Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Jul, 2017 02:31 PM
पंजाब सरकार कैबिनेट विस्तार से पहले मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) बनाने की राह तलाश रही है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट, हिमाचल प्रदेश व दिल्ली की हाईकोर्ट ने जिस प्रकार से सी.पी.एस. का पत्ता काटा है
चंडीगढ़ः पंजाब सरकार कैबिनेट विस्तार से पहले मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) बनाने की राह तलाश रही है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट, हिमाचल प्रदेश व दिल्ली की हाईकोर्ट ने जिस प्रकार से सी.पी.एस. का पत्ता काटा है उसे देखते हुए सरकार कोर्ट से पंगा भी नहीं लेना चाहती है। इसलिए सरकार एक ऐसा कानून बनाना चाहती है जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे, यानी सी.पी.एस. भी बन जाएं और कोर्ट में पेशी होने पर जवाब भी दिया जा सके।
पंजाब सरकार सी.पी.एस. को लेकर कानूनी पड़ताल कर रही है। विधानसभा के सदस्यों की संख्या के अनुपात में 15 फीसद से ज्यादा मंत्री नहीं हो सकते हैं और संविधान में सी.पी.एस. बनाने को लेकर कोई भी प्रावधान नहीं है। यही कारण है कि पूर्व की अकाली-भाजपा सरकार, हरियाणा की मनोहर लाल सरकार, दिल्ली की केजरीवाल सरकार और हिमाचल की कांग्रेस सरकार को सीपीएस मामले में हाईकोर्ट में मुंह की खानी पड़ी। मुख्यमंत्री कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि विधानसभा में कानून बना दिया जाए तो सीपीएस बनाने में कोई दिक्कत नहीं है। जिन राज्यों ने कानून नहीं बनाया वहां पर यह समस्या आई।
माना जा रहा है कि सीपीएस की राह नहीं खुलने की वजह से ही कांग्रेस मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं कर पा रही है। चूंकि पंजाब विधानसभा में कांग्रेस के 77 विधायक हैं। नियमों के मुताबिक मुख्यमंत्री समेत मंत्रिमंडल के 18 मंत्रियों और स्पीकर व डिप्टी स्पीकर को जोड़कर 20 विधायक ही एडजस्ट होते हैं।
कांग्रेस के पास 35 ऐसे विधायक हैं जो पहली बार चुनाव जीते हैं, लेकिन 22 विधायक दो से तीन बार जीत चुके हैं। करीब आठ विधायक ऐसे हैं जो तीन से चार बार जीत चुके हैं लेकिन क्षेत्रीय समीकरण के कारण उन्हें मंत्री नहीं बनाया जा सकता। मुख्यमंत्री के करीबी सूत्र बताते हैं कि अगर मजबूत रूप से कानूनी जामा पहनाकर सीपीएस बनाया जाए और बाद में मामला कोर्ट में भी जाए तो कम से कम सरकार का पक्ष मजबूत तो रहे। पूर्व सरकार द्वारा की गई गलतियों को तो न दोहराया जाए।