DSGMC चुनाव: विरोधी वोट बंट जाने से बदली तस्वीर

Edited By Updated: 02 Mar, 2017 02:05 AM

dsgmc election  change photo of the anti vote split

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव के नतीजे आ चुके हैं.....

नई दिल्ली/चंडीगढ़: दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। अकाली दल बादल को इस चुनाव में 35 सीटें हासिल हुई हैं, जबकि अकाली दल दिल्ली को इस चुनाव में 7 सीटों पर सब्र करना पड़ा। वहीं पहली बार इस चुनाव में चार निर्दलीय उम्मीदवार यह चुनाव जीते हैं। वहीं आम आदमी पार्टी समर्थित पंथक सेवा दल इस चुनाव में खाता नहीं खोल सका। अकाली दल बादल को डी.एस.जी.एम.सी. चुनाव में लगातार दूसरी बार जीत हासिल हुई है, जबकि इससे पहले 1995 से 2013 तक लगातार सरना गुट डी.एस.जी.एम.सी. पर काबिज रहा।

सिख सियासतदान पंजाब विधान सभा चुनावों में डेरा सिरसा से समर्थन लेने, पंजाब में बेअदबी की घटनाओं से सहित अन्य मुद्दों के छाए रहने के बावजूद अकाली दल बादल की इतनी बड़ी जीत के पीछे कारण विरोधी वोट का बंट जाना मान रहे हैं। सिख सियासतदानों के अनुसार यह भी पहली बार हुआ कि डी.एस.जी.एम.सी. के इस चुनाव में पहली बार पांच दलों ने चुनाव लड़ा, वहीं इस चुनाव मैदान में 184 निर्दलीय प्रत्याशी उतरे थे। 

जी.के. और सिरसा दिल्ली के सिखों के बड़े नेताओं के रूप में उभरे
डी.एस.जी.एम.सी. के 26 फरवरी को हुए चुनाव के बुधवार आए परिणाम सिख सियासत में काफी अहमियत रखते हैं। ये परिणाम उस समय आए हैं जब पंजाब विधानसभा के चुनाव परिणाम कुछ दिनों के बाद आने हैं। विधानसभा चुनाव में सत्ता विरोधी लहर होने तथा अकाली-भाजपा गठबंधन की पराजय की लग रही अटकलों के बीच डी.एस.जी.एम.सी. चुनाव के परिणाम शिरोमणि अकाली दल (ब) के लिए उत्साह पैदा करने वाले हैं।

उल्लेखनीय है कि इस बार बादलों समेत पार्टी के सभी बड़े नेता डी.एस.जी.एम.सी. चुनाव प्रचार से दूर रहे तथा डेरा सिरसा का पंजाब के चुनाव में शिअद-बादल द्वारा समर्थन लेने और बेअदबी की घटनाओं के मुद्दे भी विरोधियों द्वारा प्रमुखता से उठाए जा रहे थे। इसके बावजूद अकाली दल (ब) को बड़ी जीत प्राप्त हुई। मौजूदा कमेटी के अध्यक्ष मंजीत सिंह जी.के. व महासचिव मनजिंद्र सिंह सिरसा दूसरी बार इन चुनावों में जीत प्राप्त करके दिल्ली के सिखों के बड़े नेता के रूप में उभरे हैं।

जहां जी.के. फिर वोटों के बड़े अंतर से सफल हुए हैं, वहीं मनजिंद्र सिंह सिरसा भी परमजीत सिंह सरना को भारी मतों के अंतर से हराकर चुनाव जीते हैं। उल्लेखनीय है कि सिरसा पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल के राजनीतिक सलाहकार भी हैं और उन्होंने पंजाब विधानसभा चुनाव में भी पार्टी के अभियान में अहम भूमिका निभाई थी। 

ट्रैक्टर ने जोता सरना का ‘चुनावी खेत’
डी.एस.जी.एम.सी. चुनाव में अकाली दल (दिल्ली) की करारी हार हुई है। सरना ग्रुप की कड़ी टक्कर के बावजूद ज्यादातर प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा। यहां तक कि खुद परमजीत सिंह सरना अपनी सीट नहीं बचा सके। सरना ग्रुप की हार के पीछे उनके पुराने साथी करतार सिंह कोछड़ का अहम रोल माना जा रहा है। कोछड़ पंथक सेवा दल के महासचिव हैं। साथ ही पहली बार गुरुद्वारा चुनाव में मैदान में उतरे थे। पंथक सेवा दल ने  46 में से 38 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे और इन सभी सीटों पर सरना ग्रुप का खेल बिगाड़ दिया। ऐसा भी कह सकते हैं कि पंथक सेवा दल के चुनाव चिन्ह ट्रैक्टर ने सरना का ‘चुनावी खेत’ पूरी तरह से जोत दिया। बता दें कि पंथक सेवा दल ने वोटिंग के कुछ दिन बाकायदा प्रैस कॉन्फ्रैंस कर 4 वर्ष पहले के गुरुद्वारा कमेटी में सरना कार्यकाल का काला चिट्ठा खोला था। 

184 निर्दलियों ने निभाई ‘वोटकटवा’ की भूमिका 
इन चुनावों में उतरे 184 आजाद उम्मीदवारों ने शिअद-ब की जीत का रास्ता आसान किया है। जीत तो 2 दबंग निर्दलीय प्रत्याशियों त्रिनगर से गुरमीत सिंह शंटी और जंगपुरा सीट से पूर्व विधायक तरविंद्र सिंह मारवाहा की हुई है लेकिन बाकियों ने जमकर वोट काटे हैं। निर्दलीय उम्मीदवारों ने अकाली दल और कमेटी के सत्ताधारी बोर्ड के विरोधी वोट को बांट दिया। 

