क्या कांग्रेस और ‘आप’ भेद पाएंगे मजीठिया का ‘गढ़’?

Edited By Updated: 23 Jan, 2017 02:04 AM

congress and aap will distinguish majithia defenses

अमृतसर लोकसभा क्षेत्र में ठंड के बावजूद सियासी गर्मी दिन-...

मजीठा(अनिल भारद्वाज): अमृतसर लोकसभा क्षेत्र में ठंड के बावजूद सियासी गर्मी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। मजीठा विधानसभा क्षेत्र में होर्डिंग, बैनर, पोस्टर और फ्लैग वार सियासी माहौल की गर्मी बताने के लिए काफी है। हो भी क्यों न, शिरोमणि अकाली दल के महासचिव और पार्टी में पावर के एक केंद्र बिक्रम सिंह मजीठिया जो फिर से चुनाव मैदान में हैं। यह उनका गढ़ माना जाता है। 


ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि क्या इस बार कांगे्रस और आम आदमी पार्टी बिक्रम के ‘गढ़’ को भेद पाएंगे? मजीठिया को टक्कर देने के लिए कांग्रेस ने परंपरागत प्रतिद्वंद्वी सुखजिंद्र राज सिंह लाली मजीठिया को उतारा है तो ‘आप’ ने वरिष्ठ नेता हिम्मत सिंह शेरगिल को प्रत्याशी बनाया है। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने लाली का टिकट काट दिया था। इसके बाद उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और कड़ी चुनौती देते हुए दूसरे स्थान पर रहे थे। वहीं, हिम्मत सिंह शेरगिल पहले मोहाली से ‘आप’ के उम्मीदवार थे लेकिन मजीठिया को टक्कर देने के लिए उनकी सीट बदल कर यहां भेजा गया है। 


चौथी बार मैदान में मजीठिया
वर्ष 2014 में लोक सभा चुनाव में शेरगिल का प्रदर्शन अच्छा रहा था और उन्होंने भी कड़ी टक्कर देते हुए तीन लाख से अधिक वोट हासिल किए थे। अब ये दोनों पार्टियां हलके में शिअद की कितनी काट कर पाती हैं, यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन कांग्रेस और ‘आप’ के नेता दावे कर रहे हैं कि इस बार नतीजा अलग होगा। बहरहाल, बिक्रम सिंह मजीठिया सहित यहां से चुनाव लड़ रहे सभी प्रत्याशी जोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं। वोटरों को अपनी ओर करने के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे हैं।

 

पहली जीत के लिए लड़ेंगे शेरगिल
हिम्मत सिंह शेरगिल का राजनीतिक सफर 2014 लोकसभा चुनाव से शुरू हुआ। वह आनंदपुर साहिब से ‘आप’ के उम्मीदवार थे, लेकिन जीत नहीं सके। मौजूदा समय में ‘आप’ की पंजाब इकाई के लीगल विंग के प्रमुख हैं। पार्टी ने उन्हें बिक्रम का मुकाबला करने के लिए उतारा है। उल्लेखनीय है कि वह उन तीन नेताओं में से एक हैं, जिन्हें ‘आप’ ने शिअद के बड़े नेताओं के खिलाफ मैदान में उतारा है। उनके अलावा जरनैल लंबी में प्रकाश सिंह बादल और भगवंत मान जलालाबाद में सुखबीर के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं।

 

जीत के लिए उतारा लाली को
यह सुखजिंदर राज सिंह लाली मजीठिया ही थे, जिन्होंने 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव में बिक्रम को टक्कर दी। बेशक दोनों बार जीत का माॢजन अधिक रहा, लेकिन असल टक्कर लाली से ही मानी जाती रही है। 2007 में वह कांग्रेस प्रत्याशी थे जबकि 2012 में उन्हें टिकट नहीं मिला। इसके बावजूद वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ते हुए दूसरे नंबर पर रहे। उन्हें कांगे्रस के उम्मीदवार से कहीं अधिक वोट मिले थे। यही वजह रही कि कांगे्रस ने एक बार फिर उन पर विश्वास जताते हुए उन्हें प्रत्याशी बनाया है।


 

तीन चुनाव से लगातार मजीठा सीट पर पकड़ बनाए हुए हैं बिक्रम
दो विधानसभा और एक लोकसभा चुनाव की बात करें तो मजीठा विधानसभा क्षेत्र में मजीठिया प्रतिद्वंद्वियों से कहीं आगे रहे हैं। 2007 के विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला कांगे्रस के लाली मजीठिया से ही था। वह चुनाव बिक्रम ने करीब 23 हजार मतों से जीता था। बिक्रम को 51690 तो लाली को 28682 मत मिले थे। वोट प्रतिशत क्रमश: 55.31 और 30.69 रहा। 2012 के विधानसभा चुनाव में बिक्रम की लीड और बढ़ गई। 


उन्हें करीब 47 हजार मतों से जीत हासिल हुई। उस चुनाव में कांग्रेस ने लाली मजीठिया की जगह शङ्क्षलद्रजीत सिंह शैली को टिकट दी थी, जिन्हें केवल 7629 वोट मिले। लाली निर्दलीय चुनाव लड़कर 26363 वोट ले गए थे। 2012 में मत प्रतिशत के लिहाज से बिक्रम को 64.15, लाली को 22.87 जबकि शैली को 6.62 फीसदी वोट मिले। इस प्रकार बिक्रम मजीठिया ने लगातार दो बार इस विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल की। फिर 2014 का लोकसभा चुनाव आया और अमृतसर लोकसभा क्षेत्र से अकाली-भाजपा गठबंधन उम्मीदवार के रूप में केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेतली उतरे। 


