Edited By Updated: 17 Feb, 2017 11:47 AM
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव तो एक ट्रेलर हैं असल में आम आदमी पार्टी का निशाना एस.जी.पी.सी. है। 11 मार्च को चुनाव परिणाम आने के बाद एस.जी.पी.सी. में भी बड़ा बदलाव हो सकता है।
जालंधरः दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव तो एक ट्रेलर हैं असल में आम आदमी पार्टी का निशाना एस.जी.पी.सी. है। 11 मार्च को चुनाव परिणाम आने के बाद एस.जी.पी.सी. में भी बड़ा बदलाव हो सकता है।
वर्तमान में एस.जी.पी.सी. पर अकाली दल (ब) का कब्जा है। 185 सदस्यों में 150 से ज्यादा अकाली दल से संबंधित हैं लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि 11 मार्च को पंजाब विधानसभा के चुनाव परिणाम आने के बाद एस.जी.पी.सी. के कई सदस्य पाला बदल कर तख्ता पलट सकते हैं। इस बात की संभावना उस समय बढ़ और जाएगी यदि आम आदमी पार्टी (आप) पंजाब में सत्ता में आ जाती है। ‘आप’ के विधायक अवतार सिंह कालका इस बार अपना पंथक सेवा दल बना कर दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि ‘आप’ ने यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर इन चुनावों में भाग नहीं लेगी लेकिन ऐसा स्वाभाविक है कि ‘आप’ को समर्थन देने वाले सिख पंथक सेवा दल का ही साथ देंगे।
इन चुनावों के मायने
दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव परिणाम का सीधा असर पंजाब की सिख सियासत पर पड़ सकता है। अगर अकाली दल चुनाव हार जाता है तो इसका प्रभाव एस.जी.पी.सी. पर भी पड़ेगा। कई और सदस्य पाला बदल सकते हैं। अकाली दल की परेशानी इस लिए भी बढऩे वाली है क्योंकि अगर वह विधानसभा का चुनाव हार जाता है तो सत्ता जाते ही कांग्रेस और आप दोनों की यह कोशिश होगी कि अकाली दल को एस.जी.पी.सी. से निकाला जाए। दिल्ली चुनाव के परिणाम 1 मार्च को आने हैं। 10 दिनों में अकाली दल के विरोधी उसके खिलाफ रणनीति बन सकते हैं।
‘आप’ के हक में बातें और दिक्कत
इस समय विदेशों में रह रहे एनआरआईज ‘आप’ का समर्थन कर रहे हैं। एसजीपीसी के कई सदस्य इनके प्रभाव में है। अकाली दल के हाथ से पंजाब की सत्ता जाने की सूरत में वे पाला बदल सकते हैं। दूसरी तरफ दिल्ली में पहली बार 4 सिख आम आदमी पार्टी की टिकट पर अवतार सिंह कालका, जरनैल सिंह, जगदीश सिंह और जरनैल सिंह विधायक के तौर पर जीते थे। मगर ‘आप’ की दिक्कत यह है कि इनमें कोई भी विधायक पंथक चेहरा नहीं है। वहीं सिख विधायक जरनैल सिंह को ‘आप’ ने पंजाब विधानसभा चुनावों के दौरान लम्बी हलके से मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ चुनाव में उतार दिया है। जरनैल सिंह केन्द्रीय गृह मंत्री पर जूता फैंके जाने के बाद चर्चा में आए थे और दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान पंथक नेता के तौर पर उभरे थे और दिल्ली के सिखों ने भी उन्हें जितवाया था। विधायक अवतार सिंह कालका 2002 से सिख सियासत से जुड़े हैं। इसके अतिरिक्त कोई पंथक नेता नहीं है।
अकाली दल की रणनीति और भाजपा!
अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल यह भली-भांति जानते हैं कि दिल्ली चुनाव की डगर इस बार कठिन है। इसलिए उन्होंने सोची-समझी रणनीति के तहत खुद को इन चुनावों से दूर रखा है। बादल परिवार को छोड़ कर दूसरे नेता दिल्ली में प्रचार की कमान संभाल रहे हैं, जिससे हार की स्थिति में इसकी जिम्मेदारी बादल परिवार पर न पड़े। दूसरी तरफ निकट भविष्य में दिल्ली नगर निगम के चुनाव भी नजदीक हैं। भाजपा को यह चुनाव जीतने के लिए सिख वोटर्स का समर्थन चाहिए। यह भी हो सकता है कि दिल्ली भाजपा ने सुखबीर बादल को डी.एस.जी.एम.सी. इलैक्शन में जीत दिलाने का भरोसा देकर उन्हें दिल्ली नहीं आने का कहा हो। यदि सुखबीर बादल की अनुपस्थिति में अकाली दल यह चुनाव जीत जाता है तो भाजपा का अकाली दल पर एक अहसान भी हो सकता है जिसका निकट भविष्य में भाजपा को भी फायदा मिल सकता है। वहीं भाजपा नेता कुलवंत सिंह बाठ डी.एस.जी.एम.सी. भी लड़ रहे हैं।