Edited By Updated: 26 Feb, 2017 12:38 PM
दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमैंट कमेटी (डी.एस.जी.एम.सी.) के चुनाव में इस बार पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, उप-मुख्यमंत्री सुखबीर बादल व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल की चुनाव प्रचार में गैरहाजिरी की भी राजनीतिक हलकों में काफी चर्चा है।...
जालंधरः दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमैंट कमेटी (डी.एस.जी.एम.सी.) के चुनाव में इस बार पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, उप-मुख्यमंत्री सुखबीर बादल व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल की चुनाव प्रचार में गैरहाजिरी की भी राजनीतिक हलकों में काफी चर्चा है। बादलों की डी.एस.जी.एम.सी. चुनाव प्रचार से दूरी के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। हाल ही में हुए पंजाब विधानसभा चुनाव का भी इस पर असर दिखाई दे रहा है। बेशक सरबत खालसा से जुड़े दलों ने पंजाब चुनाव में तो सक्रियता से हिस्सा नहीं लिया परंतु दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव में इन दलों के प्रमुख नेता अकाली दल बादल के विरोध में उतरे हुए थे।
दिल्ली के 9 प्रमुख ऐतिहासिक गुरुद्वारों के अलावा 18 स्कूलों व 6 कालेजों का प्रबंधन चलाने वाली डी.एस.जी.एम.सी. का बजट 100 करोड़ रुपए है जोकि दिल्ली में 8 लाख से अधिक सिखों का प्रतिनिधित्व करती है। इनमें से 3,80,091 सिख वोटर हैं जो अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। इस बार भी डी.एस.जी.एम.सी. चुनाव में शिरोमणि अकाली दल (शिअद- दिल्ली) के नेतृत्व वाले मनजीत सिंह जी.के. व अकाली दल दिल्ली परमजीत सिंह सरना के नेतृत्व वाले दलों के बीच मुकाबला है। बेशक आम आदमी पार्टी (आप) संबंधित पंथक सेवा दल भी तीसरे विकल्प के दावेदार के रूप में मैदान में है। पंजाब से दिल्ली पहुंचे बादल दल विरोधी सभी प्रमुख सिख दल जी.के. के विरोध में सक्रिय रहे हैं।
बड़े नेता भी दूर ही रहे चुनाव प्रचार से
डी.एस.जी.एम.सी. चुनाव में बादलों की पूरी तरह गैरहाजिरी इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि 2013 में हुए चुनाव में यह दोनों दिग्गज नेता अपने पूरे लाव-लश्कर व मंत्रिमंडल समेत चुनाव प्रचार में शामिल हुए थे और लंबे समय से दिल्ली कमेटी पर काबिज सरना दल से भारी अंतर से जीत प्राप्त कर उसे बाहर किया था। परंतु इस बार अकाली दल की कोर कमेटी की पंजाब विधानसभा चुनाव के मतदान के समाप्त होने के बाद हुई आपात्कालीन बैठक में दिल्ली चुनाव में शामिल होने के लिए गए फैसले के बावजूद बादलों समेत सभी बड़े नेता चुनाव प्रचार से दूर ही रहे। मुख्यमंत्री बादल पिछले दिनों विदेश से वापसी पर सीधे ही चंडीगढ़ पहुंच गए और दिल्ली चुनाव प्रचार में वह एक दिन भी शामिल नहीं हुए। इसी तरह सुखबीर बादल भी बेशक पिछले दिनों विदेश से वापस दिल्ली लौट आए थे, परंतु वह भी चुनाव प्रचार में शामिल नहीं हुए। सिर्फ पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं के साथ एक बंद कमरा बैठक करके चुनाव के संबंध में फीड बैक ली और पंजाब वापस लौट आए थे।
बादलों की गैर हाजिरी के कई मायने
राजनीतिक हलकों में बादलों की गैर हाजिरी के कई मायने निकाले जा रहे हैं जिनमें एक यह है कि पंजाब विधानसभा चुनाव में डेरा सिरसा का समर्थन लेने के कारण पैदा विवाद के चलते वह दिल्ली के सिखों की नाराजगी का सामना नहीं करना चाहते थे। चुनाव प्रचार में जाने से उलटा असर पड़ सकता था क्योंकि विपक्षी सरना दल ने डेरा सिरसा के समर्थन को मुख्य मुद्दा बना रखा है। पंजाब में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं के पंजाब विधानसभा चुनाव में दिखे असर के कारण भी बादल दिल्ली के धार्मिक चुनाव से दूर रहे।
एक्सपर्ट व्यू
बादलों का डी.एस. जी.एम.सी. चुनाव से दूर रहने का स्पष्ट संकेत है कि उन्होंने महसूस कर लिया था कि पंजाब में उनकी हार हो रही है।इसमें डेरा सिरसा और बेअदबी की घटनाओं आदि मुद्दों ने मुख्य भूमिका निभाई है। धार्मिक कोताहियों के कारण जो पंजाब में उंगलियां बादलों की ओर उठ रही थीं तथा जिस तरह श्री अकाल तख्त साहिब के हुक्मनामे का खुलेआम उल्लंघन करके डेरा सिरसा से समर्थन लिया, इनके होने वाले प्रभावों के कारण ही बादलों ने दिल्ली के सिख समुदाय का सामना करने की हिम्मत नहीं दिखाई। इन्हीं मुद्दों के कारण बादलों के दिल्ली चुनाव प्रचार में शामिल होने से नुक्सान के डर से खुद ही दिल्ली के जी.के. ग्रुप से संबंधित कई अकाली नेताओं ने उन्हें प्रचार से दूर ही रहने की सलाह दी थी। दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव के परिणाम पर पंजाब में हुए विधानसभा चुनाव का प्रभाव भी स्पष्ट होगा। ------ डा. गुरदर्शन सिंह ढिल्लों, सिख विद्वान व पूर्व प्रोफैसर पंजाब विश्वविद्यालय।