Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Jul, 2017 02:11 PM
प्रदेश के मुख्यमंत्री कै. अमरेंद्र सिंह की कार्यप्रणाली व उनके फैसलों से पार्टी विधायकों के बीच आक्रोश पनपने लगा है।
जालंधर (रविंदर शर्मा): प्रदेश के मुख्यमंत्री कै. अमरेंद्र सिंह की कार्यप्रणाली व उनके फैसलों से पार्टी विधायकों के बीच आक्रोश पनपने लगा है। असंतोष इस कदर बढ़ गया है कि विधायकों को लगने लगा है कि वे जीतने के बाद अपनी पहचान खोने लगे हैं। मामले को लेकर पार्टी हाईकमान के दरबार में जाने की भी कई विधायक सोचने लगे हैं। अगर यह असंतोष व आक्रोश और बढ़ा तो आने वाले दिन कैप्टन सरकार के लिए मुश्किल भरे हो सकते हैं।
दस साल के लंबे इंतजार के बाद जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आई तो विधायकों को लगने लगा कि अब उनके दिन लौटने शुरू होंगे। पार्टी वर्करों को भी लगने लगा कि पार्टी के सत्ता में आने से उनकी बात भी प्रशासनिक स्तर पर खूब होगी। मगर ऐसा कुछ नहीं हो पा रहा है। न तो विधायकों की कहीं पहचान बन पा रही है और न ही जमीनी स्तर पर वर्करों की कोई सुनवाई ही हो पा रही है।
विधायक व मंत्री सरकार के लालबत्ती कल्चर को खत्म करने के फैसले से सबसे ज्यादा परेशान हैं। कैप्टन सरकार की पहली कैबिनेट मीटिंग में ही लालबत्ती हटाने का फैसला लिया गया था। इस फैसले से अनेक विधायक व मंत्री नाराज दिखाई दिए। अपने वाहन पर लालबत्ती लगाने का उनका सपना विधायक बनने के बावजूद भी अधूरा रह गया। विधायकों का मानना है कि लालबत्ती न लगने से उनकी पहचान ही अपने इलाके में खोने लगी है। विधायकों को तो यहां तक लगने लगा है कि उनकी न तो सरकार में कदर है और न ही जनता के बीच उनकी पहचान बन पा रही है। कई विधायकों ने तो इसका अंदरखाते विरोध भी किया था, मगर उनकी आवाज साहस के साथ बाहर नहीं निकल सकी। कई विधायकों ने तो लीडर ऑफ हाउस से अनुरोध किया था कि वह इस फैसले को वापस लें, मगर ऐसा न हो सका। कैप्टन अमरेंद्र सिंह का साफ कहना है कि यह प्रदेश से वी.आई.पी. कल्चर को खत्म करने के लिए फैसला लिया गया है। मगर कैप्टन के इस फैसले से अंदर ही अंदर असंतोष बढ़ रहा है।
कैप्टन का दूसरा फरमान आया कि कोई भी विधायक या मंत्री किसी भी उद्घाटनी पत्थर पर अपना नाम अंकित नहीं करवाएगा। सरकार के इस फैसले के बाद अब न तो किसी मंत्री का नाम कहीं लग रहा है और न ही विधायकों का कहीं नाम अंकित हो रहा है। कैप्टन सरकार ने साफ सभी डी.सी. को आदेश दिया कि उद्घाटनी पत्थर पर सिर्फ राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, चीफ जस्टिस ऑफ सुप्रीमकोर्ट व हाईकोर्ट, लोकसभा व विधानसभा स्पीकर का नाम ही अंकित होगा। विधायकों का कहना है कि अपने ही इलाके में उद्घाटन पत्थर का जब वे उद्घाटन करते हैं तो उनका ही नाम नहीं होता, जिससे उन्हें बेहद शमॄदगी महसूस होती है। यही नहीं पिछली सरकार की ओर से धड़ाधड़ लगाए उद्घाटनी पत्थरों पर पूर्व सरकार के विधायकों के नाम उन्हें मुंह चिढ़ा रहे हैं। कैप्टन सरकार द्वारा यह फैसला पार्टी के ही एक कैबिनेट मंत्री साधू सिंह धर्मसोत की ओर से नाभा में एक स्कूल प्रिंसीपल के साथ बुरे बर्ताव के बाद लिया गया था। स्कूल में उद्घाटन के समय उद्घाटनी पत्थर पर नाम न होने से कैबिनेट मंत्री भड़क उठे थे। इसके बाद तुरंत कैप्टन सरकार ने नींव पत्थरों पर किसी नेता का नाम न लगाने का आदेश दिया था।
कैप्टन के तीसरे आदेश, जोकि किसी भी विधायक व मंत्री को अपने कोटे में से सरकारी ग्रांट न बांटने का है, का भी बेहद बुरा असर पड़ रहा है। अपने कोटे में से किसी को सरकारी ग्रांट न देने का फरमान आने के बाद अब तो मंत्री व विधायक किसी प्राइवेट फंक्शन में जाने से भी बच रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि वहां वे किसी ग्रांट की घोषणा नहीं करेंगे दो उन्हें किसी शमॢदंगी का सामना न करना पड़ जाए। कैप्टन के इस तरह के आ रहे फैसलों से सरकार बनने के चार माह मेंं ही पार्टी के अंदर विरोध की चिंगारी सुलगने लगी है। असंतोष की यह चिंगारी अगर और भड़क गई तो आने वाले दिन कैप्टन सरकार के लिए मुश्किलों भरे साबित हो सकते हैं।
ओ.एस.डी. के दिन भी नहीं रहे अच्छे
सरकार बनने के बाद कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने अपने खासमखास कई नेताओं को ओ.एस.डी. के पद पर सुशोभित किया था। ओ.एस.डी. बनने के बाद कई नेताओं के सपनों को उड़ान मिलने लगी थी, मगर लगता है कि अब ये सपने भी काफूर होने जा रहे हैं। ओ.एस.डी. के भी सरकार में अब दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं। ओ.एस.डी. बने नेताओं का मानना था कि वे मुख्यमंत्री के इर्द-गिर्द अपना घेरा रखेंगे और उनकी इससे नेताओं व वर्करों में अच्छी पहचान बनेगी। मगर ऐसा नहीं हो सका और कैप्टन ने साफ आदेश कर दिए हैं कि वह अपने-अपने हलके में जाकर बैठें और जनता की बात सुनें, न कि मुख्यमंत्री आफिस में बैठकर पावर सैंटर का काम करें। अब तो नए आदेशों के तहत ओ.एस.डी. की मुख्यमंत्री आवास पर प्रवेश करने पर भी पाबंदी लगा दी गई है।