‘आप’ को बड़ा झटका, नहीं खुला पंथक सेवा दल का खाता 
इन चुनावों में दिल्ली की सत्ताधारी ‘आप’ को बड़ा झटका लगा है। उसकी अगुवाई वाले धार्मिक संगठन पंथक सेवा दल की बुरी तरह हार हुई है। पार्टी के सर्वेसर्वा एवं महासचिव करतार सिंह कोछड़ भी अपनी सीट नहीं बचा सके । गुरुद्वारा चुनाव की कमान संभाल रहे ‘आप’ के कालकाजी से विधायक अवतार सिंह कालका खुद अपनी परंपरागत सीट कालकाजी भी नहीं बचा सके। 

संगत नेे अवसर नहीं दिया: कालका
पंजाब केसरी से खास बातचीत में अवतार सिंह कालका ने कहा कि हमने पंजाब में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी पर आवाज उठाई थी। इसके साथ ही कमेटी में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ  आवाज बुलंद की थी लेकिन संगत ने उन्हें अवसर नहीं दिया परंतु वह हार नहीं मानेंगे और सिखी को बचाने तथा गुरु की गोलक बचाने के लिए अभियान जारी रखेंगे। कालका ने कहा कि पंथक सेवा दल गुरु ग्रंथ साहिब का निरादर होने की वजह से चुनाव में उतरे थे। उन्होंने कहा कि उन्होंने दिल्ली के सिखों से जुड़े मसलों को लेकर घोषणा पत्र जारी किए थे। चुनाव में भले ही वह नहीं जीते लेकिन पंथक मामलों पर हर समय खड़े रहेंगे। 

सरना गु्रप से ही था जी.के. का मुकाबला 
इस बार डी.एस.जी.एम.सी. चुनाव में जी.के. का मुख्य मुकाबला सरना गु्रप से ही था। बेशक आम आदमी पार्टी (आप) से समर्थन प्राप्त पंथक सेवा दल ने भी तीसरे विकल्प के रूप में चुनाव लड़ा परंतु बुरी तरह विफल रहा। इसके अलावा श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार भाई रणजीत सिंह ने भी अकाल सहाय वैल्फेयर सोसायटी बनाकर 46 में से 20 सीटों पर चुनाव लड़ा था परंतु उन्हें भी कोई सफलता नहीं मिली। सरना को अंदरूनी तौर पर कांग्रेस का समर्थन भी था परंतु वह भी जी.के. व सिरसा की रणनीति के आगे बुरी तरह फेल हुए हैं। 

मुख्य मुद्दों को नजरअंदाज किया सिख समुदाय ने 
पंजाब विधानसभा चुनाव में अकाली दल द्वारा डेरा सिरसा से समर्थन लेने तथा राज्य में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं के मुद्दे भी मुख्य तौर पर उभरे थे और डी.एस.जी.एम.सी. चुनाव में सरना व अन्य विपक्षी दलों ने इन मुद्दों को मुख्य तौर पर अपनाया, परंतु दिल्ली के सिख समुदाय ने इसको भी नजरअंदाज कर दिया। इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि पंजाब विधानसभा चुनाव में अभियान के दौरान अकाली दल के समर्थन में पहुंचे जी.के. ने उस समय भी डेरा समर्थन को गलत बताकर अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया था। 

पोस्टरों पर भी नहीं लगी बादलों की तस्वीरें  
डी.एस.जी.एम.सी. चुनाव में जी.के. ग्रुप द्वारा भी अपने अभियान में पोस्टरों आदि पर बादलों की तस्वीरें तक भी नहीं लगाई गईं। इसी रणनीति का जी.के. गु्रप को फायदा मिला। जी.के. व सिरसा  सिख विरोधी दंगों तथा केजरीवाल सरकार की सिख व पंजाब विरोधी नीतियों को लेकर दिल्ली में सिख समुदाय की ओर से होने वाले प्रदर्शनों में सक्रियता से आगे होकर भाग लेते रहे हैं। वह परमजीत सरना के नेतृत्व में उनके कार्यकाल के दौरान डी.एस.जी.एम.सी. में भ्रष्टाचार के मामलों को भी सिख समुदाय में मजबूती से उठाने में सफल रहे जिसका उनको लाभ मिला। 

सुखबीर की रणनीति को मिलेगा बल 
डी.एस.जी.एम.सी. चुनाव में जीत से शिअद-बादल को पंजाब से बाहर पार्टी को आगे बढ़ाने की सुखबीर बादल की रणनीति को भी बल मिलेगा। दिल्ली में हार की हालत में एस.जी.पी.सी. पर भी इसके प्रभाव हो सकते थे परंतु अब एस.जी.पी.सी. में भी अकाली दल का प्रभाव बरकरार रहेगा। ‘आप’ ने तो खुलेआम घोषणा कर रखी थी कि पंजाब जीतने के बाद दिल्ली होते हुए अगला निशाना एस.जी.पी.सी. होगा। पंजाब के बादल विरोधी सिख संगठनों व दलों के नेता भी पंजाब के मुद्दों को लेकर दिल्ली के अभियान में उतरे हुए थे परंतु वे भी वहां के सिख समुदाय को खींच नहीं पाए।

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