नई वार्डबंदी के चलते राजनीतिक दलों को उम्मीदवारों की खलने लगी कमी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 30 Oct, 2017 12:08 PM

due to new wardings  political parties are facing shortage of candidates

पंजाब में होने वाले निगम चुनावों को लेकर नई वार्ड बंदी के चलते भाजपा-अकाली गठबंधन, कांग्रेस या फिर आप सहित कोई भी अन्य राजनीतिक दल हो, सभी को कहीं न कहीं उम्मीदवारों की कमी खलने लगी है।

अमृतसर(महेन्द्र): पंजाब में होने वाले निगम चुनावों को लेकर नई वार्ड बंदी के चलते भाजपा-अकाली गठबंधन, कांग्रेस या फिर आप सहित कोई भी अन्य राजनीतिक दल हो, सभी को कहीं न कहीं उम्मीदवारों की कमी खलने लगी है। 

नई वार्ड बंदी से पहले जहां अलग-अलग राजनीतिक दलों से संबंधित बड़े-बड़े सशक्त दावेदार महत्वपूर्ण दिन एवं त्यौहारों के मौके पर लोगों को शुभकामनाएं देने के बहाने 
अपने-अपने इलाकों में भारी संख्या में पोस्टर लगाकर अपनी सशक्त दावेदारी का प्रदर्शन करते रहे थे, वहीं उनकी वार्ड महिलाओं या फिर एस.सी. कोटे के तहत आरक्षित हो जाने पर वे आज मायूस दिखाई दे रहे हैं। 

कांग्रेस की तुलना में भाजपा और आप को ज्यादा हो रही परेशानी
यह समय की करवट है कि 10 वर्ष तक सत्ता में रहे भाजपा-अकाली गठबंधन के शासनकाल में 2 बार हुए निगम चुनावों में जिस तरह टिकट की दौड़ में पार्टी कार्यकत्र्ताओं में भी उत्साह दिखाई देता था, सत्ता हाथ से निकल जाने के पश्चात गठबंधन से जुड़े पार्टी कार्यकर्ताओं में इस बार उतनी उत्सुकता दिखाई नहीं दे रही है। यही हाल आम आदमी पार्टी का भी है क्योंकि हाल ही में हुए विधान सभा चुनावों से पहले पंजाब में आप पार्टी मजबूत दिखाई दे रही थी, टिकट हासिल करने के लिए उतनी उत्सुकता इस पार्टी में भी नहीं दिखाई दे रही है जबकि 10 वर्षों के पश्चात सत्ता में दोबारा पहुंची कांग्रेस पार्टी में कार्यकर्ताओं में पिछले 10 वर्षों की तुलना में इस बार कुछ ज्यादा ही उत्साह दिखाई दे रहा है। कांग्रेस पार्टी में टिकट हासिल करने के लिए जिस तरह से अभी से दौड़ लगने लगी है, उसकी तुलना में भाजपा गठबंधन और आप दोनों को निगम चुनावों के लिए प्रत्याशी तलाश करने पड़ रहे हैं। पिछली बार हुए निगम चुनावों में सशक्त दावेदारी करने वाले दावेदार इस बार चुप्पी धारण करना ही उचित समझ रहे हैं। 

खुदा जब हुस्न देता है तो नजाकत आ ही जाती है
यह समय की करवट ही है कि कोई राजनीतिक दल सत्ता में होता है, तो निगम चुनाव हो या जिला परिषद या फिर पंचायती चुनाव, सत्तारूढ़ राजनीतिक दल से जुड़े पार्टी कार्यकत्र्ताओं में चुनावी टिकट हासिल करने के लिए भाग-दौड़ शुरू हो जाती है, इसके विपरीत हाथ से सत्ता निकल जाने पर इन्हीं दलों के कार्यकर्ता टिकट हासिल करने की दौड़ में शामिल होने की बजाए अपने पांव पीछे खींचना शुरू कर देते हैं। ऐसी स्थिति एक शायर का यह शेर कि ‘खुदा जब हुस्न देता है, नजाकत आ ही जाती है’, को चरितार्थ करता है। सत्ता हाथ में हो, तो बड़े-बड़े दावेदार बड़े-बड़े दावे करते हैं, लेकिन सत्ता से बाहर होते ही उनके चेहरे मुरझाने लगते हैं। 

85 में से 43 सीटें महिलाओं को मिलने से कई दावेदार अप्रसन्न
महिलाओं के सशक्तिकरण तथा उन्हें पुरुषों के समान अधिकार देने की बात सभी राजनीतिक दलों के नेता अपने भाषणों में करते हैं, लेकिन कई बार यही राजनीतिक दल एवं उनसे संबंधित नेता लोग खुद ही इसका शिकार हो जाते हैं। होने जा रहे अमृतसर निगम चुनावों में हालांकि पार्षदों की संख्या 65 से बढ़ा कर 85 कर दी गई हैं, लेकिन उसमें महिलाओं के 50 फीसदी कोटे के तहत महिलाओं को 43 सीटें दी जा रही हैं जिसे देख विभिन्न राजनीतिक दलों से संंबंधित पार्टी कार्यकत्र्ता अंदरखाते नाखुश दिखाई दे रहे हैं लेकिन वे इसका खुल कर विरोध करने की हिम्मत जुटाने की बजाए अपनी दावेदारी से कदम पीछे खींचते हुए चुप्पी धारण करना ही उचित मान रहे हैं। 

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