Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Dec, 2017 08:25 PM
कांग्रेस के प्रवक्ता गुरप्रताप सिंह मान ने कहा है कि प्रस्तावित फाइनांशियल रिजोल्यूशन एंड डिपोजिट इंश्योरेंस (वित्तीय समाधान एवं जमा बीमा विधेयक) (एफ.आर.डी.आई) बिल मध्यम वर्ग को बुरी तरह से प्रभावित करेगा। जहां नोटबंदी और बुरी तरह से योजनाबद्ध व...
चंडीगढ़: कांग्रेस के प्रवक्ता गुरप्रताप सिंह मान ने कहा है कि प्रस्तावित फाइनांशियल रिजोल्यूशन एंड डिपोजिट इंश्योरेंस (वित्तीय समाधान एवं जमा बीमा विधेयक) (एफ.आर.डी.आई) बिल मध्यम वर्ग को बुरी तरह से प्रभावित करेगा।
जहां नोटबंदी और बुरी तरह से योजनाबद्ध व लागू की गई जी.एस.टी ने किसानों व बिजनेसमैनों को प्रभावित किया है, वहीं पर मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित एफ.आर.डी.आई मध्यम वर्ग को सीधा झटका देगी, जो अपनी कमाई को फिकस्ड डिपोजिटों में रखता है। एफ.आर.डी.आई बिल कोप्रेटिव बैंकिंग व्यवस्था को भी नुक्सान पहुंचाएगा। इसका सीधा असर खेतीबाड़ी से जुड़ी ग्रामीण क्रेडिट व्यवस्था पर पड़ेगा।
मान ने प्रधानमंत्री को याद दिलाया कि भारत में अधिकतर जमा पूंजी छोटे घरों से आती है, जो कुछ ब्याज हासिल करने के लिए अपनी कमाई राशि को एफ.डी. में रखते हैं। लेकिन नए बिल से जमाकर्ताओं का बैंकिंग व्यवस्था से भरोसा उठ जाएगा। ऐसे में मध्य वर्ग कहां जाएगा? इस बिल को अमेरिकी व यूरोपियन प्रणाली से कॉपी किया जा रहा है, जो क्रेडिट आधारित अर्थव्यवस्थाएं हैं, जबकि भारत जमा आधारित अर्थव्यवस्था है।
इस बिल का सबसे गंभीर क्लॉज, इसका बेल-इन क्लॉज है, जो जमाकत्र्ताओं को अपनी जमा पूंजी एफ.डी में जमा करने से डराएगा। ऐसे में यह कानून सरकारों के लिए दबे बैंकों के लिए पैसों की उगाही में मदद करेगा। इस दौरान जमाकर्ताओं के पैसे को बैंकों को घाटे से बाहर निकालने में इस्तेमाल किया जाएगा। आसानी से समझा जाए, तो सरकार की बजाय जमाकर्ताओं के पैसे को कुप्रबंधन सहित अन्य कारणों के चलते घाटों का सामना कर रहे बैंक को बचाने में इस्तेमाल किया जाएगा। प्रस्तावित बिल की धारा 52 के मुताबिक बैंकों व बीमा कंपनियों के डूबने पर जमाकर्ता से अपनी बचतों पर दावा करने का अधिकार छिन जाएगा। ऐसे में आपका पैसा ज्यादा वक्त तक आपका नहीं रहेगा।
भाजपा नेतृत्व वाली सरकार का यह नया कारनामा ग्राहकों/जर्माकर्ताओं का भरोसा तोड़ देगा, खासकर उस वक्त जब एन.पी.ए या बुरे लोन सबसे बड़े रिकॉर्ड पर पहुंच चुके हैं। जहां सरकारी बैंक वित्तीय वर्ष 2017-18 की पहली दो तिमाहयिों 55356 करोड़ रुपए के कर्ज छोड़ चुके हैं, जो बीते साल के मुकाबले 54 प्रतिशत उच्च स्तर पर है। दो साल पहले जब साइस्रस में एक बैंक फेल हो गया था, जो बेल इन के प्रावधानों में जमाकर्ताओं की करीब 50 प्रतिशत जमा पूंजी खत्म हो गई थी, जिसे अब भारत में लगाया जा रहा है।
प्रस्तावित एफ.आर.डी.आई बिल कोप्रेटिव बैंकों को भी बहुत प्रभावित करेगा, जिन्हें खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर वर्ग की सहायता के लिए स्थापित किया गया है। इन बैंकों को फसली नुक्सान, सूखा जैसे मामलों में उधार देने के लिए स्थापित किया गया था। संभावित तौर पर ये बैंक वित्तीय स्तर पर अच्छा काम नहीं कर रहे हैं, लेकिन इनका काम करने का एक विशेष आधार है। इस बिल के बाद सभी कोप्रेटिव बैंक फाइनांशियल रिजोल्यूशन अथॉरिटी के अधीन आ जाएंगे। प्रस्तावित एफ.आर.ए किसी भी अफवाह या बोर्ड के राजनीतिक पक्ष से सत्ताधारी दल के हक में न होने पर, आसानी से ऐसे बैंकों को टेकओवर कर सकती है। इससे कोप्रेटिव बैंकिंग व्यवस्था ढह जाएगी, जिससे कृषि क्षेत्र पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। जबकि वर्तमान में ज्यादातर फसलीय ऋण कोपे्रटिव बैंकों द्वारा दिए जाते हैं।
एफ.आर.डी.आई बिल, 2017 को पहले इस साल अगस्त में मानसून सैशन के दौरान संसद में पेश किया गया था, और वर्तमान में इसकी ज्वाइंट पार्लीमेंटरी कमेटी द्वारा स्क्रूटनी की जा रही है और इसे दिसंबर, 2017 के आगामी सत्र में संसद में पेश किए जाने की संभावना है। नोटबंदी की ही तरह बेल-इन का प्रावधान समाज के धनी वर्ग पर असर नहीं डालेगा। लेकिन करोड़ों लोगों के मुकाबले कारपोरेट जगत के कर्ज के लाखों रुपए माफ करने के बाद बैंकों के दोबारा पूंजीकरण के नाम पर इससे गरीब वर्ग की जमा राशि बंद हो जाएगी, जो गरीब वर्ग बैंक से ऋण कम लेता है, लेकिन अपनी मेहनत से कमाई जमा पूंजी की ज्यादा बचत करता है।
मान ने आशंका जाहिर की है कि क्या यह मोदी सरकार की नोटबंदी के चलते अर्थव्यवस्था को हुए नुक्सान को कवर करने की एक अन्य कोशिश है। नोटबंदी ने आमतौर पर घरों में जमा की जाती पूंजी को बैंकिंग व्यवस्था में डाल दिया था, जिन्हें अब जमा पूंजी पर ब्याज देना होगा, जबकि उनके अच्छे लोन बहुत कम हैं या फिर डूब चुके हैं।