Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Sep, 2017 12:54 PM
गुरदासपुर संसदीय सीट पर होने जा रहे 11 अक्तूबर को उपचुनाव को लेकर नामांकन पत्र दाखिल करने की समयावधि तेजी से समाप्त हो रही है। नामांकन के लिए महज 2 ही दिन शेष बचे हैं परन्तु भाजपा अभी तक प्रत्याशी के चयन को लेकर दुविधा में है। जहां कांग्रेस ने...
पठानकोट (शारदा): गुरदासपुर संसदीय सीट पर होने जा रहे 11 अक्तूबर को उपचुनाव को लेकर नामांकन पत्र दाखिल करने की समयावधि तेजी से समाप्त हो रही है। नामांकन के लिए महज 2 ही दिन शेष बचे हैं परन्तु भाजपा अभी तक प्रत्याशी के चयन को लेकर दुविधा में है। जहां कांग्रेस ने अंतत: प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ को टिकट थमा दी है वहीं भाजपा प्रत्याशी को लेकर फिलहाल गतिरोध बना हुआ है।
खन्ना और सलारिया गुट में बंटा भाजपा नेतृत्व
भाजपा में जहां पार्टी नेतृत्व खन्ना व सलारिया गुट में बंट चुका है वहीं हारे हुए विधायक बनाम विरोधी ग्रुप की लड़ाई भी चरम सीमा पर है। कोई ऐसा निर्वाचन क्षेत्र नहीं जहां भाजपा एकजुट हो। भाजपा के लिए दुखद पहलू यह है कि अकाली दल के पांचों निर्वाचन क्षेत्र गुरदासपुर, बटाला, कादियां, डेरा बाबा नानक व फतेहगढ़ चूडियां में अकाली वर्करों में इस बात को लेकर गुस्सा है कि भाजपाइयों का जो भी कैडर इन क्षेत्रों में था ने या तो सरेआम विरोध किया है अन्यथा पिछले चुनावों में गठबंधन के लिए दिल से काम नहीं किया। चूंकि वि.स. चुनाव बीते कुछ ही महीने हुए हैं ऐसे में अकालियों के जख्म अभी भरे नहीं हैं।
आपसी लड़ाई में उलझी भाजपा
अकाली दल नेतृत्व दिल से भाजपा प्रत्याशी को जिताने के मूड में है परन्तु वर्करों को इसके लिए कैसे राजी करता है यह बड़ी चुनौती है। कभी कविता खन्ना व स्वर्ण सलारिया का टिकट को लेकर द्वंद्व तो कभी स्थानीय बनाम बाहरी की लड़ाई तो कभी बाहुबली नेता का इंतजार करते-करते वर्कर हाईकमान की ओर टिकट घोषणा को लेकर निगाह केन्द्रित किए हुए हैं कि हाईकमान के पिटारे से किसका नाम निकलकर आता है। टिकट वितरण को लेकर भाजपा की इतनी दयनीय स्थिति कालांतर में कभी देखने को नहीं मिली।
टिकट घोषणा के बाद हो सकती है पार्टी में गुटबंदी
अगर भाजपा हाईकमान का स्वर्ण सलारिया को टिकट देने का कमिटमैंट है तो दिवंगत सांसद विनोद खन्ना की पत्नी कविता खन्ना को 2 महीने तक टिकट को लेकर क्यों मैराथन करवाई गई? अगर सैलेब्रिटी अथवा बाहुबली ही उपचुनाव में प्रत्याशी उतारना था तो इसको लेकर इतनी अनिश्चितता क्यों? टिकट घोषणा के बाद होने वाली पार्टी में फूट, गुटबंदी अथवा अराजकता को रोकने के लिए पार्टी हाईकमान कौन सा किला स्थापित करता है यह देखना रुचिकर होगा।
विरोधियों को समय नहीं देना चाहता है हाईकमान
अब चूंकि 2 सप्ताह का समय बाकी रह गया है हर मोड़ पर गुटबंदी है व हर परस्पर विरोधी के हाथ में छुरा है जो अवसर मिलते ही घोंपने से गुरेज नहीं करेगा इस स्थिति को रोकने के लिए हाईकमान कब समय निकालेगा? फिर भी 21 व 22 सितम्बर का दिन निर्णायक है अंतत: पार्टी प्रत्याशी की घोषणा तो करनी ही पड़ेगी क्योंकि पार्टी चाहती है कि टिकट न मिलने की स्थिति में दूसरा गुट कोई नुक्सान न पहुंचा पाए उसके लिए समय नहीं देना चाहती।
राजनीतिक शतरंज का विजेता वही खिलाड़ी होता है जो अपने दुश्मन की गुटबंदी को हवा देकर उसके विरोधियों से अधिक से अधिक नुक्सान करवा पाए। ऐसा कांग्रेस करवा पाएगी या भाजपा यह यक्ष प्रश्र भविष्य के गर्भ में है क्योंकि गुटबंदी का फूटने वाला ज्वालामुखी टिकट घोषणा के तुरंत बाद अपनी उपस्थिति दर्ज करवाएगा। वहीं बेशक गुरदासपुर संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस हाईकमान ने अपने हैवीवेट कैंडीडेट जाखड़ को उपचुनाव के समर में उतार दिया है दूसरी ओर प्रताप सिंह बाजवा जिसका कै. अमरेन्द्र सिंह गुट के साथ छत्तीस का आंकड़ा है भी बारम्बार पार्टी हाईकमान के दरबार में अलख जगाकर अपनी बात रख चुके हैं क्योंकि उनका दावा है कि गुरदासपुर संसदीय क्षेत्र उनका है इस तथ्य को ध्यान में रखा जाए। कांग्रेस सरकार को सत्ता में महज 6 महीने बीते हैं कोई भी स्थानीय लीडर अभी पार्टी के खिलाफ जाने की स्थिति में नहीं है परन्तु भीतरघात के बीज पड़ गए हैं। उधर इस फूटने वाली गुटबंदी के ज्वालामुखी को रोकने के लिए कांग्रेस व भाजपा हाईकमान के पसीने छूटेंगे।