कांग्रेस के उम्मीदवार कैप्टन अमरेंद्र थे। बेशक कैप्टन को बड़ी जीत हासिल हुई लेकिन मजीठा विधानसभा हलके में गठबंधन को ही बढ़त मिली। यहां जेतली को 60201 तो कैप्टन को 39550 वोट मिले। ‘आप’ के उम्मीदवार डॉ. दलजीत सिंह को 5742 मत मिले थे। आंकड़े बताते हैं कि पिछले तीन चुनाव से बिक्रम लगातार मजीठा सीट पर पकड़ बनाए हुए हैं।

 

सात बार जीत चुका है अकाली दल
मजीठा विधानसभा हलका शिरोमणि अकाली दल (शिअद) का गढ़ रहा है। हालांकि पहली बार हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जीती थी। कांग्रेस प्रत्याशी प्रकाश कौर ने लगातार दो बार जीत हासिल की थी लेकिन 1967 में पहली बार उतरे अकाली दास संत फतेह सिंह ग्रुप (ए.डी.एस.) ने कांग्रेस को हरा दिया। फिर दो चुनाव के बाद 1972 में कांग्रेस को दोबारा जीत नसीब हुई। वर्ष 1969 में अकाली दल ने कांग्रेस की महिला उम्मीदवार को हराया। इसके बाद कांग्रेस की झोली में जीत दो चुनावों के बाद आती थी। वर्ष 1992 में आजाद प्रत्याशी ने यहां से जीत हासिल की। अकाली दल यहां से सात बार चुनाव जीत चुका है जबकि कांग्रेस का पांच बार और एक-एक बार आजाद और ए.डी.एस. का प्रत्याशी जीत चुका है। वर्ष 2007 और 2012 में अकाली दल के प्रत्याशी मजीठिया लगातार जीत हासिल कर चुके हैं और अब तीसरी बार फिर मैदान में हैं।

 

निजी संपर्क का असर
लोगों से बातचीत में जो एक अहम बात उभर कर सामने आई है, वह है निजी संपर्क। बिक्रम और लाली लोकल होने के चलते लोगों के संपर्क में रहते हैैं। वहीं, शेरगिल क्षेत्र में नए हैं। कुछेक ने कहा कि शेरगिल ने भी लोगों से सीधा संपर्क शुरू किया है। इस प्रकार यह तय है कि सीधा संपर्क काफी हद तक इस सीट पर उम्मीदवारों के राजनीतिक भविष्य को तय करेगा। अब जनता की इस कसौटी पर तीनों में से कौन खरा उतरता है, वक्त बताएगा।


 

अकालियों को विकास तो कांग्रेस और ‘आप’ को ‘लहर’ से उम्मीद
स्थानीय लोगों का कहना है कि मजीठा विधानसभा क्षेत्र में पिछले दस सालों के दौरान काफी विकास हुआ है। इसी आधार पर शिअद के बिक्रम समर्थकों को पूरी उम्मीद है कि वह एक बार फिर बड़े माॢजन के साथ जीत दर्ज करेंगे। इसका प्रमाण हलके के बीचों-बीच से गुजरती आधुनिक स्ट्रीट लाइट्स वाली फोरलेन सड़क, मजीठा का बस अड्डा और सांझ केंद्र आदि देते हैं। कुछ लोगों का कहना था कि चाहे कुछ भी हो जाए जीतेंगे तो बिक्रम सिंह मजीठिया ही, बेशक इस बार माॢजन पहले से कुछ कम हो जाए। वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस समर्थकों का कहना है कि पूरे प्रदेश सहित मजीठा में भी उनकी पार्टी की लहर है। 


अकाली दल-भाजपा गठबंधन सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा इस बार यहां से जीत का सेहरा कांग्रेस के लाली मजीठिया के सिर पर बांधेगा। ‘आप’ के उम्मीदवार हिम्मत सिंह शेरगिल के समर्थक भी अपने हक में लहर की बात करते हुए पूरे हौसले में दिखाई पड़ रहे हैं। उनको भी अपनी जीत को लेकर पूरा भरोसा है। पार्टी के वालंटियर डोर-टू-डोर प्रचार कर रहे हैं। वहीं, बिक्रम मजीठिया और लाली मजीठिया के समर्थक भी पूरा जोर लगा रहे हैं।

 

1967 में ए.डी.एस. ने पहली बार कांग्रेस को हराया था
1992 में आजाद प्रत्याशी ने की थी 6 हजार वोटों से जीत दर्ज
1985 में कांग्रेस सबसे ज्यादा 7800 वोटों से जीत चुकी है सीट
2014 में लोकसभा चुनाव में मिली थी शिअद को लीड

 

शिरोमणि अकाली दल का प्रदर्शन
1969 में कांग्रेस को हराकर पहली बार जीती थी यह सीट
2012 में सबसे ज्यादा 47 हजार से अधिक वोटों से जीते थे मजीठिया 
2007 से लगातार दो चुनाव जीत चुके हैं बिक्रम सिंह मजीठिया

 

कांग्रेस पार्टी के ऐसे रहे हैें नतीजे
1957 में पहली बार कांग्रेस ने जीत के साथ की थी  शुरूआत
1972 में सबसे कम अंतर मात्र 240 वोटों से जीती थी पार्टी
2002 में आखिरी बार शिअद प्रत्याशी को हराकर जीती थी यह सीट


पहली बार यहां विस चुनाव लड़ रही है ‘आप’

2014 में पहली बार लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उतारे थे उम्मीदवार
2014 में आनंदपुर साहिब से अपना पहला चुनाव लड़े थे शेरगिल
2014 में 3 लाख से अधिक वोटों के साथ रहे थे तीसरे नंबर पर

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