 16 सीटें मिलीं। सीमा के साथ सटा होने के कारण यहां बॉर्डर के साथ लगती जमीन के साथ-साथ पाक से होने वाली ड्रग तस्करी बड़े मुद्दे हैं। आम आदमी पार्टी (आप) हालांकि माझा में ताल ठोक रही है लेकिन पार्टी का प्रदर्शन 2014 में माझा में अच्छा नहीं था। इसके अलावा ‘आप’ से टूटे सुच्चा सिंह छोटेपुर का भी इस इलाके में प्रभाव है। 
 

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