Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Oct, 2017 04:18 PM
भारत व चीन के मध्य सीमा रेखा को लेकर चल रही खींचतान व भारतीयों द्वारा चीनी वस्तुओं का बायकाट कर स्वदेशी सामान प्रयोग किए जाने की पैरवी इस बार दीपावली पर मिट्टी के दीयों का कारोबार करने वाले कारीगरों में व्यवसाय को लेकर उम्मीद की किरण जगी है। अगर...
सुल्तानपुर लोधी (धीर): भारत व चीन के मध्य सीमा रेखा को लेकर चल रही खींचतान व भारतीयों द्वारा चीनी वस्तुओं का बायकाट कर स्वदेशी सामान प्रयोग किए जाने की पैरवी इस बार दीपावली पर मिट्टी के दीयों का कारोबार करने वाले कारीगरों में व्यवसाय को लेकर उम्मीद की किरण जगी है। अगर भारतीयों द्वारा चीनी वस्तुओं प्रति ऐसे ही मनमुटाव रहा तो इस बार लोगों के घरों में मिट्टी के दीये रोशनी बिखेरेंगे।
मिट्टी के दीये व बर्तन बनाने वाले सोमदत्त ने बताया कि गत वर्षों से दीपावली पर मिट्टी से बने सामान की बिक्री काफी कम हो गई थी। इसका बड़ा कारण चीन से आ रही रंग-बिरंगी बिजली की लडिय़ां थीं। उन्होंने कहा कि अब जब चीन व भारत के मध्य विवाद चल रहा है तो लोगों द्वारा विदेशी की बजाय स्वदेशी सामान की खरीद-फरोख्त करने के लिए कहा जा रहा है तो ऐसे समय चाहे बाजारों में चीनी लडिय़ां तो इस बार भी काफी मात्रा में आई हैं, लेकिन लोगों द्वारा इनकी खरीद काफी कम किए जाने की उम्मीद है। वहीं मिट्टी के दीयों की बिक्री अच्छी रहने की उम्मीद के बीच प्रजापत जाति के लोगों ने इनकी तैयार करने के लिए दिन-रात एक कर रखा है।
असल दीपावली तो होती है मिट्टी के दीयों की’
रविन्द्र व कलावती ने बताया कि इस बार अच्छे कारोबार की उम्मीद में 20 सितम्बर से अकेले दीये बनाने का काम आरम्भ हुआ है। उन्होंने कहा कि ‘असल दीपावली तो मिट्टी के दीयों की ही होती है’, जो कुछ समय के लिए रोशनियां बिखेरने का काम करके अपने आप ही बुझ जाते हैं, लेकिन अब नए जमाने के नए ढंगों कारण कई दिन बिजली की लडिय़ां जलती हैं। वातावरण प्रेमी संत सीचेवाल ने कहा कि इस बार हमें दीपावली पर स्वदेशी सामान का प्रयोग कर देश का सरमाया देश में ही रखना चाहिए।
मिट्टी के बर्तन व दीये बनाने के लिए करनी पड़ती है मेहनत
पवित्र नगरी सुल्तानपुर लोधी में करीब 40 वर्षों से भी अधिक मिट्टी के बर्तन व दीये आदि बनाने वाले प्रजापत जाति के राकेश का कहना है कि अब जब प्रत्येक वस्तु महंगी हो गई है व मिट्टी के बर्तन व दीये बनाने के लिए भी हमें बहुत मेहनत करनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि बाजारों में चीनी सामान की बिक्री ने हमारी रोजी रोटी पर काफी प्रभाव डाला है, जिस कारण हमारी औलाद ने इस काम से तौबा कर नौकरियां करनी शुरू कर दी हैं। उन्होंने कहा कि अगर सरकार प्रजापत जाति के लोगों को सुविधा दे तो ही मिट्टी से बनने वाले सामान का व्यवसाय बच सकता है।